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November 25, 2024 6:48 am

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रामलीला के राम…लोग मुंह पर सिगरेट का धुआं उड़ाते, गुदगुदाते हैं; हिल गया तो पैसे नहीं देते… 

15 पाठकों ने अब तक पढा

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

मैं खुद को एक्टर मानता हूं। कोई एक्टर नहीं चाहेगा कि उसे मूर्ति की तरह खड़ा रहना पड़े, लेकिन जब तक बड़ा मौका नहीं मिलता, तब तक मेरे लिए यही एक्टिंग है। मैंने इसकी चिंता छोड़ दी है कि लोग क्या कहेंगे। घर-परिवार के लिए कमाना जरूरी है। पहले कंस्ट्रक्शन का काम करता था, लेकिन उसमें मुझे बहुत नुकसान हुआ। काम बंद करना पड़ा।

कोविड के बाद से मैं गोल्डन मैन के रूप में हूं। इसमें मुझे उम्मीद दिखती है। आठ घंटे स्टैच्यू की तरह रहता हूं। कम सांस लेता हूं। धूप-बारिश सब कुछ इग्नोर कर देता हूं। एक बात हमेशा दिमाग में चलती रहती है कि कभी न कभी तो दिन बदलेंगे।

दिल्ली के कनॉट प्लेस पर जब मैं स्टैच्यू के रूप में खड़ा रहता हूं, तो लोग गुदगुदी करते हैं। भिखारी बोलकर चले जाते हैं। चेहरे पर सिगरेट का धुआं छोड़ते हैं। मैं चाहकर भी रो नहीं पाता। रोने से चेहरे का पेंट धुल जाएगा और फिर जो दो पैसा मिलने वाला होगा, वो भी हाथ से निकल जाएगा।

मैं रजनीश, मेरठ का रहने वाला हूं। चार भाई हैं, पिता-मां सब हैं। गांव में पक्का मकान है। घर के ज्यादातर लोग मकान बनाने का काम करते हैं। पापा भी यही करते थे, लेकिन मेरा सपना एक्टर बनने का था। 9वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। परिवार के बाकी लोग भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे।

गांव में रामलीला में मैं राम बनता था। भाई और मां-पापा मुझे चिनाई सिखाना चाहते थे। पापा को खाना देने के बहाने मम्मी मुझे रोज उनके पास भेज देती थीं। धीरे-धीरे मैं वहां काम करने लगा। 13 साल की उम्र में मुझे भी चिनाई में पैसे मिलने लगे। 18 साल का हुआ तो शादी करा दी गई।

मैं शादी के बाद विदाई कराके पत्नी को घर ला रहा था, तो कार में ही मैंने कहा कि मुझे एक्टिंग करनी है। हीरो बनना है। पत्नी ने कहा- ‘जो करना है करो, बस परिवार और बाल-बच्चों को कमी न हो। उनका पेट भरता रहे।’

2015 में दिल्ली आया। तब मेरी उम्र 20 साल थी। दो बच्चे भी हो गए थे। यहां चिनाई का काम शुरू किया और लक्ष्मी नगर के एक्टिंग स्कूल में एडमिशन लिया।

एक्टिंग सीखने के लिए दो हजार रुपए महीना फीस देता था, लेकिन हफ्ते में एक या दो दिन ही जा पाता था। मेरा चिनाई का काम तेजी पकड़ रहा था। धीरे-धीरे मेरे अंडर 40 मजदूर हो गए। मैं फ्लैट बनाने का ठेका लेने लगा।

फिर एक दिन ऐसा हुआ कि मेरी हिम्मत जवाब दे गई। मैंने एक फ्लैट बनाने का ठेका लिया। जिनका काम लिया था, उनका घर थोड़ी ही दूरी पर था। उनके यहां 10-12 लाख का बैलेंस बन गया। मैं पैसे मांगता था तो वो टाल भी देते थे। कभी बीस-पचीस हजार दे देते थे।

इसी बीच मेरे मजदूरों में से एक की दोस्ती उनकी नौकरानी से हो गई। वो बगल के घर से सुबह-शाम चाय लेकर आती थी। जिस दिन उनका काम पूरा हुआ, उसके अगले दिन ही घटना हो गई।

बाकी सभी मजदूर नई साइट पर चले गए थे और वो मजदूर वहां सामान समेटने गया था। उनकी नौकरानी इसी बीच वहां आई। मुझे फोन करके जल्दी बुलाया गया। मैं पहुंचा तो वहां बवाल मचा हुआ था। वो कहने लगे कि तुमने ही कराया है। मैं समझाता रहा, लेकिन उनके दिमाग में तो कुछ और ही था।

पता चला कि वो मेरा सारा पैसा अपने पास रखना चाहते थे। उन्होंने पुलिस बुला ली, पुलिस ने मेरे साथ मारपीट कर भगा दिया। सप्ताह भर बाद मैं फिर उनके घर गया। वो मुझसे गेट पर ही गाली- गलौज करने लगे। उनकी मां निकल कर आईं तो मैंने उनका पैर पकड़ लिया। फिर भी वो नहीं माने। तकरीबन 12 लाख रुपए उन्होंने रख लिया।

मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं था। पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। मैंने तीन साल में अपनी जिंदगी पटरी पर ला दी थी। कुछ ऐड शूट कर चुका था। एक्टिंग भी सीख रहा था। मुझे गांव लौटना पड़ा। पापा ने ढांढस बधाया और अपने हिस्से की 50 गज जमीन बेच दी। मैंने भाइयों से कुछ पैसे उधार लिए और मजदूरों का पैसा चुकाया।

मेरे मोहल्ले वाले कहते थे कि ये एक्टर बनने निकले थे और खाने को लाले पड़ गए। मैं सुन लेता था, लेकिन जब पत्नी के भाई ने भी मजाक उड़ाना शुरू किया, तो बहुत तकलीफ हुई। वो कहते थे- जीजा जी कमाते तो बहुत हैं, लेकिन अमीर नहीं बन पाते। 

मुझे पहली बार बुरा लगा जब घर में भोजन में कटौती होने लगी। दो सब्जी की जगह एक सब्जी बनने लगी। दाल बननी बंद हो गई। पत्नी को किया वादा पूरा नहीं कर पा रहा था, तो उससे भी नजर नहीं मिला पा रहा था। इसी बीच कोरोना आ गया। जैसे-तैसे गांव पर मैंने समय काट लिया। इसके बाद मैंने तय किया कि दिल्ली चलेंगे।

कोरोना के बाद परिवार को लेकर दिल्ली आ गया। बड़े साले बुरा-भला कहने लगे। पत्नी से संबंध भी अच्छा नहीं था। मैंने जहर खा लिया। इस पर मैं ज्यादा बात नहीं करना चाहता। ये भी जीवन का दौर था, लेकिन मैंने ये तय कर लिया था कि अब चिनाई का काम नहीं करूंगा।

मुझे और कोई काम आता भी नहीं था। मैं बस लेबर की तरह आठ घंटा चिनाई करता था और बाकी के समय रील देखता था। फिर मुझे यूट्यूब पर लंदन के गोल्डन मैन के बारे में पता चला।

मैंने देखा और ये काम मुझे अच्छा लगा। ये आदमी लोगों को हंसा भी रहा था और एक्ट कर के भी दिखा रहा था। उसके सामने एक बॉक्स रखा था जिसमें लोग पैसा दे रहे थे। मैंने तय किया कि यही काम करूंगा। इसमें पैसे भी मिल जाएंगे और मेरे अंदर का एक्टिंग का कीड़ा भी शांत होता रहेगा।

मैं पेंट की दुकान पर गया और गोल्डन कलर का पेंट लिया। पालिका बाजार से पुराने कपड़े खरीदे। मैं जब पहली बार तैयार हुआ तो बहुत नर्वस था। राजीव चौक मेट्रो के गेट नं. 4 पर खड़ा हुआ। उस दिन मुझे 100 रुपए मिले। उस दिन बहुत खुशी हुई, लेकिन जब घर आकर पेंट छुड़ाने लगा तो हालत खराब हो गई।

मैं उस दिन दो घंटे रोया, क्योंकि वो ऑयल पेंट था और मेरे चेहरे पर दाने उग आए थे। खैर, खुद से ही सब कुछ सीखकर मैं यहां तक पहुंचा था और किसी के सहारे की आदत नहीं थी।

मैं दोबारा दुकान पर गया। पहली बार वहीं मुझे सूखे पेंट के बारे में पता चला। धीरे-धीरे मेरी पहचान होने लगी, लेकिन मुझे कुछ लोग भिखारी कह कर चले जाते थे। एक दिन कुछ पुलिस के लोगों ने सेल्फी ली। मुझे पहली बार लगा कि इस काम में भी इज्जत है। धीरे-धीरे कॉन्फिडेंस आने लगा।

हालांकि अब भी लोग आते हैं तो कुछ न कुछ ऊट-पटांग करके चले जाते हैं। पिछले सप्ताह एक आदमी शराब पीकर आया और अपना सारा वजन मेरे कंधे पर रख दिया।

मैं हिल नहीं सकता हूं क्योंकि मेरे एक्ट का पार्ट ही यही है कि मैं स्टैच्यू बन कर खड़ा रहूं। फिर उसने मेरे मुंह पर सिगरेट का धुआं छोड़ना शुरू कर दिया। मुझे इससे एलर्जी है। खैर, अच्छे लोग भी हैं। कुछ लोग आते हैं तो तारीफ करके जाते हैं।

कई बार लोग अपने बच्चों से कहते हैं कि छू कर देखो। बच्चे आकर मेरी कमर में गुदगुदी करते हैं। मैं फिर भी चुपचाप खड़ा रहता हूं, क्योंकि मैं हिल गया तो बच्चा डर जाएगा और फिर उसके पेरेंट्स जो भी दस-बीस रुपए देने वाले थे, नहीं देंगे। इसलिए मैं ये सब बर्दाश्त करके खड़ा रहता हूं।

जाड़े में तो बहुत दिक्कत नहीं होती है, लेकिन गर्मी में रोज-रोज नहाना पड़ता है। महीने में एक बार नई वर्दी यूज करनी पड़ती है। मैं एक बार पुरानी वर्दी यूज करता रहा और शरीर पर दाने हो गए। 4000 की दवाई करानी पड़ी। मैंने ये पैसे छह महीने काम करके बचाए थे।

फिलहाल सब ठीक है। रोज 400 रुपए तक की कमाई है। बच्चे स्कूल जाते हैं, पत्नी ताने नहीं मारती है। बस बुरा तब लगता है जब कभी शाम को पुलिस वाले हटाने लगते हैं। मैं भी तो आर्टिस्ट हूं। मेरा भी तो मन है। मैं इतनी मेहनत करता हूं, लेकिन लोग फिर भी मुझे भिखारी बोल कर चले जाते हैं।

मेरा बस यही कहना है कि जब अच्छा न कहा जाए, तो गंदा भी न कहा जाए। आपकी इच्छा है पैसा दें, न दें, लेकिन बुरा तो न कहें। (मेरठ के रजनीश उर्फ गोल्डन मैन ने ख़ुद अपनी कहानी बयां किया) 

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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