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18 January 2025 6:41 pm

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संविधान के अनुच्छेद 341 में धार्मिक प्रतिबंध के विरोध में राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल की मांग

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जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

आजमगढ़। तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 341 में संशोधन कर धार्मिक प्रतिबंध लगाते हुए मुस्लिम और ईसाई दलितों से आरक्षण छीने जाने के विरोध में राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल ने जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया। इस अवसर पर एक ज्ञापन प्रधानमंत्री को सम्बोधित कर जिलाधिकारी को सौंपा गया। 

राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के प्रदेश अध्यक्ष अनिल सिंह ने अपने बयान में कहा कि स्वतंत्रता का मुख्य उद्देश्य सभी वर्गों की सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक उन्नति के लिए समान अवसर प्रदान करना था। संविधान ने धर्म, जाति, वर्ग, नस्ल, और लिंग के भेदभाव के बिना पिछड़े वर्गों को आरक्षण की सुविधा दी, ताकि उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाया जा सके। लेकिन नेहरू सरकार ने अनुच्छेद 341 में संशोधन कर धार्मिक प्रतिबंध लगाते हुए मुस्लिम और ईसाई दलितों को आरक्षण से वंचित कर दिया, जो संविधान की मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ था।

यूथ विंग के प्रदेश अध्यक्ष नुरूलहोदा अन्सारी ने कहा कि नेहरू जी ने 1936 से मिल रहे सभी धर्मों के दलितों को आरक्षण छीन लिया, जो भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ था। उनका कहना था कि संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं देता है, तो धर्म के आधार पर आरक्षण को कैसे छीना जा सकता है? यह निंदनीय है कि नेहरू सरकार ने 10 अगस्त 1950 को एक विशेष अध्यादेश पास कर अनुच्छेद 341 में यह शर्त लागू कर दी कि हिंदू धर्म को छोड़ अन्य धर्मों को मानने वाले अनुसूचित जाति के सदस्य अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण के योग्य नहीं माने जाएंगे। इस प्रकार, नेहरू सरकार ने धर्म के आधार पर आरक्षण को प्रतिबंधित कर दिया। हालांकि, सिखों को 1956 में और बौद्ध धर्म मानने वालों को 1990 में नए संशोधन के तहत शामिल कर लिया गया, लेकिन मुस्लिम और ईसाई दलित अब भी इस सूची से बाहर हैं, जो अन्यायपूर्ण है। नेहरू द्वारा लागू किया गया ‘कॉन्स्टीटूशन (शिडूल्ड कास्ट) ऑर्डर 1950’ असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और धार्मिक आधार पर भेदभावपूर्ण है और इसे तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए।

पार्टी प्रवक्ता एड0 तलहा रशादी ने बताया कि अनुच्छेद 341 में धार्मिक प्रतिबंध लगाए जाने के कारण कई मुस्लिम और ईसाई जातियाँ, जो हिंदू दलितों की तरह ही पेशेवर हैं, सरकारी नौकरियों, राजनीति, शिक्षा और रोजगार में आरक्षण से वंचित रह गई हैं। यह भेदभाव इन जातियों को पिछड़ा बना देता है, जैसा कि सच्चर कमेटी ने बताया है कि मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति दलितों से भी बदतर है।

राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल इस अन्याय के खिलाफ लगातार आवाज उठाते हुए 10 अगस्त को देशभर में प्रदर्शन कर रही है। पार्टी ने 2014 में जंतर मंतर पर 18 दिनों तक भूख हड़ताल और धरना देकर यूपीए सरकार को चेतावनी दी थी। 10 अगस्त 1950 को नेहरू द्वारा लागू किए गए इस सांप्रदायिक अध्यादेश की सालगिरह के मौके पर, कौंसिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग करती है कि वे संविधान के अनुच्छेद 341 से धार्मिक प्रतिबंध हटा कर दलित मुसलमानों और ईसाइयों के आरक्षण के संवैधानिक अधिकार को बहाल करें। भाजपा यदि सच में पसमांदा मुसलमानों के हितैशी हैं, तो इस प्रतिबंध को तुरंत हटा कर इस वर्ग को न्याय प्रदान करें। 

ज्ञापन देने वालों में जिलाध्यक्ष नोमान अहमद महाप्रधान, जिला महासचिव हाजी मोतीउल्लाह, मिसबाह, शेख शहज़ेब, आमिर, नसीम, बीरबल गौतम, पतिराम, अभिषेक, अज़ीम, अबसार, और शहबाज प्रमुख रूप से शामिल थे।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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