जीशान मेंहदी की रिपोर्ट
विधानसभा चुनाव अब समापन की ओर बढ़ चला है। यही वह दौर है जो वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की पटकथा लिखेगा। जातियों के लंबरदार बताने वालों के दावों की हकीकत का पता चलेगा। उनको मिलने वालों वोटों और सीटों से उनकी हैसियत का आकलन होगा। यही चरण उनके दावों की सच्चाई भी बताएगा, फिर इसके आधार पर दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए नए सिरे से तानाबाना बुना जाएगा।
सातवें चरण के लिए 7 मार्च को 54 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है। सुभासपा हो या अपना दल (एस) या फिर अपना दल कमेरावादी…। ये छोटे दल अपना वोट बैंक इसी चरण में होने का दावा कर रहे हैं। सबसे अधिक पिछड़े वर्ग की बिरादरियां भी इन्हीं क्षेत्रों में हैं। इसीलिए यहां कई ऐसे छोटे दलों के नेता हैं जो यह दावा कर रहे कि उनके साथ फला जाति का वोट बैंक हैं। खासकर गाजीपुर, मऊ, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर और सोनभद्र को छोटे दल इसको अपना गढ़ बताते हैं।
वर्ष 2014 से शुरू हुआ नया प्रयोग
यूपी में छोटे दलों को साथ लेकर लड़ने के प्रयोग का दौर लोकसभा चुनाव वर्ष 2014 से शुरू हुआ। जातिगत आधारित पार्टियों को भाजपा सबसे पहले साथ लेकर आई और उसे सफलता मिली। इसके बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इस प्रयोग का रंग और चोखा हुआ। यह बात अलग है कि बड़े दलों से अलग रहकर छोटे दल कोई बड़ा कारनामा प्रदेश में नहीं दिखा पाए हैं। इसीलिए इस बार के विधानसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी जातिगत व क्षेत्रगत आधारित पार्टियों से गठजोड़ किया है। अब देखना होगा भाजपा और सपा को छोटे दलों से फायदा होता है या उन्हें उनका फायदा मिला, क्योंकि इस बार का चुनाव वर्ष 2017 की अपेक्षाकृत अलग है। किस जाति का किसको वोट ट्रांसफर हुआ, यही आधार आगे चलेकर नए समीकरण बनाएगा।
बात यहां दो चुनाव के चरणों की करते हैं। पहले वर्ष 2012 की करते हैं। सपा ने 54 सीटों में 34 सीट पर कब्जा किया था। इसमें आजमगढ़ में सर्वाधिक नौ और गाजीपुर में छह सीटें जीती थीं। वर्ष 2017 में भाजपा की आंधी में भाजपा 29 सीटें जीत और सपा के खाते में 11 सीटें गईं। भाजपा 10 और सपा 20 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही।
Author: samachar
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