दुर्गेश्वर राय की रिपोर्ट
लखनऊ। “शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो दुनिया से लड़ने की ताकत देने के बजाय व्यक्ति को खूबसूरत दुनिया के निर्माण के लिए सक्षम बनाए। इसके लिए शिक्षकों को चाहिए कि वे नियमित अध्ययन करें। अनुभवों पर आधारित साझा संग्रह “विद्यालय में एक दिन” में सौ से अधिक ऐसी समस्याओं का जिक्र है जिसमें लोग यह कहकर निकल जाते कि “मैं क्या करूं”। लेकिन ऐसी समस्याओं को आप लोगों ने न केवल सहजता से लिया है बल्कि उसे समाप्त करने के सहज समाधान प्रस्तुत किये हैं।
“शिक्षा के पथ पर” और “विद्यालय में एक दिन” ऐसी पुस्तके हैं जो जमीनी स्तर पर कार्य करते हुए अनुभवात्मक वस्तुनिष्ठता के साथ लिखी गई है। शिक्षा जगत के लिए ये पुस्तकें न केवल अमूल्य धरोहर होंगी बल्कि शिक्षकों के नियमित शिक्षण के दौरान आने वाली तमाम समस्याओं के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेंगी।”
उक्त बातें शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश द्वारा अम्बर होटल लखनऊ में आयोजित पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह में बतौर मुख्यअतिथि सुप्रसिद्ध कहानीकार एवं शिक्षाविद् दिनेश प्रताप सिंह चित्रेश ने कहीं।
कार्यक्रम में प्रदेश भर के 30 से अधिक शिक्षाविद् और लेखकों की उपस्थिति में प्रमोद दीक्षित मलय द्वारा लिखित “शिक्षा के पथ पर” तथा “शब्द कसौटी पर”, संपादित कृति “विद्यालय में एक दिन”, यात्रा वृत्तांत संग्रह “यात्री हुए हम”, भूले बिसरे क्रांतिकारियों पर आधारित पुस्तक “क्रांति पथ के राही”, कोरोना काल के खट्टे-मीठे अनुभवों का काव्यात्मक संग्रह “कोरोना काल में कविता” और दुर्गेश्वर राय की पुस्तक “मंदाकिनी के तट पर” का विमोचन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लेखक एवं शिक्षाविद् डॉ० रामप्यारे प्रजापति ने कहा, “आज विमोचित हुई सभी पुस्तकें इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें लिखी एक-एक घटनाओं और अनुभवों को लिखने से पहले स्वयं शिक्षकों ने जिया है। बालक की पहली शिक्षिका मां होती है चाहे वह अनपढ़ हो अथवा पढ़ी-लिखी। शिक्षक को बच्चों के वास्तविक भाव को समझने के लिए पहले उनकी मां बनना होगा, उनके आंसू पोछने होंगे, उनकी संवेदनाओं को समझना होगा।” कार्यक्रम में प्रतिभागी लेखकों को बैज लगाकर एवं अंग वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करते हुए पुस्तक की प्रतियां, स्मृति चिह्न और सम्मान पत्र भेंट किए गये।
कार्यक्रम के संयोजक और शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश के संस्थापक प्रमोद दीक्षित ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा, “मंच के आनंदघर की संकल्पना कक्षा में 40 मिनट के लिए आनंदित होने के अभिनय से अलग हटकर बच्चों और शिक्षक के जीवन में आनंद शामिल करने और इनके माध्यम से समाज को आनंदपूर्ण बनाने का है।”
प्रमोद दीक्षित ने आदर्श विद्यालय की संकल्पना, गिजुभाई बधेका की पुस्तक दिवास्वप्न की उपयोगिता, भिखारी, चींटी और शिक्षित कौन, चित्रकार, बैटरी समाचार आदि कहानियों के माध्यम से बच्चों की संवेदना को समझने, महसूस करने और शिक्षकों को शिक्षा जगत में हो रहे हैं नित नए प्रयोगों का अध्ययन कर अद्यतन रहने के लिए प्रेरित किया।
कार्यक्रम का सफल और भावपूर्ण संचालन प्रीति भारती द्वारा किया गया। कार्यक्रम में धर्मेंद्र त्रिवेदी (उन्नाव), राजन लाल (कानपुर), विनीत मिश्रा (कानपुर देहात), मंजू वर्मा (हरदोई), आरती साहू (बाराबंकी), दीपक गुप्ता (बलिया), शिवाली जायसवाल एवं शशि कौशिक (मेरठ), निशी श्रीवास्तव (लखनऊ), आलोक प्रताप सिंह (कन्नौज), ममता देवी (सीतापुर), पूरन लाल चौधरी (बहराइच), अभिषेक कुमार (सिद्धार्थनगर), राजकुमार सिंह (हापुड़), अमिता शुक्ला (शाहजहांपुर), विशाल गाँधी (बहराइच), गरिमा (अमेठी), प्रीति भारती (उन्नाव), प्रतिमा यादव (सिद्धार्थनगर), सत्यप्रकाश (कौशाम्बी), वंदना श्रीवास्तव (बहराइच), दुर्गेश्वर राय (गोरखपुर) आदि लेखक एवं कवि उपस्थित रहे।
Author: कार्यकारी संपादक, समाचार दर्पण 24
हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं