आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 की सरगर्मियां तेज हैं। जैसे-जैसे चरण दर चरण वोटिंग हो रही है वैसे-वैसे सियासी पारा भी बढ़ता जा रहा है। पूर्व सांसद धनंजय सिंह के ‘जीतेगा जौनपुर जीतेंगे हम’ के नारे के साथ उत्तर प्रदेश की जौनपुर सीट हॉट सीट बन गई है। हालांकि एक पुराने मामले में धनंजय सिंह को 7 साल की सजा होने के बाद उनके चुनाव लड़ने की संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं। जौनपुर सीट से पूर्व सांसद की पत्नी श्रीकला रेड्डी बसपा के टिकट पर चुनावी दंगल में उतरी है।
उधर बीजेपी से बढ़ी करीबियों के बीच सपा विधायक और धनंजय सिंह के जानी दुश्मन अभय सिंह ने पूर्व सांसद को उत्तर भारत का डॉन बताकर प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर की राजनीति का सियासी तापमान बढ़ा दिया है। लेकिन आज के ये जानी दुश्मन एक जमाने में जिगरी दोस्त हुआ करते थे।
समाजवादी पार्टी के विधायक अभय सिंह के आरोपों के बाद अभय सिंह और धनंजय सिंह की दुश्मनी की चर्चाएं फिर से होने लगी हैं।
लेकिन एक दौर हुआ करता था जब ये दोनों बाहुबली एक-दूसरे के दोस्त हुआ करते थे। अभय और धनंजय की दुश्मनी के बारे में जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा बताते हैं कि आज एक-दूसरे के जानी दुश्मन अभय सिंह और धनंजय सिंह की कहानी किसी बॉलिवुड फिल्म के प्लॉट सरीखी है।
धनंजय सिंह और अभय सिंह… 90 के दशक में दोस्त से दुश्मन बने दो बाहुबली फिर आमने-सामने हैं। जौनपुर से बसपा के टिकट पर भले ही श्रीकला रेड्डी चुनाव लड़ रहीं हो लेकिन साख धनंजय सिंह की दांव पर है। वहीं, दूसरी तरफ धनंजय सिंह के चिर प्रतिद्वंद्वी और हाल ही में भाजपा के खेमे में आए विधायक अभय सिंह का भी जौनपुर की राजनीति से नाता है। अभय सिंह के नाना राजकेशर सिंह कभी जौनपुर से बीजेपी के सांसद थे, अब इस नाते अभय सिंह भी जौनपुर में भाजपा प्रत्याशी कृपा शंकर सिंह के लिए प्रचार कर रहे हैं। ऐसे में एक तरफ धनंजय सिंह तो दूसरी तरफ अभय सिंह आमने-सामने हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय में एक साथ छात्र राजनीति की शुरुआत करने वाले अभय सिंह और धनंजय सिंह कभी एक ही सिक्के के दो पहलू थे, लेकिन आज नदी के दो अलग-अलग किनारे। 90 के दशक के ये दो दोस्त आखिर क्यों दुश्मन बन गए? आज क्यों धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी कह रही हैं कि उनके पति धनंजय सिंह की जान को खतरा है? दूसरी तरफ अभय सिंह कह रहे है धनंजय सिंह लॉरेंस बिश्नोई का करीबी है उससे बड़ा कोई गुंडा नहीं है। वह उत्तर भारत का सबसे बड़ा डॉन है?
नवल कांत सिन्हा ने साल 2004 में ‘मौत माफिया और सियासत’ नाम की एक किताब लिखी थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया और राजनीति पर सालों पहले लिखी गई इस किताब में अभय और धनंजय की दोस्ती से लेकर जानी दुश्मन बनने तक की पूरी कहानी है। किताब के मुताबिक, एक दौर था जब लखनऊ विश्वविद्यालय में अभय और धनंजय की दोस्ती की कसमें खाई जाती थीं। छात्र राजनीति को लेकर अभय और धनंजय की दुश्मनी अजय कुमार सिंह से हुई थी। ये दुश्मनी इतनी गहराई कि विश्वविद्यालय परिसर से लेकर राजधानी में हत्याओं का दौर शुरू हो गया था। इस घटनाक्रम कई मांओं ने अपने बेटे खोए, कैरियर की खातिर लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने आए कई छात्र अपराधी बन गए थे। अंत में अजय कुमार सिंह की हत्या हो गई। अजय सिंह एलयू के हबीबुल्लाह हॉस्टल में रहते थे।
अजय कुमार सिंह और अनिल सिंह वीरू बेहद करीबी दोस्त हुआ करते थे। अनिल सपा के नेता हैं। अरुण उपाध्याय को अभय और धनंजय सिंह छात्र यूनियन का चुनाव लड़ा रहे थे उस समय दोनों लोग बहुत घनिष्ट दोस्त थे। लेकिन बाद में धीरे-धीरे अभय और धनंजय में दूरियां बढ़ीं, मनमुटाव हुआ और फिर संबंध खत्म हो गए थे। इसके बाद दोनों के बीच दुश्मनी का दौर शुरू हो गया था।
नवल कांत सिन्हा लिखते हैं कि दोनों के पास ऐसे छात्रों की जमात थी, जो उनके लिए जान दे सकती थी और जरूरत पड़ने पर किसी की जान ले सकती थी। अचानक दोनों के बीच ‘दम और दाम के साम्राज्य’ पर कब्जा करने की होड़ शुरू हो गई थी। यहीं से दोनों ने खुद को एक-दूसरे से ज्यादा ताकतवर दिखाने की कोशिश शुरू कर दी थी।
लखनऊ से दोनों के बीच शुरू हुआ मुकाबला उनके अपने-अपने इलाकों तक फैला था। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते दोनों ने अपने-अपने क्षेत्र में लोकप्रिय होने के सारे हथकंडे भी अपनाए थे। दोनों विधानसभा चुनाव के महासमर में भी कूदे। साल 2002 में अभय सिंह ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर फैजाबाद से विधानसभा के लिए दांव लगाया था। धनंजय सिंह ने लोकजनशक्ति पार्टी के टिकट पर जौनपुर के रारी इलाके से चुनाव लड़ा था। इसमें धनंजय सिंह तो विधानसभा के लिए चुन लिए गए थे लेकिन अभय सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा था। उसके बाद दोनों के बीच कटुता और वैमनस्यता और बढ़ गई।
बताया जाता है कि 4 सितंबर 2002 को वाराणसी के नदेसर इलाके में अभय सिंह गुट ने धनंजय सिंह की कार पर हमला किया था। लेकिन उस हमले में धनंजय सिंह बच गए थे। धनंजय सिंह ने इस हमले को लेकर अभय सिंह पर आरोप भी लगाए थे। रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी। इस हमले के बाद दोनों के बीच अदावत परवान चढ़ गई थी। दोनों पूर्वांचल से लेकर लखनऊ तक एक-दूसरे को ताकत दिखाते रहे।
इस दौरान कभी एक का पलड़ा भारी रहता तो कभी दूसरे का। विधायक बनने के बाद धनंजय सिंह की हैसियत बड़ी हो गई थी। राजा भैया का संरक्षण मिलने से उनका कद और बड़ा हो गया था। दूसरी तरफ, मुख्तार अंसारी के करीब आकर अभय सिंह ने भी अपनी ताकत में इजाफा कर लिया था। बीजेपी विधायक कृष्णा नंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी और अभय सिंह के बीच फोन पर बात हुई थी। उसका ऑडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। अभय सिंह के मुख्तार अंसारी से संबंध थे।
फिलहाल 2024 चुनावी संग्राम के बीच सपा विधायक अभय सिंह के आरोपों के बाद सबकी निगाहें धनंजय सिंह पर टिकी हुई हैं। धनंजय सिंह फिलहाल बरेली जेल में बंद हैं। लेकिन हाई कोर्ट से जमानत मिल चुकी है। ऐसे में माना जा रहा है कि जल्द ही धनंजय सिंह जेल से बाहर आ सकते हैं। धनंजय के बाहर आते ही एक ओर जहां जौनपुर का राजनीति पारा बढ़ने की संभावना है, वहीं अभय सिंह के आरोपों पर भी धनंजय अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
फिलहाल धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी ने मोर्चा संभाल रखा है। वह लगातार अभय सिंह के बयानों पर पलटवार कर रही हैं। श्रीकला रेड्डी ने अपने पति धनंजय सिंह की जान का खतरा बताते हुए धनंजय सिंह पर AK-47 से हुए हमले का भी जिक्र किया है। इस हमले के बाद दोस्त से दुश्मन बने अभय सिंह और धनंजय सिंह की अदावत परवान चढ़ गई थी। उधर इन आरोपों पर अभय सिंह ने भी अपनी सफाई दे दी है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."