इरफान अली लारी की रिपोर्ट
मुख्तार अंसारी चला गया, लेकिन उससे जुड़े किस्से खत्म नहीं हो रहे हैं। दरअसल, मुख्तार की मौत के दो दिन बाद एक बड़े खुलासे के तहत पता चला है कि साल 2015 में उसे मारने की सुपारी दी गई थी।
सुपारी लेने वाले का नाम था सच्चिदानंद उर्फ लंबू शर्मा, जो बिहार का एक कुख्यात कॉन्ट्रैक्ट किलर है। लंबू शर्मा ने मुख्तार की हत्या के लिए 6 करोड़ रुपए की सुपारी ली थी।
मुख्तार अंसारी की सिक्योरिटी और उसके दबदबे को देखते हुए उस वक्त यूपी का बड़े से बड़ा गैंगस्टर उससे डरता था। ऐसे में उसकी हत्या की सुपारी लेने वाला ये लंबू शर्मा कौन है? उसकी क्राइम हिस्ट्री क्या है? आइए जानते हैं।
लंबू शर्मा के बारे में जानने से पहले आपको 20 साल पुरानी उस कहानी पर लेकर चलते हैं, जब उसने पहला मर्डर किया। बात साल 2004 की है, महज 12 साल का एक लड़का, एक लड़की से प्यार करने लगा। लड़के को हड़काया गया कि इस लड़की से दूर रहो, वरना अच्छा नहीं होगा। अगले ही दिन इस लड़के ने हड़काने वाले उस शख्स का मर्डर कर डाला।
इस लड़के का नाम था सच्चिदानंद। पुलिस ने मर्डर के इल्जाम में नाबालिग सच्चिदानंद को आरा के किशोर सुधार गृह भेज दिया। लेकिन, सुधरने के बजाय उसके कदम जुर्म की डगर पर चल पड़े और यही सच्चिदानंद आगे चलकर ‘बमबाज’ लंबू शर्मा बन गया।
जब पहली बार लंबू सुधार गृह से भागा
आरा के सुधार गृह की दीवारें एक जेल से जुड़ीं थी। उस जेल से, जहां अपराध जगत के बड़े-बड़े उस्ताद सजा काट रहे थे। इन्हीं उस्तादों की शागिर्दी में सच्चिदानंद अपराध की एबीसीडी सीखने लगा। यहां उसकी मुलाकात गैंगस्टर चांद मियां से हुई, जो लोगों को डरा-धमकाकर रंगदारी वसूलता था।
सच्चिदानंद चांद मियां का गुर्गा बन गया। जुर्म की दुनिया में सच्चिदानंद, अब लंबू के नाम से पहचान बना चुका था। करीब 14 महीने बाद वो सुधार गृह की दीवारें तोड़कर वहां से भाग निकला।
सुधार गृह से निकलकर लंबू डकैती डालने वाले एक गैंग का हिस्सा बन गया। हालांकि, पुलिस ने 2005 में उसे फिर से पकड़कर सलाखों के पीछे भेज दिया।
माओवादी भारत सक्सेना से सीखा बम बनाना
ये जेल लंबू के लिए जुर्म का दूसरा स्कूल बन गई। यहां उसकी मुलाकात भारत सक्सेना नाम के माओवादी से हुई, जो बम बनाने की कला में माहिर था।
कुछ ही दिनों में लंबू ने भारत सक्सेना का भरोसा जीत लिया और उसका खासमखास बन गया। सक्सेना ने उसे स्विच, तार, बल्ब और बैटरी से आईईडी बनाना सिखाया। ये सब सामान खुफिया तरीके से जेल के अंदर लाया गया था। इसके बाद लंबू ने सक्सेना से मॉर्डन बम बनाने सीखे। वो बम बनाने में इतना माहिर हो गया, कि उसके हाथ से बने बम के बाहर सप्लाई किए जाने लगे।
कोर्ट में गवाह को मारने के लिए फेंका बम
लंबू ने साल 2004 में अपनी गर्लफ्रेंड के लिए जो हत्या की थी, उस मामले में जितेंद्र सिंह नाम का एक गवाह था। अपने एक साथी के साथ लंबू ने इस गवाह को मारने की प्लानिंग बनाई।
2009 में वो पुलिस कस्टडी से भाग निकला। इधर गवाही के लिए जितेंद्र सिंह कोर्ट पहुंचा, उधर लंबू भी अपने साथी के साथ वहां मौजूद था। लंबू ने जितेंद्र सिंह के ऊपर बम फेंका, लेकिन वो फेंकने से पहले ही फट गया। इसमें लंबू का साथी भी मारा गया। अब पुलिस ने उसे पकड़ने की कोशिश और तेज कर दी। उसी साल लंबू फिर से पकड़ा गया और पुलिस ने उसे आरा जेल भेज दिया।
गर्लफ्रेंड को सुसाइड बॉम्बर बनाकर जेल से भागा
आरा जेल में बंद रहने के दौरान उसकी जान-पहचान नगीना नाम की एक महिला से हुई। कुछ ही दिनों में ये जान-पहचान प्यार में बदल गई। इसके बाद लंबू को जेल में बंद मुख्तार अंसारी को मारने की सुपारी मिली। उसने 6 करोड़ रुपए में मुख्तार को मारने की डील फाइनल की और 50 लाख रुपए एडवांस ले लिए। अब उसे जेल से बाहर निकलना था। इस काम के लिए लंबू ने नगीना को चुना। 23 जनवरी 2015 को जब लंबू की कोर्ट में पेशी थी, तो नगीना एक टिफिन के साथ वहां पहुंची।
नगीना को ये अंदाजा नहीं था कि उस टिफिन में बम है। वो पुलिस वैन की तरफ आगे बढ़ी और स्विच दबा दिया। एक तेज धमाका हुआ और नगीना के साथ-साथ एक पुलिसकर्मी भी मारा गया। इसी धमाके की गहमागहमी में लंबू फरार हो गया। मुख्तार अंसारी को मारने की उसकी प्लानिंग दिल्ली पुलिस ने फेल कर दी और वो पकड़ा गया। फिलहाल लंबू बिहार की आरा जेल में बंद है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."