दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
लखनऊ में भिखारियों की स्थिति पर हाल ही में किए गए सर्वेक्षण ने एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है, जो न केवल लखनऊ बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में भिखारी समुदाय की वास्तविकता को उजागर करता है। इस रिपोर्ट में भिखारियों की आमदनी, उनकी जीवनशैली और पेशेवर भिक्षा मांगने के बढ़ते चलन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
लखनऊ में भिखारियों की आर्थिक स्थिति
लखनऊ में डूडा, नगर निगम और समाज कल्याण विभाग द्वारा चलाए गए एक अभियान के तहत कुल 5312 भिखारी पाए गए।
सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाएं सबसे ज्यादा कमाई करती हैं, जो रोजाना 3000 रुपये तक कमा रही हैं।
बुजुर्गों और बच्चों की औसत कमाई 900 से 1500 रुपये प्रतिदिन होती है।
एक भिखारी की औसत कमाई करीब 1200 रुपये प्रतिदिन है, जो 36,000 रुपये महीने बनता है।
भिक्षा की वास्तविकता
इस प्रकार लखनऊ में हर महीने लगभग 63 लाख रुपये भीख के रूप में दिए जा रहे हैं।
चारबाग क्षेत्र में भिखारियों की कमाई सबसे ज्यादा है, जहां लगभग 90 प्रतिशत भिखारी पेशेवर माने जा रहे हैं।कुछ भिखारी तो स्मार्टफोन और पैनकार्ड जैसी सुविधाएं भी रखते हैं।
पेशेवर भिक्षा मांगने का चलन
एक भिखारी ने बताया कि उसके पास 13 लाख रुपये बैंक में जमा हैं और वह सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं लेना चाहता। उसके लिए भीख मांगना एक आजादी की तरह है।
कई भिखारी इस पेशे को मानने लगे हैं और इसे अपने लिए एक स्थायी आय का स्रोत समझते हैं।
महिला भिखारियों की स्थिति
एक महिला भिखारी ने बताया कि उसके 6 बच्चे हैं और वह सातवीं बार गर्भवती है, क्योंकि गर्भवती होने पर उसे अधिक भीख मिलती है। इससे उसकी आय 80-90 हजार रुपये प्रति माह तक हो जाती है।
यूपी में भिखारियों की स्थिति
लखनऊ में भिखारी केवल स्थानीय नहीं हैं, बल्कि हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, रायबरेली और बाराबंकी जैसे जिलों से भी पेशेवर भिखारी आते हैं।
यह प्रवृत्ति एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह दिखाता है कि भिखारी अब केवल मजबूरी का नाम नहीं रह गए हैं, बल्कि कई लोग इसे एक पेशा मान चुके हैं।
सरकारी सहायता और समाजिक पहल
सरकार और समाज कल्याण विभाग ने भिखारियों के लिए विभिन्न योजनाएं लागू की हैं, लेकिन उनके प्रति जागरूकता और आर्थिक स्वतंत्रता की चाहत के कारण कई भिखारी इन योजनाओं का लाभ नहीं लेना चाहते।
लखनऊ में भिखारियों की यह स्थिति कई सवाल उठाती है। क्या यह समाज के लिए एक चिंता का विषय है? क्या यह पेशा अब आमदनी का एक सुरक्षित और स्थायी साधन बन चुका है? ऐसे में, हमें भिक्षा मांगने की समस्या को न केवल एक सामाजिक दृष्टिकोण से, बल्कि एक आर्थिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी समझने की आवश्यकता है। समाज के सभी वर्गों को मिलकर इस स्थिति का समाधान निकालने की जरूरत है ताकि भिखारियों को एक सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिल सके।
Author: samachar
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