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-अनुराधा दोहरे
तुम्हारे रंग रूप की मैं बनावट हूं ,
मां मैं तुम्हारी ही लिखावट हूं।
तुम ही जीवन आधार हो मां,
तुम ही सुख का संसार हो मां।
मैं तुम्हारे ही परछाई की सजावट हूं,
मां तुम्हारे ही रंग रूप की मैं बनावट हूं।
मीलों दूर रह कर भी संग रहती हो,
दुःख मेरा दर्द तुम सहती हो।
लगता है रश्मो रिवाज़ की मैं थकावट हूं,
मां तुम्हारे ही रंग रूप की मैं बनावट हूं।
जो तुम ना होती मां जग कैसा होता,
हर दिवस यहां ठग जैसा होता।
मैं दुःख सुख की एक मिलावट हूं,
हां, मां मैं तुम्हारी ही लिखावट हूं।
अनुराधा दोहरे इटावा
उत्तर प्रदेश
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."