दुर्गा प्रसाद शुक्ला की खास रिपोर्ट
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने मंगलवार को घोषणा की कि राहुल गांधी को विपक्ष का नेता चुना गया है। कांग्रेस संसदीय पार्टी (सीपीपी) के अध्यक्ष ने प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब को एक चिट्ठी लिखकर इस फैसले की जानकारी दी है।
राहुल गांधी को विपक्ष का नेता बनाने का निर्णय लोकसभा स्पीकर के चुनाव से एक दिन पहले लिया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि विपक्ष आगामी सत्र में आक्रामक तेवर अपनाने की तैयारी में है।
तीन सप्ताह पहले, जब चुनावी नतीजे कांग्रेस और विपक्ष के बेहतर प्रदर्शन की ओर इशारा कर रहे थे, राहुल गांधी कांग्रेस दफ्तर में मीडिया से मिलने पहुंचे। उस समय उनके चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी की उपस्थिति में, लाल जिल्द वाले संविधान को हाथ में लेकर राहुल गांधी बोले, “लड़ाई संविधान को बचाने की थी।” संविधान की कॉपी उनकी चुनावी रैलियों और यात्राओं में कई बार दिखाई दी।
राहुल गांधी का यह उत्साही रूप मार्च में उनके तल्ख़ रुख़ से बिल्कुल अलग था, जब उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “आज भारत में लोकतंत्र नहीं है।” उस समय पार्टी ने आरोप लगाया था कि उनके बैंक अकाउंट फ्रीज़ कर दिए गए थे और पार्टी के लिए चुनाव लड़ना एक बड़ी चुनौती बन गया था।
‘लोकतंत्र खतरे में है’ और ईडी, सीबीआई जैसी संस्थाओं के कथित ‘दुरुपयोग’ के खिलाफ आवाज उठाने वाले विपक्ष से शायद ही किसी विश्लेषक को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी। इस चुनाव को विपक्ष के लिए ‘करो या मरो’ का संघर्ष बताया गया था।
राहुल गांधी के इस नए पद के साथ, विपक्ष ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह संसद में अपने मुद्दों पर मजबूती से खड़ा रहेगा और सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करेगा।
इंडिया गठबंधन की बैठकों, कांग्रेस दफ़्तर के बाहर, और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान कांग्रेस और राहुल गांधी का उपहास करने वाले कई पत्रकार और ‘जानकार’ अब अपनी धारणाएँ बदल रहे हैं।
कई अन्य पार्टियों की तुलना में संसाधनों में बहुत आगे भाजपा का विशाल बहुमत से सत्ता में वापस आना लगभग तय माना जा रहा था। लेकिन अब सुर बदल गए हैं, और यह पहली बार होगा जब प्रधानमंत्री मोदी के सामने गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने की चुनौती होगी।
साल 2014 में 44 सीटों पर और 2019 में 52 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस का इस बार 99 सीटें जीतना और इंडिया गठबंधन का 234 सीटों तक पहुंचना विपक्ष के लिए एक बड़ी ‘सफलता’ मानी जा रही है, हालांकि यह आंकड़ा भाजपा की कुल सीटों से कम है। कांग्रेस का वोट शेयर करीब दो प्रतिशत बढ़ा है।
कई चुनावी विश्लेषक कह रहे हैं कि इस चुनाव में राहुल गांधी ने मुद्दों की जमीन तैयार की, और भाजपा ने अपना चुनावी प्रचार उसके विरोध में बनाया। बात सिर्फ मुद्दों तक नहीं रही, बल्कि राहुल गांधी के ‘खटाखट’ जैसे जुमले भी खूब चले।
शुरुआत में जो चुनाव मीडिया में एकतरफा दिखाई दे रहा था, जमीन पर एक दूसरी इबारत लिखी जा रही थी।
राहुल गांधी की यात्रा में हिस्सा लेने वाले और स्वराज अभियान से जुड़े योगेंद्र यादव कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन का श्रेय राहुल गांधी को देते हैं। वे कहते हैं, “जब माहौल हिंदुत्व की पिच पर ही बैटिंग का था, उन्होंने ऐसा नहीं किया। उनकी निजी ज़िद और दृढ़ विश्वास बड़ी बात थी।”
योगेंद्र यादव का मानना है, “अगर कांग्रेस को 60 सीटें मिलतीं तो उन पर सारा आरोप लगाया जाता, तो इस प्रदर्शन का कुछ तो श्रेय उनको मिलना चाहिए।”
इंडिया गठबंधन के इस आंकड़े तक पहुंचने में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी, और पश्चिम बंगाल में टीएमसी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
समाजवादी पार्टी के नेता जावेद अली खान ने कहा, “हम निचले तबके, उपेक्षित, अल्पसंख्यक, पिछले वर्गों को प्राथमिकता पर रखते हैं। राहुल गांधी भी इन वर्गों के हितों को आगे रखकर बात करते हैं। राहुल गांधी और अखिलेश यादव की अच्छी केमिस्ट्री बन गई थी।”
यह ‘केमिस्ट्री’ ही थी जो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेताओं के निशाने पर रही।
वरिष्ठ पत्रकार संजीव श्रीवास्तव ने कहा, “इन चुनावों में अगर कोई व्यक्ति मोदी के ख़िलाफ़ झंडा उठाकर अंगद की तरह पांव गड़ाकर खड़ा रहा तो वो राहुल गांधी थे। साल 2014 के बाद आज पहली बार उनको ईमानदारी से अपनी पीठ थपथपाने का अवसर मिला है।”
कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा चुनावी फ़ैसले को मोदी विरोधी मत मानते हैं और कहते हैं कि ताज़ा आंकड़ों ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी के विकल्प का ‘गंभीर दावेदार’ बना दिया है।
करीब 150 सांसदों का निलंबन, अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन का भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल भेजा जाना, राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता से अयोग्यता, कांग्रेस के घोषणापत्र और राहुल गांधी पर प्रधानमंत्री मोदी सहित वरिष्ठ भाजपा नेताओं के लगातार हमले, राहुल को वजह बताते हुए पार्टी नेताओं के इस्तीफ़े, राज्यों में पार्टी की चुनावी हार – पिछले कुछ महीनों में विपक्ष और राहुल गांधी के समक्ष चुनौतियों की कमी नहीं रही। यहां तक कि कांग्रेस के अस्तित्व पर भी सवाल उठे।
इंडिया गठबंधन की शुरुआती बैठकों और चुनावी सीटों की तालमेल में देरी, महीनों संयुक्त रैलियों और घोषणापत्र का न हो पाना – विपक्ष के सबसे बड़े संगठन होने के कारण कांग्रेस आलोचकों के निशाने पर रही। बार-बार कहा गया कि विपक्ष के पास न चेहरा है, ना नैरेटिव।
साथ ही भाजपा राहुल गांधी को एक ऐसे नेता के तौर पर पेश करती रही है जो ऊंचे पदों पर अपनी काबिलियत के बल पर नहीं, बल्कि गांधी सरनेम की वजह से पहुंचे थे।
साल 2014 और 2019 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार का ठीकरा उनके सिर फोड़ा गया, हालांकि कई कांग्रेस समर्थक इससे सहमत नहीं थे।
एक कांग्रेस नेता के मुताबिक, “चुनाव में बुरे प्रदर्शन के बावजूद ये राहुल गांधी ही थे जो अपने विश्वास पर दृढ़ रहे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि लोकतंत्र में सबसे पहले आम लोग आते हैं जिन्होंने अपने प्रतिनिधियों को चुना है।”
राहुल के आलोचक हमेशा कहते रहे कि वो राजनीतिक ताक़त तो चाहते हैं लेकिन ज़िम्मेदारी नहीं, और ये भी कि उन तक पहुंच आसान नहीं है। लोकसभा चुनावों के अलावा कई विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार ने राहुल गांधी के नेतृत्व पर लगातार सवाल खड़े किए।
हालांकि बीच-बीच में ऐसे भी दौर आए जब पार्टी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन चुनावों में जीत में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा लगातार आगे रही।
राहुल गांधी की राजनीतिक यात्रा उतार-चढ़ाव भरी रही है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली करारी हार ने उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए। आलोचक यह भी कहते रहे कि राहुल गांधी की राजनीतिक सोच और निर्णय लेने की क्षमता में कमी है।
हालांकि, पार्टी के कई समर्थक यह मानते हैं कि राहुल गांधी ने हमेशा अपने सिद्धांतों और विचारधारा पर अडिग रहते हुए राजनीति की है। उनका मानना है कि राहुल गांधी का मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र की रक्षा करना और आम जनता के हितों की सुरक्षा करना है।
कांग्रेस के कई नेताओं का यह भी कहना है कि राहुल गांधी ने चुनौतियों के बावजूद अपने विश्वास को नहीं डगमगाने दिया और लगातार अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर रहे। उनकी नेतृत्व शैली और राजनीति में उनकी दृढ़ता के कारण पार्टी ने कई राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया।
राहुल गांधी की इस यात्रा ने साबित कर दिया है कि राजनीति में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि नेतृत्वकर्ता अपने विश्वास और सिद्धांतों पर कायम रहे। राहुल गांधी ने अपने नेतृत्व में यह दिखाया कि वह राजनीति में सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि जनता के हितों और लोकतंत्र की रक्षा के लिए हैं।
आलोचनाओं और चुनौतियों के बावजूद राहुल गांधी ने कांग्रेस को एकजुट रखने और उसे आगे बढ़ाने का प्रयास किया है।
उनके समर्थकों का मानना है कि आने वाले समय में उनकी मेहनत और संघर्ष का फल जरूर मिलेगा और कांग्रेस एक बार फिर देश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बनकर उभरेगी।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."