मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
22 साल पहले, 1999 में, कारगिल की ऊँचाइयों पर भारत और पाकिस्तान के बीच एक प्रमुख संघर्ष हुआ। यह लड़ाई तब शुरू हुई जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की पहाड़ियों पर घुसपैठ की और अपने ठिकाने स्थापित कर लिए।
8 मई 1999 को, पाकिस्तान की 6 नॉरदर्न लाइट इंफ़ैंट्री के कैप्टेन इफ़्तेख़ार और लांस हवलदार अब्दुल हकीम अपने 12 सैनिकों के साथ कारगिल की आज़म चौकी पर तैनात थे। उन्होंने देखा कि कुछ भारतीय चरवाहे अपने मवेशियों को चरा रहे थे। पाकिस्तानी सैनिकों ने विचार किया कि इन चरवाहों को बंदी बना लिया जाए, लेकिन अंततः उन्हें छोड़ दिया गया, क्योंकि उनका राशन भी पर्याप्त नहीं था। डेढ़ घंटे बाद, ये चरवाहे भारतीय सैनिकों के साथ वापस लौटे। भारतीय सैनिकों ने इलाके का मुआयना किया और लौट गए।
करीब 2 बजे एक लामा हेलिकॉप्टर वहाँ आया, इतना नीचे कि पायलट का बैज साफ़ देखा जा सकता था। यह भारतीय सैनिकों के लिए संकेत था कि पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की ऊँचाइयों पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड कर्नल अशफ़ाक़ हुसैन ने बताया कि कैप्टेन इफ़्तेख़ार ने भारतीय हेलिकॉप्टरों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन उन्हें इजाज़त नहीं मिली क्योंकि इससे भारतीयों के लिए ‘सरप्राइज़ एलिमेंट’ खत्म हो जाता।
इस बीच, भारत के रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नांडिस को इस घुसपैठ की जानकारी उनके बेटे मानवेंद्र सिंह द्वारा मिली, जिन्होंने अपने एक मित्र से सुनी जानकारी के आधार पर फ़ोन करके अपने पिता को सूचित किया। इस जानकारी के आधार पर फ़र्नांडिस ने अपनी यात्रा रद्द की। भारतीय सेना के प्रमुख जनरल वेदप्रकाश मलिक को भी इस घुसपैठ की जानकारी भारतीय राजदूत के माध्यम से मिली, न कि सैनिक अधिकारियों से।
कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी सैनिकों का कब्जा क्यों था? इंडियन एक्सप्रेस के एसोसिएट एडिटर सुशांत सिंह के अनुसार, पाकिस्तान का उद्देश्य भारत के सुदूर उत्तर में सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ़लाइन एनएच 1 डी को काटकर नियंत्रण प्राप्त करना था। पाकिस्तान के जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने 1984 में भारत द्वारा सियाचिन पर कब्जा किए जाने के बाद से इस क्षेत्र को खाली कराने की कई बार कोशिश की थी, लेकिन सफल नहीं हो पाए थे।
चौंकाने वाली बात यह थी कि भारतीय खुफिया एजेंसियों को इस बड़े ऑपरेशन की भनक तक नहीं लगी। भारत के पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और कारगिल जाँच समिति के सदस्य सतीश चंद्रा ने कहा कि रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) को इस घुसपैठ का पता तब चलता जब पाकिस्तानी अपने बलों को आगे बढ़ाते, क्योंकि उन्होंने अतिरिक्त बल नहीं मंगवाया था।
इस तरह, कारगिल युद्ध ने यह स्पष्ट कर दिया कि सैन्य रणनीति और खुफिया एजेंसियों की सतर्कता कितनी महत्वपूर्ण होती है।
पाकिस्तान की रणनीति और भारतीय सेना की प्रतिक्रिया पर गहन विश्लेषण के बाद यह स्पष्ट होता है कि कारगिल युद्ध ने एक जटिल सैन्य परिदृश्य को उजागर किया। पाकिस्तान का रणनीतिक प्लान अत्यंत सुविचारित और प्रभावी था।
पाकिस्तान की सैन्य योजना
पाकिस्तान ने कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर एक बहुत बड़े क्षेत्र को अपने नियंत्रण में लिया। जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने इस योजना को “ज़बरदस्त” बताया। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘इन द लाइन ऑफ़ फ़ायर’ में लिखा है कि भारतीय सेना को पाकिस्तानी चौकियों को खाली करने में कठिनाइयाँ आईं। मुशर्रफ के अनुसार, भारतीय सेना ने इन चौकियों पर कई हमले किए, लेकिन प्रारंभिक दिनों में उन्हें सफलता नहीं मिली। भारतीय सेना के 600 से अधिक सैनिक मारे गए और 1500 से अधिक घायल हुए। मुशर्रफ का कहना है कि वास्तविक हताहतों की संख्या इससे भी दोगुनी थी।
भारतीय सेना की चुनौती
पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल हरचरणजीत सिंह पनाग ने भारतीय सेना के प्रदर्शन की आलोचना की। उन्होंने कहा कि शुरुआत में भारतीय सेना का प्रदर्शन “बिलो पार” था और पहला महीना “शर्मनाक” था। उन्हें लगता है कि यह एक मुश्किल ऑपरेशन था, जिसमें भारतीय सेना को ऊँचाई पर स्थित पाकिस्तानी सैनिकों का सामना करना पड़ा। पनाग ने इसे सीढ़ियों पर चढ़ने की तुलना की, जिसमें भारतीय सैनिक नीचे थे और पाकिस्तानी ऊपर। इस युद्ध में ऑक्सीजन की कमी और आक्रामक पर्वतीय लड़ाई में ट्रेनिंग की कमी भी समस्याएँ थीं।
भारत की रणनीति और युद्ध का मोड़
जून के दूसरे सप्ताह में भारतीय सेना को बढ़ती सफलता मिलनी शुरू हुई। जनरल वेदप्रकाश मलिक ने कहा कि ‘तोलोलिंग पर विजय’ इस युद्ध का निर्णायक मोड़ था। यह भारतीय सेना की पहली सफल संनियोजन थी। पनाग के अनुसार, यह लड़ाई इतनी निकट थी कि सैनिक एक-दूसरे को गालियाँ दे रहे थे। इस लड़ाई में भारतीय सेना को भारी हताहतों का सामना करना पड़ा, लेकिन अंततः भारतीय सेना ने अपनी ताकत और दृढ़ता को साबित किया।
पाकिस्तान के हवाई हमले और भारतीय जवाब
पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय वायु सेना के दो जेट और एक हेलिकॉप्टर को मार गिराया। मुशर्रफ का कहना था कि अगर पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व ने उनका समर्थन किया होता, तो परिणाम अलग हो सकते थे। लेकिन भारतीय वायु सेना और बोफ़ोर्स तोपों ने पाकिस्तानी ठिकानों पर प्रभावी हमला किया, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हो गई। नसीम ज़ेहरा की किताब ‘फ़्रॉम कारगिल टू द कू’ में वर्णित है कि भारतीय हमलों ने पाकिस्तानी चौकियों को बुरी तरह क्षति पहुँचाई।
अंतर्राष्ट्रीय दबाव और युद्ध का समापन
जुलाई के अंत तक, भारतीय सेना की सफलता की गति बढ़ गई। अंततः नवाज़ शरीफ़ को युद्ध विराम के लिए अमेरिका की शरण लेनी पड़ी। स्वतंत्रता दिवस (4 जुलाई, 1999) पर नवाज़ शरीफ़ की बिलकुल अप्रिय मुलाकात क्लिंटन से हुई। क्लिंटन ने शरीफ़ को स्पष्ट किया कि अगर पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को बिना शर्त वापस नहीं बुलाया, तो उसे दोषी ठहराया जाएगा। इस दबाव के चलते शरीफ़ की स्थिति कमजोर हो गई और भारत ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया।
इस प्रकार, कारगिल युद्ध ने सैन्य रणनीति, खुफिया विफलताओं, और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बीच एक जटिल सैन्य परिदृश्य को स्पष्ट किया।
Author: samachar
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