विकास कुमार की रिपोर्ट
करीब 50 वर्ष पहले बिहार से एक साधु पंजाब आता है। लोग उन्हें आशुतोष महाराज (मूल नाम महेश कुमार झा) के नाम से पुकारते हैं। धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती जाती है। वर्ष 1983 आशुतोष महाराज जालंधर के पास नूरमहल में दिव्य ज्योत जागृति संस्थान की स्थापना करते हैं। सुबह-शाम उनके प्रवचन सुनने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ने लगती है।
समय के साथ देश-विदेश में आशुतोष महाराज के लाखों भक्त बनते हैं। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की कई शाखाएं देश-विदेश में खुलती हैं। खास बात यह है कि साधु आशुतोष महाराज के शरीर ने अचानक 29 जनवरी, 2014 को हलचल करना छोड़ दिया। लोगों में यह बात फैल गई कि उन्होंने शरीर त्याग दिया है। हालांकि अगले दिन सुबह शिष्य यह बात मानने से इनकार कर देते हैं। वे दावा करते हैं कि आशुतोष महाराज गहन समाधि में चले गए हैं और उनकी मृत्यु नहीं हुई है। इसके बाद 31 जनवरी को डाक्टरों की एक टीम उन्हें ‘क्लिनिकली डेड’ घोषित कर देती है लेकिन शिष्य अपने दावे पर अडिग रहते हैं।
विवाद बढ़ने पर मामला पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट पहुंचता है, जहां भक्तों को आशुतोष महाराज का शरीर तीन वर्ष तक फ्रीजर में रखने की अनुमति मिल जाती है। हालांकि आज नौ वर्ष से अधिक हो गए हैं और आशुतोष महाराज की ‘गहरी समाधि’ की अवस्था जारी है।
24 घंटे सुरक्षा के घेरे में डीप फ्रीजर वाला कक्ष
नूरमहल में संस्थान के मुख्यालय के जिस कक्ष मेंं आशुतोष महाराज का शरीर रखा है, उसकी सुरक्षा दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के सेवादारों का एक समूह 24 घंटे करता है। आम लोगों को इसके अंदर जाने की अनुमति नहीं है। वहीं क्षेत्र के आसपास पंजाब पुलिस के जवानों का सुरक्षा घेरा रहता है। नूरमहल-नकोदर मार्ग पर भी पुलिस चेक पोस्ट बनाई गई है। वहीं, संस्थान के अंदर प्रवेश करने से पहले भी गहन तलाशी ली जाती है।
Author: samachar
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