Explore

Search
Close this search box.

Search

November 21, 2024 6:43 pm

लेटेस्ट न्यूज़

मंदिर के प्रसाद में मिलावट, आस्था के साथ खिलवाड़ या राजनीति का नया हथकंडा?

13 पाठकों ने अब तक पढा

अनिल अनूप

तिरुपति बालाजी मंदिर, जो करोड़ों सनातनी भक्तों की आस्था का केंद्र है, इस समय विवादों के घेरे में है। इस विवाद की जड़ मंदिर के पवित्र प्रसाद, विशेषकर लड्डू, में मिलावट को लेकर है। प्रसाद में मछली के तेल और जानवरों की चर्बी मिलने की खबर ने पूरे देश में सनातनी श्रद्धालुओं को आक्रोशित कर दिया है। ऐसे समय में जब यह मामला धार्मिक और भावनात्मक रूप से संवेदनशील है, इस पर राजनीति भी गरमा गई है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा इस मुद्दे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की सरकार पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने दावा किया कि पिछली सरकार के समय मंदिर में प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले लड्डू में घी की जगह मछली का तेल और जानवरों की चर्बी मिलाई जा रही थी।

धर्म और राजनीति का टकराव

आस्था से खिलवाड़ का यह मामला अब केवल धार्मिक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक धरातल पर भी उतर आया है। नायडू ने आरोप लगाया कि जुलाई 2023 में तिरुपति मंदिर के प्रसाद के सैंपल की जांच में मिलावट की पुष्टि हुई थी। इसके बाद से उन्होंने मंदिर के प्रसाद की पवित्रता को बनाए रखने के लिए कदम उठाए। वहीं, जगन मोहन रेड्डी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे नायडू की राजनीति करार दिया। रेड्डी का कहना है कि यह मुद्दा उनकी सरकार की 100 दिन की विफलताओं को छुपाने का प्रयास है।

इस विवाद ने संत समाज को भी नाराज कर दिया है। देश भर के संतों और धार्मिक संगठनों ने इसे आस्था के साथ धोखा करार देते हुए विरोध जताया है। यहां तक कि कुछ संतों ने दोषियों को फांसी की सजा की मांग तक कर डाली है। सवाल उठता है कि आस्था और प्रसाद की पवित्रता के साथ खिलवाड़ करने वाला असल दोषी कौन है?

मिलावट के दावे और जांच की सच्चाई

इस विवाद में एक और महत्वपूर्ण पहलू वह जांच रिपोर्ट है, जिसके आधार पर यह आरोप लगाए जा रहे हैं। 12 जून 2023 को तिरुपति मंदिर के प्रसाद में इस्तेमाल होने वाले घी के सैंपल लिए गए थे और 23 जून तक इसकी रिपोर्ट तैयार हो गई थी। इसमें यह बात सामने आई कि घी में मछली के तेल और जानवरों की चर्बी हो सकती है। यह जांच नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) द्वारा की गई थी। हालांकि, इस रिपोर्ट में कुछ फॉल्स पॉजिटिव के कारण भी बताए गए, जिनमें गायों की सेहत, आहार, या दूध में अन्य जानवरों का मिश्रण भी संभावित कारण हो सकते हैं।

सवाल यह है कि अगर घी की सप्लाई में मिलावट हुई है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या यह केवल लापरवाही का मामला है या इसके पीछे सियासी खेल भी है?

सियासी धर्मयुद्ध और भक्तों की चिंता

इस मुद्दे को लेकर देश भर में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इस विवाद पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से बात कर मामले की पूरी रिपोर्ट मांगी है और उचित जांच का भरोसा दिलाया है। वहीं, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने दोषियों के लिए फांसी की सजा की मांग की है। दूसरी ओर, कांग्रेस ने भी इस मामले पर नायडू पर सवाल उठाए हैं कि आखिर तीन महीने तक इस रिपोर्ट को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया।

यह मुद्दा केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि कानूनी और राजनीतिक भी बन गया है। भक्तों की भावनाओं और उनकी आस्था से जुड़ा यह मामला न्यायालयों तक भी पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में अर्जियां दाखिल की जा रही हैं, जिसमें मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की गई है।

तिरुपति बालाजी मंदिर, आस्था का केंद्र

तिरुपति बालाजी मंदिर दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है, जिसकी कुल संपत्ति करीब 3 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। इस मंदिर में हर दिन लगभग 50,000 से अधिक श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और हर दिन लगभग 3 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं। प्रसाद के रूप में मिलने वाले इन लड्डुओं का आर्थिक महत्व भी है, क्योंकि इससे हर साल 500 करोड़ रुपये की कमाई होती है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के चढ़ावे और भगवान वेंकटेश को अर्पित किए जाने वाले सोने और धन से भी समृद्ध होता जा रहा है।

मंदिर की संपत्ति और इसके प्रसाद का धार्मिक महत्व इसे आस्था का प्रतीक बनाता है। भक्त मंदिर से सिर्फ प्रसाद लेकर नहीं जाते, वे भगवान का आशीर्वाद और आस्था की पवित्रता भी अपने साथ ले जाते हैं। ऐसे में प्रसाद में मिलावट का यह मामला न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, बल्कि भक्तों की आस्था को भी चोट पहुंचाता है।

मंदिर प्रशासन और घी सप्लाई की प्रक्रिया

मंदिर में प्रसाद के लिए घी की सप्लाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसके लिए टेंडर निकाले जाते हैं। सबसे कम बोली लगाने वाले सप्लायर को यह ठेका दिया जाता है। मंदिर ट्रस्ट ने इसके लिए सख्त नियम बनाए हैं और गुणवत्ता की जांच के लिए मैसूर की CFTRI लैब की मदद से घी की नियमित जांच कराई जाती है। इस विवाद के बाद, घी सप्लाई करने वाली कर्नाटक मिल्क फेडरेशन और एआर डेयरी प्रोडक्ट लिमिटेड जैसी कंपनियों पर भी सवाल उठे हैं।

घी सप्लाई करने वाली कंपनियों ने अपने बचाव में कहा है कि वे जांच के लिए तैयार हैं। खासकर एआर डेयरी प्रोडक्ट लिमिटेड का कहना है कि उसने किसी तरह की मिलावट नहीं की है और उसके घी की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं है।

आस्था बनाम राजनीति

तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में मिलावट का यह मामला कहीं न कहीं आस्था और राजनीति के बीच का टकराव बन चुका है। एक तरफ, करोड़ों सनातनी भक्त अपनी आस्था के साथ खिलवाड़ का विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दल इस मुद्दे का सियासी लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। इस पूरे प्रकरण में यह देखना होगा कि असल सच्चाई क्या है और दोषियों को सजा मिलती है या यह मामला भी केवल राजनीतिक बयानबाजी बनकर रह जाएगा।

आस्था के इस महायुद्ध में सच्चाई और न्याय का इंतजार है। भक्तों की भावनाओं का सम्मान करना और उनके विश्वास को बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है। अब देखना होगा कि इस मामले में न्याय कब और कैसे होता है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़