आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
फर्रुखाबाद से सपा प्रत्याशी नवल किशोर शाक्य रविवार को दिल्ली में सलमान खुर्शीद के घर पहुंच गए। दोनों नेताओं में हाल-चाल भी हुआ और चुनावी रणनीति पर बात भी। गठबंधन में सीट सपा के कोटे में जाने के बाद सलमान खुर्शीद ने ट्वीट कर ‘टूट जाऊंगा, झुकूंगा नहीं..’ अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया दी थी। नवल की खुर्शीद से मुलाकात ‘नाराजगी’ को दूर कर साथ लाने के प्रयास का हिस्सा थी। सपा के अन्य प्रत्याशी भी समन्वय और साथ बेहतर करने के लिए कांग्रेस नेताओं, पदाधिकारियों के साथ संवाद बनाने में जुटे हैं, ताकि केमिस्ट्री बेहतर कर चुनावी गणित सुधारी जा सके।
यूपी में सपा ने कांग्रेस को गठबंधन के तहत 17 सीटें दी हैं। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार अभी घोषित नहीं किए हैं, सपा 31 नाम जारी कर चुकी है। हालांकि, इसमें दो सीटों पर चेहरे बदले जाएंगे। वाराणसी सीट कांग्रेस के खाते में गई है, इसलिए पार्टी यहां उम्मीदवार वापस लेगी। संभल से उम्मीदवार शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के चलते वहां भी नया चेहरा तय होना है। बाकी सीटों पर प्रत्याशियों ने प्रचार के साथ ही साथ मजबूत करने पर काम तेज कर दिया है। पार्टी के एक नेता का कहना है कि कुछ महीनों पहले तक दोनों दलों के नेता और कार्यकर्ता एक-दूसरे के खिलाफ मुखर थे। अब उन्हें साथ प्रचार करना है। इसलिए, हिचक व विरोध की दीवार गिराना जरूरी है। प्रत्याशी इसी में जुटे हैं। हालांकि, नेतृत्व के स्तर से जब तक इस पर सक्रिय पहल नहीं होती, नीचे संभालना कठिन होगा।
गोंडा से सपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री बेना प्रसाद वर्मा की पोती श्रेया वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। हाल में उन्होंने गोंडा में कांग्रेस कार्यालय पहुंचकर वहां के पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। उनके साथ सपा महिला सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जूही सिंह भी थीं।
बाराबंकी सीट कांग्रेस के खाते में है। यहां तनुज पुनिया की कभी अरविंद सिंह गोप तो कभी राकेश वर्मा से मुलाकात की तस्वीरें आ चुकी हैं।
सपा के फैजाबाद से प्रत्याशी अवधेश प्रसाद भी पूर्व सांसद व कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री के घर जाकर चुनाव में सहयोग मांग चुके हैं।
अम्बेडकरनगर से सपा प्रत्याशी लालजी वर्मा ने भी पिछले दिनो कांग्रेस के जिला कार्यालय में बैठक की। लखनऊ में भी साझा बैठक हो चुकी है। यहां रविदास मेहरोत्रा सपा के प्रत्याशी हैं।
समन्वय की कवायद क्यों?
सपा और कांग्रेस 2017 में भी साथ रह चुके हैं। उस चुनाव में गठबंधन जमीन पर फेल हो गया था। नेताओं की गणित नीचे तक नहीं पहुंच सकी। बेहतर समन्वय न होने के चलते कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट भी हो गई, जिसका नुकसान सपा को हुआ। राजधानी की लखनऊ मध्य सीट इसकी नजीर है। इसी तरह 2019 में भी सपा और बसपा का गठबंधन हुआ। कागजों पर अजेय दिख रहा यह समीकरण सियासी अखाड़े में ध्वस्त हो गया। इसकी सबसे बड़ी वजह दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों का नीचे तक समन्वय न होना था। दोनों दलों के कोर वोटों का बड़ा हिस्सा एक-दूसरे को ट्रांसफर ही नहीं हुआ। अतीत के अनुभवों को सबक लेते हुए सपा और कांग्रेस दोनों ही इस बार तालमेल बेहतर करने में जुटे हैं। हालांकि, अभी तक यह कवायद स्थानीय स्तर पर प्रत्याशियों के जरिए ही होती दिख रही है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."