Explore

Search

November 2, 2024 9:08 pm

सांतवीं मुहर्रम को अकीदत के साथ निकला जुलूस

1 Views

आर के मिश्रा की रिपोर्ट

परसपुर गोण्डा। नगर समेत विभिन्न ग्रामीण इलाके में शुक्रवार की देर रात को सातवीं मुहर्रम को लेकर जगह जगह मुहर्रम के जुलूसों का सिलसिला भी तेज हो गया।

परसपुर नगर के कटहरी बाग, शान नगर, प्रेम नगर, साई तकिया, नई बस्ती, अंजही गाड़ी बाजार, आटा, बनवरिया समेत तमाम इमाम चौक से जुलूस निकाले गए। ये सभी जुलूस अपने परंपरागत रास्तों से होकर समापन के लिये इमाम चौक के तरफ बढ़े।

जुलूस में नौजवानों ने ढोल ताशा बजाकर या हुसैन के नारे लगाए। सहादत ए कर्बला के गमगीन माहौल में डीजे लाइट के रंगीन सजावट, गाड़ियों पर मक्का मदीना पीर पैगम्बर आस्ताना व इलेक्ट्रॉनिक वाटर फव्वारा शान ए हिंदुस्तान की तश्वीरें, तिरंगा ध्वज लहराते और अलम जुलूस की शोभा बढ़ाते हुए जुलूस आगे बढ़ा। प्रभारी निरीक्षक समशेर बहादुर सिंह मय हमराही पुलिस फोर्स के साथ क्षेत्र में भ्रमणशील रहे हैं।

शांति सुरक्षा के मद्देनजर भरपूर पुलिस फोर्स व पीएसी की मुस्तैदी रही है। महिला पुरूष आरक्षियों समेत उपनिरीक्षक ने अपने हमराहियों के साथ गश्त किया। परसपुर नगर के बालपुर एवं करनैलगंज आटा मार्ग पर जुलूस का मेला अपने शबाब पर रहा है।

परसपुर नगर समेत ग्रामीण इलाकों में मुहर्रम त्यौहार को लेकर शुक्रवार को ताजिया की दुकानों पर काफी भीड़ रही है। परसपुर कस्बा के विभिन्न चबूतरों की कमेटियों ने जुलूस निकाल कर सातवीं का मातम किया।

बताया जा रहा है कि मुहर्रम माह के चाँद का दीदार होते ही इस्लाम के मानने वालों ने मुहर्रम पहले दिन से ढोल ताशा गाजे बाजे के साथ जुलूस का दौर शुरू हो गया। और ढोल व ताशे बजाकर लोगों ने या हुसैन के सहादत को याद किया। इस बार मुहर्रम त्यौहार 9 अगस्त को मनाया जा सकता है। इस दिन इमाम हुसैन की शहादत की याद में भारत में शिया मुसलमान काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं और उनके पैगाम को लोगों तक पहुंचाते हैं। हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। इसलिए इस दिन को आशूरा यानी मातम का दिन माना जाता है।

माना जाता है कि हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद के बीच जंग छिड़ गई थी, जिसमें बादशाह यजीद की सेना ने मिलकर हजरत इमाम हुसैन व उनके लोगों के लिए पीने का पानी रोक दिया था।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."