इरफान अली लारी की रिपोर्ट
पिछले दो लोकसभा चुनावों के परिणामों की तुलना देखिए जो बहुत ही दिलचस्प और महत्वपूर्ण है। यह आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरणों में कैसे बदलाव आया है।
2019 में:
– भाजपा: 49.98% वोट शेयर
– सपा: 18.11% वोट शेयर
– बसपा: 19.43% वोट शेयर
– कांग्रेस: 6.36% वोट शेयर
2024 में:
– भाजपा: 41.3% वोट शेयर
– सपा (इंडिया गठबंधन के तहत): 33.59% वोट शेयर
– कांग्रेस (इंडिया गठबंधन के तहत): 9.46% वोट शेयर
– बसपा: 9.39% वोट शेयर
इन आंकड़ों के आधार पर निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:
- भाजपा का वोट शेयर 49.98% से घटकर 41.3% हो गया, जो कि लगभग 8.68% की गिरावट है।
- सपा और कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा है। सपा का वोट शेयर 18.11% से बढ़कर 33.59% हो गया और कांग्रेस का वोट शेयर 6.36% से बढ़कर 9.46% हो गया।
- बसपा का वोट शेयर भी गिरा है, जो 19.43% से घटकर 9.39% हो गया।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि यूपी में भाजपा का वोट शेयर घटा है और इंडिया गठबंधन (सपा और कांग्रेस) को इसका फायदा हुआ है। बसपा का भी प्रभाव कम हुआ है।
यह परिणाम दर्शाते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं और विपक्षी पार्टियों ने भाजपा के वोट शेयर में सेंध लगाने में सफलता पाई है। यह बदलाव राजनीतिक रणनीतियों, गठबंधनों और जमीनी स्तर पर काम करने के तरीकों का परिणाम हो सकता है।
राष्ट्रीय स्तर पर भी गिरावट
राष्ट्रीय वोट शेयर और सीटों की संख्या के बीच संबंध को समझना अक्सर चुनौतीपूर्ण हो सकता है, और इसके पीछे कई कारक होते हैं। आइए इसे विस्तृत रूप में समझें:
- वोट शेयर का असमान वितरण
भाजपा 2019 के मुकाबले 2024 में भाजपा का राष्ट्रीय वोट शेयर मामूली रूप से घटा है। हालांकि, वोट शेयर में इस मामूली गिरावट के बावजूद, भाजपा की सीटों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। इसका कारण यह हो सकता है कि भाजपा के वोट शेयर में गिरावट उन राज्यों में हुई है जहां मुकाबला बेहद कड़ा था। इन राज्यों में कुछ प्रतिशत वोटों का बदलाव भी सीटों की संख्या में बड़ा अंतर ला सकता है।
कांग्रेस: कांग्रेस ने अपने वोट शेयर को थोड़ा बढ़ाया है, और यह बढ़ोतरी उन राज्यों में हो सकती है जहां कांग्रेस की स्थिति बेहतर हुई है। परिणामस्वरूप, कांग्रेस ने अधिक सीटें जीती हैं, क्योंकि उन्होंने उन क्षेत्रों में अधिक प्रतिस्पर्धा की और मामूली वोट शेयर में वृद्धि का फायदा उठाया।
2.क्षेत्रीय गठबंधन और गठबंधन
कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन ने भी इस परिणाम को प्रभावित किया होगा। उदाहरण के लिए, कांग्रेस ने कुछ राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन किया होगा, जिससे उन्हें उन राज्यों में वोट शेयर और सीटें दोनों बढ़ाने में मदद मिली होगी। वहीं, भाजपा को इन राज्यों में नुकसान उठाना पड़ा हो सकता है।
3.संघटक राज्यों का प्रभाव
राष्ट्रीय वोट शेयर पूरे देश के विभिन्न राज्यों के वोट शेयर का योग होता है। कुछ राज्य ऐसे हो सकते हैं जहां किसी पार्टी ने बड़ी संख्या में वोट हासिल किए हों, लेकिन सीटें कम जीती हों, और कुछ राज्य ऐसे हो सकते हैं जहां कम वोट शेयर के बावजूद अधिक सीटें मिली हों। यह असमानता भी सीटों की संख्या में बड़े अंतर का कारण हो सकती है।
4.मुद्दा आधारित मतदान
2024 के चुनाव में मुद्दों की भिन्नता और स्थानीय परिदृश्य भी भूमिका निभा सकते हैं। यदि किसी राज्य में कोई विशेष मुद्दा प्रमुख हो, तो वहां वोटों का विभाजन राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के वोट शेयर से अलग हो सकता है।
उदाहरण
यदि भाजपा ने एक बड़े राज्य में 50% वोट शेयर खो दिया और इसके कारण कई सीटें खो दीं, लेकिन दूसरे छोटे राज्यों में 5-10% वोट शेयर हासिल किया, तो राष्ट्रीय स्तर पर कुल वोट शेयर में मामूली गिरावट दिखेगी, लेकिन सीटों की संख्या में बड़ा अंतर आ सकता है।
– वहीं, कांग्रेस ने यदि उन राज्यों में अपनी स्थिति मजबूत की जहां वे पहले कमजोर थीं, तो उन्हें वहां से अधिक सीटें मिल सकती हैं, भले ही राष्ट्रीय वोट शेयर में मामूली वृद्धि हो।
इस प्रकार, सीटों की संख्या में अंतर का कारण राष्ट्रीय वोट शेयर का असमान वितरण और विभिन्न राज्यों में अलग-अलग चुनावी परिदृश्य होता है।
भाजपा की भी बढ़त
उपरोक्त बहुत सटीक उदाहरण दिए गए हैं जो स्पष्ट करते हैं कि कैसे राष्ट्रीय वोट शेयर और सीटों की संख्या के बीच संबंध काम करता है। आइए इन उदाहरणों का विश्लेषण करके इसे और विस्तार से समझें:
1.तमिलनाडु
2019 में भाजपा का वोट शेयर: 3.6%
2024 में भाजपा का वोट शेयर: 11.2%
सीटों की संख्या: कोई इजाफा नहीं
तमिलनाडु में भाजपा का वोट शेयर बढ़ा है, लेकिन इससे सीटों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई। इसका कारण यह हो सकता है कि भाजपा ने अपनी वोट हिस्सेदारी तो बढ़ाई, लेकिन यह बढ़ोतरी इतनी अधिक नहीं थी कि वह सीटें जीत सके। तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके जैसी मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा है, और भाजपा का वोट शेयर बढ़ना पर्याप्त नहीं था सीटें जीतने के लिए।
2.पंजाब
2019 में भाजपा का वोट शेयर: 9.6%
2024 में भाजपा का वोट शेयर: 18.6%
सीटों की संख्या: कोई सीट नहीं
पंजाब में भाजपा का वोट शेयर दोगुना हो गया, लेकिन गठबंधन की कमी के कारण पार्टी को कोई सीट नहीं मिली। पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन टूटने का असर दिखा और भले ही वोट शेयर बढ़ा हो, पार्टी को इसका फायदा सीटों की संख्या में नहीं मिला।
3.बिहार
2019 में भाजपा का वोट शेयर: 24.1%
2024 में भाजपा का वोट शेयर: 20.5%
सीटों की संख्या में नुकसान: 5 सीटों का नुकसान
बिहार में भाजपा का वोट शेयर 3.6% गिरा, लेकिन इस गिरावट के कारण पार्टी को पांच सीटों का नुकसान हुआ। बिहार में यह गिरावट महत्वपूर्ण रही क्योंकि यह राज्य अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है और थोड़े से वोट शेयर के नुकसान से सीटों की संख्या में बड़ा फर्क पड़ता है।
इन उदाहरणों से निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:
1.वोट शेयर का असमान वितरण
भाजपा ने कुछ राज्यों में वोट शेयर तो बढ़ाया लेकिन यह बढ़ोतरी सीटों में परिवर्तित नहीं हो सकी। यह इसलिए हुआ क्योंकि उन राज्यों में प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक थी और पार्टी की बढ़त पर्याप्त नहीं थी।
2.गठबंधन की भूमिका
पंजाब का उदाहरण दिखाता है कि गठबंधन टूटने का असर पार्टी की सीटों की संख्या पर पड़ता है, भले ही वोट शेयर बढ़ा हो। गठबंधन चुनावों में सीटें जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3.प्रतिस्पर्धात्मक राज्यों का असर
बिहार जैसे प्रतिस्पर्धात्मक राज्यों में थोड़े से वोट शेयर में गिरावट भी सीटों की संख्या में बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। इन राज्यों में कुछ प्रतिशत वोट शेयर का बदलाव भी सीटों की संख्या पर बड़ा प्रभाव डालता है।
इस प्रकार, वोट शेयर और सीटों की संख्या के बीच का संबंध सीधा नहीं होता और यह विभिन्न राज्यों की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति, गठबंधन, और स्थानीय परिदृश्यों पर निर्भर करता है।
वोटों के बदलाव से बदली स्थिति
पश्चिम बंगाल में पार्टी को मात्र 1.6 फीसदी वोटों की गिरावट दिखी। इस कारण पार्टी ने छह सीटें खो दीं। हालांकि, सबसे नाटकीय उदाहरण महाराष्ट्र में था। यहां भाजपा का हिस्सा 27.6 फीसदी से 1.4 प्रतिशत की गिरावट के साथ 26.2 फीसदी हो गया। इससे उसे पिछली बार की तुलना में आधी से भी कम सीटें मिलीं। पिछली बार पार्टी को 23 सीटें मिली थी। इस बार 10 सीटों पर ही भाजपा जीत पाई। कांग्रेस ने लगभग इसके उलट रिजल्ट दिया। महाराष्ट्र में वोट शेयर में एक प्रतिशत से भी कम की वृद्धि हुई। महाराष्ट्र में भाजपा का वोट शेयर 16.3 फीसदी से बढ़कर 17.1 फीसदी तक पहुंचा। इससे यहां पार्टी के सीटों की संख्या एक से बढ़कर 13 हो गई। राजस्थान में कांग्रेस ने अपना वोट शेयर 34.2 फीसदी से बढ़ाकर 37.9 फीसदी तक पहुंचाया। इसका असर दिखा कि 2019 में शून्य पर सिमटने वाली कांग्रेस को 8 सीटों पर जीत मिली।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के वोट शेयर में 6.3 फीसदी से 9.5 फीसदी तक की वृद्धि हुई। इससे पार्टी की सीटों की संख्या एक से बढ़कर छह हो गई। देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी सपा ने लोकसभा में अपने वोट शेयर को 18 फीसदी से 33.5 फीसदी तक बढ़ाया। पार्टी ने 37 सीटों का उच्चतम आंकड़ा हासिल किया। कांग्रेस के 9.5 फीसदी वोट शेयर के साथ राज्य में इंडिया ब्लॉक का वोट शेयर 43 फीसदी तक पहुंचा। इससे एनडीए को कड़ी टक्कर मिली। पिछली बार, सपा-बसपा गठबंधन का 37.3 फीसदी एनडीए के 50 फीसदी से अधिक वोट शेयर से बहुत दूर था। विपक्षी गठबंधन में बसपा की अनुपस्थिति के कारण जिस अंतर की बहुत कम लोगों ने उम्मीद की थी, उसमें खेल हो गया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."