नौशाद अली की रिपोर्ट
बलरामपुर। सावन माह के द्वितीय सोमवार को जिले के विभिन्न मंदिरों में श्रद्धालुगण आज जलाभिषेक करेंगे। दूसरे सोमवार को सभी शिव मंदिर बोल बम व ऊं नम: शिवाय के उद्घोष से गुंजायमान रहेंगे। महिलाएं व युवतियां निर्जल व फलाहार से व्रत रहकर भोलेनाथ से मनोवांछित फल के लिए प्रार्थना करेंगी। वहीं मंदिरों पर प्रशासन की ओर से सुरक्षा के मद्देनजर चाक चौबंद व्यवस्था रहेगी। पुलिस कर्मियों ने मंदिर के सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया।
बलरामपुर छोटे काशी के नाम से मशहूर है। यहां पर सैकड़ों शिव मंदिर स्थित हैं। नगर के झारखंडी मंदिर, बड़ा पुल शिवाला, साहू शिवाला, रानी तालाब स्थित शिव मंदिर, डिग्री कालेज स्थित शिवालय, भगवतीगंज स्थित, नहरबालागंज स्थित शिव मंदिर, राजापुर भरिया जंगल स्थित कल्पेश्वरनाथ, हरिहरगंज स्थित रेणुकानाथ, उतरौला स्थित दु:खहरणनाथ, पचपेड़वा स्थित शिवगढ़धाम सहित जिले के तमाम शिव मंदिरों पर भक्तों का भोर प्रहर से ही तांता लग जाएगा। शिव भक्त भगवान शंकर का विभिन्न प्रकार से अभिषेक कर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए वरदान प्राप्त करेंगे। मंदिरों को मंदिर प्रशासन की ओर से आकर्षक ढंग से सजाया गया है। कई मंदिरों में रुद्राभिषेक सहित तमाम विविध प्रकार के अनुष्ठान किए जाएंगे। इस अवसर पर कई स्थानों पर मेले भी लगेंगे। बाजार में पूजन सामग्री सहित कांवरियों की ओर से बोल बम टीशर्ट की मांग सबसे अधिक है।
सावन माह में भगवान शंकर की आराधना करने से भक्तों सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। वहीं युवतियां व्रत रहकर मनवांछित वर प्राप्त करने की कामना करती हैं। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय विष निकला था। श्रृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शंकर ने विषपान किया था। जिस माह में भगवान शंकर ने विषपान किया था वह सावन माह था। शीतलता पाने के लिए भोले शिव जी ने चन्द्रमा को अपने सिर पर धारण किया, इससे उन्हें शीतलता मिली। मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ के विषपान से उत्पन्न ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इंद्र ने भीषण वर्षा की थी। इससे भोलेनाथ को शांति मिली थी। इसी घटना के बाद सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है।
विशाल शिव मंदिर सिंहपुर आस्था का केंद्र
हरैया सतघरवा विकास खंड के ग्राम पंचायत सिंहपुर के मजरे अंधरीजोत में विशाल शिव मंदिर स्थित है। जो सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंदिर में विशालकाय प्राकृतिक शिवलिग का दर्शन-पूजन करने के लिए प्रत्येक सोमवार, शुक्रवार, महाशिवरात्रि व कजरी तीज पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। सावन माह में शिवलिग पर जलाभिषेक के लिए यहां श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई पूजा का फल भक्तों को जरूर मिलता है।
इतिहास
यह मंदिर लगभग 200 से अधिक वर्ष पुराना है। जानकारों के मुताबिक बलरामपुर रियासत के तत्कालीन महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद अपने सैनिकों के साथ जा रहे थे। अचानक रास्ते में वह एक झाड़ी के पास विश्राम करने लगे। रात में भोलेनाथ ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि इस झाड़ी में शिवलिग है। यहां मंदिर का निर्माण कराओ। राजा ने झाड़ी की सफाई कराई तो वहां सचमुच शिवलिग निकला। राज परिवार ने यहां विशाल मंदिर का निर्माण कराया। उत्तरी छोर पर एक एकड़ में जलाशय का निर्माण कराया गया। मंदिर के दक्षिणी भाग में माता काली व उत्तरी भाग में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित है।
जहां मंदिर के द्वार बंद नहीं होते
जिले में सदर विकास खंड के राजापुर भरिया जंगल के बीचोबीच ऐसा एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां पुजारी रात में निवास नहीं करते। बाबा जंगलीनाथ मंदिर के किवाड़ में कभी ताला बंद नहीं किया जाता। मान्यता है कि इस मंदिर पर भोलेनाथ की विशेष कृपा है। मंदिर की सुरक्षा नाग-नागिन करते हैं। मंदिर के पुजारी व स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां धार्मिक कार्यक्रम दिन में ही निपटाए जाते हैं। कारण मंदिर की सुरक्षा के लिए नाग-नागिन का जोड़ा शाम होते ही आ जाता है। रात में मंदिर प्रांगण में निवास करने वाला कोई व्यक्ति जीवित नहीं बचा।
चरवाहों ने देखा था शिवमंदिर
सदियों पहले कुछ चरवाहों ने जंगल में शिवलिंग निकलने की बात राज परिवार को बताई थी। जिस पर रानी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराने की ठानी। शिव¨लग को दूसरे स्थान पर ले जाने का प्रयास किया गया, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। बाद में राजपरिवार ने भगवान शिव की मान मनौव्वल की। जिसके बाद शिव¨लग को ठीक उसके बगल स्थापित कर विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा की गई। मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
इस मंदिर की सुरक्षा नाग-नागिन के जोड़े करते हैं। मंदिर में प्रतिवर्ष पूजन होता है। दूरदराज जिलों के लोग आते हैं। जो रुद्राभिषेक के साथ विशेष पूजा करते हैं। बताया कि मंदिर के बाहर समय माता स्थान व परिसर में तो विश्राम किया जा सकता है, लेकिन शिव¨लग के पास व बरामदे में रात नहीं रुका जा सकता। बताते हैं कि देर रात परिसर में सोने पर बैलगाड़ी चलने व सांस-बिच्छू के विचरण का आभास होता है। महाशिवरात्रि, कजरीतीज, श्रावण मास जैसे अवसरों पर नाग-नागिन की लीला जरूर देखने को मिलती है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."