दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
सावन में कांवड़ यात्रा का अपना अलग ही महत्व है और इन दिनों माहौल शिवमय रहता है। यूपी के विभिन्न हिस्सों में इस कांवड़ यात्रा के प्रति सांप्रदायिक सौहार्द की भी मिसालें देखने को मिली। मुस्लिम भाई अपने कांवड़िए भाइयों का कहीं स्वागत करते नजर आए तो कहीं पांचों वक्त के नमाजी खुद कांवड़ियों में शामिल दिखे। आइए एक एक कर जानते हैं इनको।
मेरठ में कांवड़ यात्रा के लिए खासतौर पर बुलडोजर कांवड़ बनाया गया है। इस कांवड़ को हिंदू और मुस्लिम युवाओं ने मिलकर तैयार किया है। सदर इलाके के रहने वाले अशरफ और उनके दोस्त गौरव ने इस कांवड़ को 20 जून से बनाना शुरू कर दिया था।
अशरफ कहते हैं, “पिछले 10 साल से हमारे मोहल्ले के लोग मिलकर कांवड़ बनाते हैं। कोशिश यही रहती है कि हर बार कुछ नया किया जाए। इस बार योगी बाबा का बुलडोजर चल रहा है। इसलिए हम भी बुलडोजर कांवड़ बना रहे हैं। ये कांवड़ 7 फीट ऊंची और 7 फीट चौड़ी है। मोहल्ले में मुस्लिम परिवारों के बच्चे और बड़े सभी कांवड़ बनाने में हमारी मदद करते हैं।” अशरफ से पूछा गया कि कांवड़ बनाने में कितना खर्च आता है? इस पर उन्होंने कहा, “ये काम हम अपनी मर्जी से करते हैं। ऊपर वाले के काम के लिए कोई पैसा नहीं लेता।”
हरिद्वार से कांवड़ लाकर गांव में शिव का जलाभिषेक करते हैं सलीम बुलंदशहर की सिकंदराबाद तहसील के चौकी खाजपुर गांव में सलीम रहते हैं। वह हरिद्वार से कांवड़ लाते हैं। 3 साल से कांवड़ लाकर गांव के जाहरवीर मंदिर में भगवान शिव पर जल चढ़ाते हैं।
सलीम कहते हैं, “मेरे बेटे जाहिद को मानसिक बीमारी थी। वो जल्द ठीक हो जाए। इसके लिए मैंने 2 साल पहले कांवड़ उठाकर भोले बाबा से उसकी सलामती की दुआ मांगी थी। अब वह ठीक हो गया है। इसके बाद हर बार सावन और शिवरात्रि में हरिद्वार से कांवड़ लाकर गांव के मंदिर में जल चढ़ाता हूं।”
सलीम कहते हैं, “कांवड़ यात्रा में पैदल चलते हुए गला सूख जाता है। हाथ-पैर दर्द करने लगते हैं। मगर, मेरठ, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में लोग मुझे जानने लगे हैं। हम जब भी यहां से कांवड़ लेकर गुजरते हैं। लोग हमारा स्वागत करते हैं और खाने के लिए फल, शर्बत देते हैं।”
उत्तराखंड से आने वाले कांवड़ियों पर फूल बरसाते हैं मुस्लिम समाजसेवी मुजफ्फरनगर का सरवट गांव और मेरठ का दिल्ली रोड इलाका कांवड़ यात्रा के रूट पर पड़ता है। यहां रहने वाले मुस्लिम समाजसेवी सावन में उत्तराखंड से आने वाले कांवड़ियों के ठहरने और जलपान के लिए पंडाल लगाते हैं।
सरवट गांव के रहने वाले अहमद हुसैन बीते 4 साल से कांवड़ियों के लिए पंडाल लगाते हैं। हुसैन कहते हैं, “जब कांवड़ियां हमारे गांव के रास्ते से गुजरते हैं, तो यहां के मुस्लिम समुदाय के लोग उनको माला पहनाकर, उन पर फूल बरसाते हैं। हम सभी कैंप लगाकर कांवड़ियों के लिए रुकने के साथ-साथ खाने का भी इंतजाम करते हैं।”
तंजीम उलमा इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी (बरेलवी) ने भी मुसलमानों की इस पहल का स्वागत किया है। मौलाना रजवी कहते हैं, “बरेली में अमन कमेटी कई साल से कांवड़ियों के लिए खाने और ठहरने की व्यवस्था करती रही है। इस बार भी बरेली में हिंदू मुसाफिरों के लिए 6 स्टॉल लगाए गए हैं।”
मौलाना रजवी कहते हैं, “पैगंबर साहब ने हमेशा राहगीरों की मदद करने का संदेश दिया है। उनके ही बताए गए रास्ते पर चलकर मुस्लिम समाज ये नेक काम कर रहा है। मैं इसका स्वागत करता हूं।”
इस्माइल और राशिद ने कांवड़ यात्रा के लिए जमीन तक दान की 2019 में बरेली के शिकारपुर चौधरी गांव में कांवड़ यात्रा के रास्ते को लेकर बवाल हो गया। 2020 और 2021 में कोरोना के चलते कांवड़ यात्रा नहीं हुई। 2022 में जब यात्रा शुरू होनी थी, तब जिला प्रशासन ने हिंदू-मुस्लिम पक्षों के साथ मीटिंग की। इसमें गांव के राशिद खां और इस्माइल खां ने कांवड़ियों के मंदिर जाने के रास्ते के लिए अपनी जमीन दे दी।
मीटिंग में SDM सिटी डॉ. आरडी पांडेय ने जमीन के बदले दोनों मालिकों को मुआवजा देने की पेशकश की। मगर, दोनों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि धर्म के नाम पर हम सौदा नहीं कर सकते। यह जमीन हम कांवड़ यात्रा के लिए दान में देंगे। इसके बाद हिंदू पक्ष ने राशिद और इस्माइल के लिए खड़े होकर तालियां भी बजाईं।
2015 से कांवड़ ले जा रहे शामली के वकील मलिक शामली के भैंसवाल गांव में 80% मुस्लिम आबादी रहती है। यहां के रहने वाले वकील मलिक शिव भक्त हैं। वो बीते 5 साल से लगातार कांवड़ लाकर गांव के भैंसवाल मंदिर में गंगाजल चढ़ाते हैं। इस बार जब कांवड़ लाने गए, तो गांव के ही कुछ शरारती तत्वों ने इसका विरोध किया। मगर, वकील मलिक ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
वकील मलिक कहते हैं, “मैं 2015 से कांवड़ लाकर भैंसवाल मंदिर में भगवान शंकर का जलाभिषेक कर रहा हूं। छठी बार कांवड़ लाना चाहता था, लेकिन गांव के कुछ लोग मना करने लगे। उन लोगों की शिकायत मैंने 13 जुलाई को डीएम मैडम से की और कांवड़ ले जाने की इजाजत मांगी।”
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."