विशाल ठाकुर
यह फिल्म विश्व के समस्त पीड़ित समुदायों को समर्पित है
निर्माता-निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री की ताजा रिलीज द कश्मीर फाइल्स इस एक पंक्ति के साथ शुरू होती है। फिल्म का विषय कश्मीर घाटी से सन् 1990 में पलायन करने वाले कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार और दुश्वारियों की दास्तान पर केन्द्रित है।
इस पंक्ति से पता चलता है कि एक फिल्मकार के रूप में विवेक अग्निहोत्री कुछ और भी कहना चाहते हैं। पीड़ित समुदाय चाहे कहीं का भी हो, न केवल अपने साथ बल्कि अपने समुदाय के साथ हुए अत्याचार के बदले न्याय चाहता है, और बीते भयावह कल की कहानी भी कहना चाहता है। वे अपने एक ट्वीट में इस पंक्ति के अर्थ को और अच्छे एवं सार्थक ढंग से प्रस्तुत करते दिखते हैं।
15 मार्च की सुबह विवेक ने हैशटैग राइटटूजस्टिस के साथ एक वीडियो साझा किया, जिसमें एक विदेशी महिला यह फिल्म देखने के बाद भाव विभोर हो गई। वह लिखते हैं- यहूदी, अश्वेत, यजीदी सब भावुक हैं और पीड़ित हिन्दुओं का दर्द साझा कर रहे हैं। बता दें कि यजीदी कुर्दी लोगों का एक उप समुदाय है, जिनका अपना अलग यजीदी संप्रदाय है, जिसमें वे पारसी पंथ के बहुत से तत्वों, इस्लामी सूफी मान्यताओं और प्रथाओं एवं कुछ ईसाई विश्वासों के मिश्रण को मानते हैं।
लेकिन ऐसा लगता है कि बात-बात में उदारवादी नजरिया और सेकुलरिज्म की वकालत करने वालों को बीते कई दिनों से कश्मीरी हिन्दुओं के विस्थापन की बात करना रास नहीं आ रहा। खासतौर से इस फिल्म के आने के बाद उनके माथे पर बल पड़ते साफ देखे जा सकते हैं। उनका कहना है कि फिल्म में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है और एक मजहब विशेष को बदनाम करने की कोशिश की गई है। पर फिल्म दर्शकों को लगता है कि आज से 30 साल पहले घाटी में कश्मीरी हिन्दुओं के साथ जो हुआ, उसे जान-बूझकर दबाया और छिपाया गया, जो अब इस फिल्म के जरिये सबके सामने है।
कश्मीरी हिन्दुओं के लिए उठने लगीं आवाजें
हालांकि एक पल को यह मान भी लिया जाए कि एक फिल्मकार के रूप में अग्निहोत्री से तथ्यों को जुटाने और उनके प्रस्तुतीकरण में कोई एक-आध चूक हो भी गई हो, लेकिन इससे कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार, विस्थापन और अत्याचार की सच्चाई को तो नहीं झुठलाया जा सकता? फिल्म की रिलीज के तुरंत बाद संसद में भी इसकी गूंज सुनाई दी।
उस दौर के तमाम लोग जो कश्मीरी हिन्दू नहीं हैं और जिनका विस्थापन एवं उस भयावह त्रासदी से कोई लेना-देना है, सामने आए हैं। सेना व पुलिस बल के लोग, सेनानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी सरीखे तमाम लोग जो उस समय कश्मीर घाटी में किसी न किसी रूप में तैनात थे, आज उस भयानक त्रासदी को यह कहते हुए व्यक्त कर पा रहे हैं कि हां, हमने वह सब कत्लेआम अपनी आंखों से देखा है। कश्मीरी हिन्दुओं का दर्द महसूस किया है।
इस फिल्म से कुछ और हुआ हो या न हुआ हो, पर एक आवाज जरूर बुलंद हुई है कि इस विषय पर बात होनी चाहिए। कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय मिलना चाहिए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। और ये आवाजें देश के किसी एक कोने से नहीं, बल्कि पूरे देश से उठ रही हैं। शायद लिबरल गैंग में मची खलबली का कारण यही तो नहीं?
लिबरल गैंग का विरोध
एक तरफ इस फिल्म को देखने के लिए सिनेमाहालों में रोजाना के शोज की संख्या को बढ़ाने के बावजूद दर्शकों को टिकटें नहीं मिल रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर लिबरल गैंग के अलावा अब बॉलीवुड से भी विरोध के स्वर बुलंद होते दिख रहे हैं। हालांकि बॉलीवुड से उठने वाली नकारात्मक आवाजों पर इस फिल्म के समर्थन में उठने वाले स्वर कहीं ज्यादा बुलंद दिखाई दे रहे हैं। फिल्म की रिलीज के पांचवें दिन अभिनेत्री एवं मॉडल गौहर खान ने बिना फिल्म का नाम लिये अपने ट्वीटर पर लिखा – अगर आपको प्रोपेगैन्डा नहीं दिखता, तो आपकी आत्मा अंधी, बहरी और गूंगी है। लगता है कि गौहर खान ने फिल्म नहीं देखी होगी। वरना वे प्रोपेगैन्डा को चिन्हित कर पातीं। ये बता पाती कि उन्हें अत्याचार और दर्द की दास्तान में ऐसा क्या नजर आया जो आंसू बहाने वालों को नजर नहीं आया।
कई कलाकार समर्थन में आए
खैर, गौहर खान को अभिनेत्री यामी गौतम धर का ट्वीट पढ़ना चाहिए, जो उन्होंने इस फिल्म के समर्थन में लिखा- – एक कश्मीरी हिन्दू से विवाह होने के कारण मैं जान पाई कि इस शांतिप्रिय समुदाय के साथ कैसे अत्याचार हुए और उन्होंने क्या भुगता है जबकि अधिकांश लोग आज भी उस हकीकत से अनजान हैं। उस हकीकत को सामने लाने नें 32 साल और एक फिल्म लगी। प्लीज इस फिल्म को देखें और अपना समर्थन दें।
बता दें कि यामी गौतम ने बीते वर्ष आदित्य धर से विवाह किया था, जो उरी “द सर्जिकल स्ट्राइक” जैसी फिल्म का निर्देशन कर चुके हैं। यही नहीं, फिल्म के समर्थन में आदित्य धर ने भी लिखा – हो सकता है आपने द कश्मीर फाइल्स देखने के बाद सिनेमाघर से निकलते कश्मीरी हिन्दुओं के भावपूर्ण वीडियोज देखे होंगे। नम आंखों वाले उन वीडियोज में भावनाएं वास्तविक हैं, जो बताती हैं कि हमने एक समुदाय के रूप में इस दर्द और त्रासदी को कब तक दबाए रखा। हमारे पास रोने के लिए कोई कंधा नहीं था और हमारी दलीलों को सुनने के लिए कोई कान नहीं था।
जान दे दी पर घर नहीं छोड़ा
अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा, दर्शन और कश्मीरी भाषा को समर्पित करने वाले हिन्दू दीनानाथ मुजू जम्मू—कश्मीर की जानी-मानी शख्सियत थे। 78 वर्षीय दीनानाथ अपनी पत्नी और बच्चों के साथ श्रीनगर के रावलपोरा इलाके में रहते थे। घाटी का माहौल खराब था ही। कश्मीरी हिंदुओं को चुन—चुनकर मारा जा रहा था। दीनानाथ मुजू को भी कश्मीर घाटी छोड़ने की लगातार धमकियां मिल रही थीं। दिल पर पत्थर रखकर किसी तरह अपने बच्चों को घाटी छोड़ने के लिए राजी कर लिया। लेकिन खुद अपनी जन्मभूमि, कर्मभूमि श्रीनगर छोड़ने का साहस नहीं कर पाए। इस्लामिक आतंकियों को हिन्दू दीनानाथ का यह फैसला चिढ़ा गया। 6—7 जुलाई की दरम्यानी रात आतंकी रावलपोरा हाउसिंग कॉलोनी में स्थित घर में घुसे और हिन्दू दीनानाथ की गोली मारकर नृशंस हत्या कर फरार हो गए। आतंकियों की स्पष्ट धमकी थी कि घाटी में जो भी इस्लामिक वर्चस्व का विरोधी करेगा, धमकियों को दरकिनार घाटी में टिका रहेगा, उसको रास्ते से हटा दिया जायेगा। और आतंकी ऐसा ही कर रहे थे।
मुझे लगता है कि बाकी ट्वीट्स को छोड़ भी दें तो केवल आदित्य और यामी के इन भावपूर्ण ट्वीट्स को पढ़ने के बाद गौहर खान को अपना ट्वीट डिलीट कर देना चाहिए। क्योंकि फिल्म का समर्थन और प्रशंसा करने वालों में मनोज बाजपेयी, अभिनेता अर्जुन रामपाल, निर्देशक हंसल मेहता, सुनील शेट्टी, परेश रावल के अलावा विद्युत जामवल के नाम भी जुड़ चुके हैं।
अभिनेता अक्षय कुमार ने इस फिल्म में अभिनेता अनुपम खेर के अभिनय को लेकर ट्वीट किया और खुशी जताई कि इस फिल्म के जरिये दर्शक सिनेमाघरों की तरफ लौटने लगे हैं। अक्षय ने अपने ट्वीट में जल्द ही यह फिल्म देखने की बात भी लिखी और अंत में लिखा- जय अंबे। तो उधर, अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा ने अनुपम खेर और अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को बधाई देते हुए इस फिल्म की सफलता पर खुशी व्यक्त की है। वहीं अभिनेत्री कंगना रानौत ने अपने चिर-परिचित अंदाज में इंस्टाग्राम पर एक लंबी पोस्ट द्वारा इस फिल्म की सराहना करने के साथ-साथ चुप्पी साधने वालों पर भी निशाना साधा है।
जब झेलम में मारकर फेंक दिया
कश्मीर घाटी हिन्दुओं की चीत्कार से भर्रा उठी थी। दिन—प्रतिदिन हमले तेज हो रहे थे। हिंदुओं ने धीरे-धीरे अपनो पुरखों की जमीन छोड़कर घाटी से बाहर बसना शुरू कर दिया था। लेकिन बहुतेरे ऐसे थे, जिन्हें सदियों से अपने साथ रह रहे मुस्लिम पड़ोसियों पर खुद से ज्यादा भरोसा था। ऐसे ही एक शख्स थे सोपोर में एग्रीकल्चरल कॉलेज में प्रोफेसर के.एल.गंजू। जाने-माने रिसर्चर गंजू और उनके परिवार को कई बार धमकियां मिल चुकी थीं। रिश्तेदारों ने घाटी छोड़ने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। मई के दूसरे सप्ताह में गंजू अपनी पत्नी प्रणा के साथ नेपाल में एक सेमिनार में हिस्सा लेकर वापस लौट रहे थे। उनके साथ उनका भतीजा भी था। रास्ते में जब वे घर लौट रहे थे तो सोपोर पुल के पास आतंकियों ने उनकी जीप को रोक लिया। आतंकियों को उनके आने की खबर पहले ही दे दी गयी थी। उन्होंने प्रोफेसर गंजू को गाड़ी से उतारकर बेरहमी से पीटा और फिर गोली मारकर झेलम में फेंक दिया। आतंकियों का इससे भी जी नहीं भरा तो भतीजे से कहा या तो नदी में कूद जाओ या फिर अपनी चाची के साथ देखो वे क्या करते हैं। आतंकियों के डर से भतीजा नदी में कूद गया। इसके बाद जिहादी प्रणा गंजू को अगवा कर फरार हो गए। भतीजे को तैरना नहीं आता था, लेकिन वह किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब रहा। लेकिन इसके बाद पुलिस प्रणा गंजू की खोजबीन करती रही। लेकिन उसके बारे में कुछ पता नहीं चला। कई दिन बाद प्रोफेसर गंजू की लाश मिली। लेकिन प्रणा गंजू का कभी पता नहीं चल पाया। लेकिन उस दौरान कुछ समाचार पत्रों में खबर छपी कि प्रणा गंजू के साथ आतंकियों ने कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया। वहशीपन की तमाम हदें पार करते हुए उन्हें असहनीय यातनाएं दीं और उनकी हत्या कर दी गयी।
कंगना लिखती हैं – द कश्मीर फाइल्स की शानदार सफलता पर बॉलीवुड खेमे में पिन ड्रॉप साइलेंस है, जबकि न केवल फिल्म की विषय-वस्तु बल्कि इसने बिजनेस भी कमाल का किया है। बुल्लीदाउद और उनके चमचे सदमे में चले गए हैं, एक शब्द भी नहीं। सारी दुनिया देख रही है इनको, लेकिन फिर भी एक शब्द भी नहीं। इनका समय गया…
समर्थन और प्रशंसा के इन स्वरों से परे एक जमात है जो यह जताने में लगी है कि उत्पीड़न तो हिन्दुओं ने हिन्दुओं का भी किया है। इसके लिए लेखक देवदत्त पटनायक ने कमान संभाली है। वे एक के बाद एक ट्वीट की झड़ी लगाने में लगे हैं। यह बताने के लिए कि मुगलों से पहले हिन्दू ही हिन्दू के दुश्मन थे और कत्लेआम किया करते थे। वह अपने संदर्भों में सैकड़ों से हजारों वर्षों के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। पांडवों और महाभारत की बात कर रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ देश की जनता है, जो सब बातों को धता बताकर सिनेमाघरों की ओर कूच कर रही है। (साभार)
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."