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November 21, 2024 6:24 pm

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बाजारीकरण और हिंदी का भविष्य ; हिंगलिश का बढ़ता प्रभाव और चुनौतियां

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अनिल अनूप

आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा 1912 में कही गई यह बात कि “भाषा ही किसी जाति की सभ्यता को सबसे अलग झलकाती है,” आज के संदर्भ में भी उतनी ही प्रासंगिक है। यह कथन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि किसी समाज या राष्ट्र की अस्मिता और पहचान उसकी भाषा से जुड़ी होती है। जब किसी भाषा को कमजोर करने के प्रयास होते हैं, तो उसका सीधा असर उस समाज की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत पर पड़ता है।

आज जब हम हिंदी के वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि उदारवाद और वैश्वीकरण के प्रभाव से हिंदी मीडिया में अंग्रेजी का दबदबा बढ़ता जा रहा है। टीवी चैनलों और अखबारों में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है, जिससे हिंदी के स्थापित शब्द अपदस्थ हो रहे हैं। यह कहना कि हिंदी कठिन और दुरूह है, वास्तव में एक साजिश का हिस्सा है, जिसके द्वारा हिंदी को बाजार से हटा दिया जाए और उसकी जगह अंग्रेजी को प्रतिष्ठित किया जाए।

यह सच है कि हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन 1949 में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल एक दिन हिंदी का महत्त्व बताकर हम अपनी जिम्मेदारी पूरी कर सकते हैं? हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर और पहचान का प्रतीक है। इसके प्रचार-प्रसार के लिए केवल एक दिन का आयोजन पर्याप्त नहीं हो सकता।

दुनियाभर में 7,000 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन हिंदी आज भी तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह हमारे लिए गर्व की बात है, लेकिन साथ ही यह सोचने की भी जरूरत है कि हम अपनी मातृभाषा को किस दिशा में ले जा रहे हैं। अंग्रेजी ने आधुनिकता का प्रतीक बनकर अन्य भाषाओं को दबाने का काम किया है। आज बाजार और मीडिया के दबाव में हिंदी का विकास अवरुद्ध हो रहा है।

कई देशों में मातृभाषा को सर्वोपरि माना जाता है। रूस, चीन, जापान जैसे देश अपनी भाषाओं में कार्य करते हैं और उन्होंने अपनी भाषाओं के बल पर ही वैश्विक पहचान बनाई है। ऐसे में, हमें भी हिंदी को उसी सम्मान के साथ अपनाना होगा और उसकी प्रगति के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

हालांकि, समय के साथ अंग्रेजी का प्रयोग बढ़ा है, लेकिन हिंदी के प्रचार-प्रसार और इसके महत्व को बनाए रखने के लिए हर साल हिंदी दिवस मनाया जाता है। 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस और 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। दोनों का उद्देश्य हिंदी का प्रचार-प्रसार करना है, लेकिन राष्ट्रीय हिंदी दिवस का विशेष महत्व है क्योंकि इसी दिन हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था।

हमें हिंदी की प्रगति के लिए सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। इसे केवल साहित्य या सांस्कृतिक भाषा न मानते हुए, इसे रोजगार और बाजार की भाषा के रूप में भी विकसित करना होगा। तभी हम अपनी भाषा को सही मायने में प्रगति के पथ पर ले जा सकते हैं।

हिंदी भाषा की वर्तमान स्थिति और इसके सामने मौजूद चुनौतियों पर बात करते हुए, यह समझना जरूरी है कि भाषा का केवल सांस्कृतिक पहलू ही महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि उसका व्यावहारिक और सामाजिक उपयोग भी उतना ही जरूरी है। आज के समय में, बाजार और तकनीकी विकास के साथ जुड़ने के लिए हिंदी को भी खुद को ढालने की जरूरत है। इस संदर्भ में कुछ प्रमुख बातें हैं:

बाजारीकरण और हिंदी का भविष्य

बाजार का प्रभाव भाषा के विकास और उपयोग पर बहुत ज्यादा होता है। अंग्रेजी का दबदबा इस वजह से भी बढ़ा है क्योंकि इसे रोजगार और व्यवसाय की भाषा के रूप में देखा जाता है। हिंदी को भी अगर रोजगार और उद्यमिता से जोड़ा जाए, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाएगा। जैसे कि कई हिंदी समाचार चैनलों और ब्रांडों ने यह साबित किया है कि हिंदी में सामग्री उपलब्ध कराकर भी बड़े पैमाने पर दर्शक और उपभोक्ता तक पहुंचा जा सकता है। हिंदी को बाजार की जरूरतों के हिसाब से खुद को आधुनिक और तकनीकी भाषा के रूप में ढालना होगा।

शैक्षिक संस्थानों में हिंदी की स्थिति

शिक्षा का बाजारीकरण एक बड़ी चुनौती है, जहां अधिकतर प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों में अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाती है। जबकि हिंदी को कमतर आँका जाता है, चाहे वह अकादमिक सामग्री हो या शोध। हिंदी को शिक्षा में एक सशक्त भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए, हमें न केवल हिंदी में उच्च-गुणवत्ता की पाठ्य सामग्री उपलब्ध करानी होगी, बल्कि इसे शोध और विकास की भाषा के रूप में भी विकसित करना होगा।

डिजिटल युग और हिंदी का विकास

डिजिटल युग में भाषा का उपयोग और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। सोशल मीडिया, वेबसाइट्स, ऐप्स और सॉफ्टवेयर आज की पीढ़ी के मुख्य साधन बन चुके हैं। हिंदी को टेक्नोलॉजी फ्रेंडली बनाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हिंदी में अच्छे सर्च इंजन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित उपकरण और तकनीकी शब्दावली का विकास बहुत जरूरी है।

हिंगलिश का बढ़ता प्रभाव

हिंगलिश (हिंदी और अंग्रेजी का मिश्रण) का प्रभाव युवा पीढ़ी में तेजी से बढ़ रहा है। यह जहां एक तरफ भाषा के विकास की ओर इशारा करता है, वहीं दूसरी ओर यह खतरे की घंटी भी है। हिंदी के शुद्ध रूप को बचाए रखना उतना ही जरूरी है जितना इसका तकनीकी और आधुनिक संदर्भों में उपयोग करना। हिंगलिश के बढ़ते उपयोग से हिंदी के पारंपरिक शब्द धीरे-धीरे गायब हो सकते हैं, इसलिए इसका सही संतुलन बनाना जरूरी है।

सरकारी और न्यायिक प्रणाली में हिंदी का उपयोग

हिंदी को सरकारी और न्यायिक प्रणाली में अधिक प्रभावी रूप से लागू करना चाहिए। हालांकि कई राज्यों में हिंदी को प्राथमिक भाषा के रूप में अपनाया गया है, लेकिन उच्च स्तर पर अभी भी अंग्रेजी का ही प्रभुत्व है। जब तक सरकारी कामकाज में हिंदी का पूर्ण रूप से उपयोग नहीं किया जाएगा, तब तक इसके व्यापक प्रभाव को नहीं देखा जा सकेगा।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का प्रचार

हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने की जरूरत है। आज कई देशों में हिंदी सीखने और इसे समझने की कोशिश की जा रही है। यह समय है कि भारत सरकार और विभिन्न संस्थान इस अवसर का फायदा उठाते हुए हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए ठोस कदम उठाएं।

साहित्य और कला में हिंदी का योगदान

हिंदी साहित्य ने हमेशा से समाज को जागरूक करने, सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और नए विचारों को जन्म देने का काम किया है। लेकिन आज के समय में हिंदी साहित्य को व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचाने के लिए डिजिटल प्लेटफार्म का सहारा लेना जरूरी हो गया है। साथ ही, हिंदी साहित्य का अनुवाद भी अन्य भाषाओं में हो ताकि इसे वैश्विक स्तर पर और व्यापक मान्यता मिल सके।

हिंदी को रोजगार की भाषा बनाना

जब तक हिंदी को रोजगार से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक इसे दूसरी भाषाओं से टक्कर देना मुश्किल होगा। हमें यह समझना होगा कि यदि हम हिंदी को रोजगार की भाषा बनाएंगे, तो अधिक लोग इसे सीखने और अपनाने के लिए प्रेरित होंगे। हिंदी मीडिया, पत्रकारिता, अनुवाद, और कंटेंट क्रिएशन जैसे क्षेत्रों में पहले से ही रोजगार की संभावनाएं हैं, लेकिन इन संभावनाओं को और विस्तार देने की आवश्यकता है।

हिंदी सिनेमा और मीडिया का प्रभाव

हिंदी सिनेमा और मीडिया का योगदान हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में अद्वितीय है। बॉलीवुड फिल्मों और हिंदी टीवी शोज़ ने न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी हिंदी को बढ़ावा दिया है। फिल्मों और धारावाहिकों के माध्यम से हिंदी को ग्लोबल स्तर पर भी पहचान मिल रही है। इस माध्यम का सही इस्तेमाल करके हिंदी को और भी प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है।

हिंदी एक ऐसी भाषा है जो केवल भारत की अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक नहीं, बल्कि इसके आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि हम हिंदी को केवल साहित्य या संस्कृति तक सीमित न रखते हुए, इसे रोजमर्रा के कामकाज, तकनीकी विकास, शिक्षा और रोजगार का एक सशक्त माध्यम बनाएं। हिंदी का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब इसे आधुनिक संदर्भों में पूरी गंभीरता के साथ अपनाया जाएगा।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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