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27 December 2024 11:13 am

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‘जिसकी आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन, ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते…’ एक वाकया जो अब यादों में खो गई

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रुमी जाफरी की रिपोर्ट

पिछले दिनों मैं जैकी भगनानी और रकुलप्रीत की शादी एन्जॉय कर रहा था, उसी वक़्त यह दुखद खबर सुनी कि अमीन सयानी जी हमारे बीच नहीं रहे। आज मैं उन्हें याद करके कोई क़िस्सा नहीं सुनाऊंगा क्योंकि क़िस्से तो उनके पास थे, जो वो अपने साथ लेकर काफ़ी दूर चले गए। इसलिए आज मेरे हिस्से के क़िस्से में अमीन सयानी की कुछ बातें भर। 

कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी भोपाल के जश्न-ए-उर्दू प्रोग्राम में हिंदी फ़िल्मों की ज़बान पर बात करते हुए मैंने कहा था कि जब मैं पहली बार मुम्बई आया तो मेरे पास मेरी ज़बान थी। फिर फ़िल्म और रेडियो की बदलती ज़बान पर भी बात हुई। इस प्रोग्राम के बाद आकाशवाणी से जुड़ी रूशदा जमील ने मुझसे सवाल किया था कि अच्छी आवाज़ के लिए अच्छी ज़बान का होना कितना ज़रूरी है? तब मैंने उनको अमीन सयानी की मिसाल देते हुए भोपाल के श्याम मुंशी का एक क़िस्सा सुनाया था। 

श्याम मुंशी जी रेडियो और ड्रामों से जुड़े थे, अच्छे अनाउंसर भी थे। एक प्रोग्राम में नौजवान लड़के ने अनाउंस करते हुए अमीन सयानी की स्टाइल में भाइयो और बहनो कहा तो श्याम भाई ने उस नौजवान को अमीन सयानी की मिसाल देते हुए कहा था- ‘अमीन सयानी कभी भाइयो और बहनो नहीं कहते हैं, बल्कि हमेशा बहनो और भाइयो कहते हैं।’ उस वक्त इस छोटी-सी मिसाल ने मुझे अमीन सयानी की आवाज़ के उस सुनहरे दौर की याद दिला दी, जब हर इंसान बेताबी से बुधवार का इंतजार करता था, फिर शाम को हर तरफ बिनाका गीतमाला के गीतों के साथ अमीन सयानी की आवाज़ दिलों को छू जाती थी। 

जब मैं फ़िल्मों में आया तो सयानी जी से तीन बार मुलाक़ात हुई, वो भी फ़िल्मी पार्टियों में। 1999 में आरके बैनर ने लिए मैंने फ़िल्म ‘आ अब लौट चले’ लिखी, जिसे ऋषि कपूर डायरेक्ट कर रहे थे। तब इस फ़िल्म के बारे में बातचीत करने के लिए अंग्रेजी पत्रकार अली पीटर जान से मुलाक़ात हुई जो वीकली अखबार ‘स्क्रीन’ में अपना कॉलम लिखते थे। उस इंटरव्यू के दौरान ही मैंने अली पीटर जान को अमीन सयानी के बहनो और भाइयो वाली बात कही तो उन्होंने मुझे सयानी को लेकर अनेक क़िस्से सुनाए थे, जो सयानी साहब ने उनको अपने इंटरव्यू में बताए थे। 

अमीन सयानी की स्कूली तालीम अंग्रेजी में हुई थी। आठ साल की उम्र में पहली बार स्कूल में अंग्रेजी में ही कम्पेयरिंग की थी। उनको हिंदी और उर्दू नहीं आती थी। उनके माता-पिता महात्मा गांधी के अनुयायी थे। गांधीजी के कहने पर उन्होंने ‘राहबर’ पत्रिका निकालने का फैसला किया, जो उस वक्त उर्दू, गुजराती और हिंदी में निकलती थी। यह पत्रिका 1940 से 1960 तक पब्लिश हुई। अमीन सयानी इस पत्रिका में प्रूफ रीडर के साथ आर्ट डायरेक्टर का भी काम देखते थे, जिसकी वजह से उन्होंने गुजराती, हिंदी और उर्दू में महारत हासिल कर ली थी। 

1951 में जब सयानी सेंट जेवियर कालेज से बी. ए. कर रहे थे, तब देव आनंद के भाई विजय आनंद गोल्डी भी उस कालेज के स्टूडेंट थे, जो ड्रामे डायरेक्ट करते थे। विजय आनंद के कुछ ड्रामों में अमीन सयानी ने भी एक्टिंग की थी। उन्हें 1951 में ही रेडियो सिलोन पर ब्राडकास्टर के रूप में काम मिल गया। 

अमीन सयानी को सबसे पहला ब्रेक एक्टर मनमोहन कृष्ण के रेडियो प्रोग्राम ‘ओवर लाइन फुलवारी’ में मिला था, जिसके डायरेक्टर उनके भाई हमीद सयानी थे, जबकि प्रोड्यूसर बालगोविन्द श्रीवास्तव थे। एक बार जब कॉमर्शियल अनाउंसर नहीं आया तो अमीन सयानी को मौका मिला। उस समय के सूचना एवं प्रसारण मंत्री डॉ. बी.वी. केसकर ने रेडियो पर फ़िल्म संगीत पर पाबंदी लगा दी तो रेडियो सिलोन ने इस अवसर का फायदा उठाया। 

अब लोग आकाशवाणी की जगह रेडियो सिलोन सुनने लगे। तब बिनाका गीतमाला हिट परेड प्रोग्राम की शुरूआत हुई । पहले कुछ हफ्ते यह प्रोग्राम अंग्रेजी में था। उस समय सिलोन में हिंदी जानने वाले पांच फीसदी थे। लेकिन बिनाका गीतमाला इतना लोकप्रिय हुआ कि एशिया के हर घर में सुना जाने लगा। 

अंग्रेजी बिनाका गीतमाला के लिए हर हफ्ते 400 पत्र आते थे। 1952 में पहली बार इस प्रोग्राम को हिंदी में पेश किया गया तो पहले ही प्रोग्राम में नौ हजार चिटि्ठयां मिलीं। रेडियो सिलोन की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से भारत सरकार जागी और उसकी समझ में आया कि रेडियो के कॉमर्शियल न होने की वजह से करोड़ों का नुकसान होता है। 

21 जुलाई 1969 को विविध भारती की कॉमर्शियल शुरुआत होने के बाद सबसे पहला कॉमर्शियल प्रोग्राम ‘सेरिडॉन की दुनिया’ को अमीन सयानी ने ही पेश किया था। बिनाका गीतमाला को दिलकश बनाने के लिए अमीन सयानी फ़िल्मी हस्तियों के इंटरव्यू भी करते थे। 

अमीन सयानी के करीबी दोस्त किशोर कुमार थे। सयानी ने उनके इंटरव्यू के लिए समय लिया तो उन्होंने अंधेरी के मोहन स्टूडियो में बुलाया। अमीन अमीन सयानी कोलाबा से टैक्सी पकड़कर इंटरव्यू रिकार्ड करने गए। लेकिन किशोर कुमार ने फ़िल्म के प्रोड्यूसर से कह दिया कि जब अमीन सयानी चला जाएं, तब मुझे बुलाना। प्रोड्यूसर ने यह बात सयानी को बता दी। उन्हें यह बात इतनी बुरी लगी कि उन्होंने दूसरे दिन किशोर कुमार को फोन करके कह दिया कि अब उनका कभी इंटरव्यू नहीं करूंगा, कोई प्रोग्राम भी नहीं करूंगा। यह झगड़ा कुछ साल तक चला। 

एक दिन किशोर कुमार ने अमीन सयानी को फोन कर कहा कि उनकी आने वाली फ़िल्म ‘बढ़ती का नाम दाढ़ी’ का रेडियो प्रोग्राम करना है। उसी वक्त सयानी ने कहा, पहले तुम्हें मुुझे इंटरव्यू देना होगा, तभी मैं तुम्हारी फ़िल्म का रेडियो प्रोग्राम करूंगा। किशोर कुमार ने भी एक शर्त रख दी, उस इंटरव्यू में तुम मेरा परिचय नहीं दोंगे। सयानी ने उनकी शर्त मानी और यह इंटरव्यू 45 मिनट चला था। 

जब सचिन देव बर्मन का निधन हुआ तो अमीन सयानी ने लता मंगेशकर, आशा भोसले, मोहम्मद रफ़ी, आरडी बर्मन, मजरूह सुल्तानपुरी, आनंद बक्षी का इंटरव्यू लिया। सिर्फ किशोर कुमार रह गए थे। सयानी ने सोचा कि अगर पहले से वक्त मांगा तो किशोर कुमार गड़बड़ कर सकते हैं, इसलिए बिना वक्त लिए किशोर कुमार के बंगले पर पहुंच गए। किशोर कुमार 45 मिनट तक सचिन देव बर्मन पर बात करने के बाद बोले, ‘मैं कल कोलाबा आकर रिकार्डिग करता हूं।’ सयानी को लगा कि किशोर कुमार उनको टाल रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपना वादा निभाया। लगातार दो दिन कोलाबा आकर अपना इंटरव्यू पूरा किया। इस इंटरव्यू के रिकार्ड मौजूद हैं, जिसमें किशोर कुमार ने सचिन बर्मन के साथ अपने आखिरी गीत का ज़िक किया है, जो फ़िल्म ‘मिली’ (1975) का है और जिसके बोल हैं: बड़ी सूनी सूनी है ज़िंदगी ये ज़िंदगी… अमीन सयानी के इंटरव्यू से जुड़े कई क़िस्से अली पीटर जॉन ने अपने कालम में लिखे थे। जब शकीला बानो भोपाली से इंटरव्यू करने सयानी गए तो शकीला ने कहा, ‘हमारा दिन तो रात को शुरू होता है।’ तो सयानी दूसरी रात को शकीला बानो भोपाली के बंगले ‘शहर ए ग़ज़ल’ पहुंचे। उनकी शेरो-शायरी की महफिल शिरकत करते हुए सुबह चार बजे तक इंटरव्यू रिकार्ड किया था। 

ये क़िस्से बताते हैं कि अमीन सयानी बनना आसान नहीं है। सयानी ने अपनी ज़िंदगी में 54 हजार से ज्यादा रेडियो प्रोग्राम और 19 हजार से ज्यादा जिंगल रिकॉर्ड किए थे। आज आवाज़ की दुनिया का जादूगर हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ सदियों तक हमारे दिलों में बसी रहेगी। शायद ऐसी ही आवाज़ के लिए गुलज़ार की ग़ज़ल का यह शेर है: जिसकी आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते फ़िल्म ‘छोटी सी बात’ का वो गीत याद आता है, जिसमें ज़िंदगी के फलसफे के साथ सच्चाई को भी बयां किया गया है। आप जरूर सुनें, अपना ख़याल रखें, खुश रहें। ना जाने क्यों होता है यह ज़िंदगी के साथ अचानक ये मन, किसी के जाने के बाद, करे फिर उसकी याद छोटी छोटी सी बात।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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