दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है। कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है, लेकिन दिल्ली के रास्ते में नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ा बैरियर लखनऊ ने लगा दिया। इस बार के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को उत्तर प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा है।
प्रदेश की सबसे हॉट सीट बनी फैजाबाद-अयोध्या लोकसभा सीट पर भी भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। अयोध्या में भाजपा की हार ने उत्तर प्रदेश में हुई 1993 विधानसभा चुनाव की याद दिला दी। उस समय विधानसभा चुनाव में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी के काशीराम एक साथ आए थे। यूपी के सियासी मैदान में नारा गूंजा था, ‘मिले मुलायम काशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’। कुछ यही स्थिति इस बार देखी गई।
यूपी के सियासी मैदान में अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ आए और यूपी की सियासत में भाजपा पिछले एक दशक में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इस सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद निर्णायक बढ़त बना चुके हैं।
अयोध्या में विकास नहीं आया काम
अयोध्या में विकास करना कोई काम नहीं आया। लोकसभा चुनाव 2019 के बाद अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को रामलला के मंदिर की आधारशिला रखने अयोध्या आए। कोरोना के खतरे के बीच रामलला का मुद्दा देश भर में गरमाया। 22 जनवरी को इस साल रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। इस समारोह में भाग लेने पीएम नरेंद्र मोदी पहुंचे थे। उनके साथ-साथ देश भर से विशिष्ट लोगों का यहां आगमन हुआ। हालांकि, विपक्ष का कोई भी नेता इस कार्यक्रम में भाग लेने नहीं आया। इस पर खूब राजनीति हुई। इसके बाद भी फैजाबाद सीट पर कोई असर नहीं पड़ा।
बीजेपी के हार के कारण
बीजेपी की हार के कारणों की चर्चा शुरू हो गई है। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा इस सीट पर जीत को लेकर कॉन्फिडेंट दिख रही थी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और पीएम मोदी को अयोध्या में मिले रेस्पांस के आधार पर भाजपा की जीत तय मानी जा रही थी। हालांकि, पार्टी को सफलता नहीं मिल पाई। ये हैं मुख्य कारण…
पहला कारण: लल्लू सिंह के खिलाफ क्षेत्र में एंटी इन्कंबैंसी थी। लोगों की नाराजगी उनके क्षेत्र में मौजूदगी को लेकर थी। उम्मीदवार से लोगों की नाराजगी उन्हें ले डूबी। उम्मीदवार के प्रति यह गुस्सा लोगों के भीतर बदलाव के रूप में उभरने लगा।
दूसरा कारण: भाजपा उम्मीदवार लगातार 10 साल से सांसद थे। उनको बदले जाने का दबाव स्थानीय स्तर के नेताओं की ओर से भी बनाया जा रहा था। इसके बाद भी भाजपा ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
तीसरा कारण: भाजपा यहां पर ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार हो गई। बीजेपी ने माना कि उम्मीदवार के चेहरे की जगह अयोध्या में पीएम मोदी का चेहरा चलेगा। यह सफल नहीं हो पाया।
चौथा कारण: लल्लू सिंह पर क्षेत्र में जमीन खरीद और फिर उसे ऊंचे दामों में बेचने का आरोप लगा। दरअसल, राम मंदिर पर फैसले के बाद जमीन खरीद-बिक्री का मामला जोर-शोर से उठा था। इस पर बड़ा जोर दिया गया।
पांचवां कारण: जातीय समीकरण को साधने में भाजपा सफल नहीं हो पाई। पन्ना प्रमुखों का काम पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया। अखिलेश यादव इस सीट पर पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए को एकजुट करने में सफल हो गए। यह भाजपा की हार का कारण बन गई।
करोड़ों की विकास योजनाएं नहीं आई काम
अयोध्या में रामलला मंदिर के निर्माण के साथ करोड़ों की विकास योजनाओं को पूरा कराया गया। पिछले दिनों पीएम मोदी ने 15,700 करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास-लोकार्पण किया था। अयोध्या में भव्य रेलवे स्टेशन का पुननिर्माण किया गया है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा का विकास किया जा रहा है। अयोध्या रामलला मंदिर के साथ-साथ सड़कों से लेकर गलियों तक को दुरुस्त किया गया। लेकिन, यह सब अयोध्यावासियों को रास नहीं आया। अयोध्या में 2017 के बाद से हर साल दिवाली पर दीपोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रकार के आयोजनों का भी प्रभाव नहीं दिखा।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."