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November 2, 2024 4:57 am

रुह कांप जाती है लोन देकर ऐसी हैवानियत की दास्ताँ सुनकर …लाश का संस्कार नहीं होने दिया बिना किश्त लिए…

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इरफान अली लारी की रिपोर्ट

35 साल के धर्मनाथ यादव दिल्ली में कबाड़ की छंटाई का काम करते हैं। बीते दिसंबर की एक सुबह उनकी 30 साल की पत्नी आरती ने फोन किया। कहा कि दरवाजे पर पैसा वसूली के लिए लोग आए हैं, आज जमा नहीं हुआ तो गाली-गलौज करेंगे, आप पैसा भेज दीजिए। धर्मनाथ ने दोपहर 1 बजे तक भेजने की बात कही और काम में जुट गए। फिर अगले दो घंटे के भीतर उनकी पत्नी ने फोन पर जहर खा लेने की सूचना दी।

धर्मनाथ की पत्नी के सुसाइड का कारण ‘नए साहूकार’ हैं। मैं ‘नए साहूकार’ स्मॉल फाइनेंस बैंकों को कह रहा हूं। बीते कुछ सालों से उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के करीब आधा दर्जन जिलों में सक्रिय ये स्मॉल फाइनेंस बैंक 12% से 28% तक के सालाना ब्याज दर पर लोन देते हैं। इसके बाद स्थानीय स्तर पर एजेंट रखकर पैसों की मासिक या साप्ताहिक वसूली करवाते हैं।

ऐसे स्मॉल फाइनेंस बैंकों के मकड़जाल से परेशान लोग, खासकर महिलाओं की जिंदगी का स्याह पक्ष जानने UP के कुशीनगर इलाके में आना पडा। 

विश्व इतिहास में कुशीनगर गौतमबुद्ध के महापरिनिर्वाण के लिए जाना जाता है। फिलहाल यहां के सैकड़ों गांव में हजारों परिवारों की गाढ़ी कमाई आड़े-टेढ़े लोन की किश्त चुकाने में खर्च हो रही है। किश्त भी ऐसी कि कभी किसी को मोटरसाइकिल गिरवी रखनी पड़ी तो किसी को गहने…

कुशीनगर जिले के बिहार से सटे इलाके सेवरहीं में 30 वर्षीय बिजली मैकेनिक बृजेश कुमार ने कहा कि, मुझे उसने (पत्नी) सुबह 11 बजे फोन किया और कहा कि मैं बाजार में हूं। जहर खरीद कर खा चुकी हूं। आप गाड़ी पकड़ कर घर आ जाइए, बच्चों का ख्याल रखना है।

उस वक्त मैं दिल्ली में ड्यूटी कर रहा था। वो शाम के पांच बजे तक इलाज के लिए भटकती- तड़पती रही और मेरे दरवाजे पर ‘समूह वाले’ वसूली करने वाले बैठे रहे। मैं अगले दिन सुबह पहुंचा तो मेडिकल करा पाया और फिर उसका पोस्टमॉर्टम हुआ। इस तरह हम दोनों का साथ छूट गया।

मैं ड्यूटी से भागकर रेलवे स्टेशन आया। मालिक ने 500 रुपया दिया था, उसका टिकट लिया और रात आठ बजे गाड़ी पकड़ी। मेरा खुद आने का दिल नहीं कर रहा था। मन किया कि मैं भी ट्रेन के आगे कूद जाऊं, लेकिन बच्चों का मुंह देखकर गांव वापस आया।

बृजेश ने कहा, ‘मेरे पास अभी 2 लाख रुपए के चार लोन हैं। किश्त भरने में तबाह हो गया हूं। मुझे 24,000 महीने की किश्त भरनी पड़ती है।

भारत फाइनेंस से 25,000 का लोन लिया था, इस महीने मोटरसाइकिल गिरवी रखकर किश्त भर पाया हूं।’

‘मां का आंख बनवाना है… कुछ पैसा उसके लिए भी बचाना है। सोच रहा हूं कि घर गिरवी रखकर सारा पैसा चुका दूं और मां का आंख भी बनवा दूं।’

किश्त की तारीख आगे-पीछे नहीं हो सकती, बाइक गिरवी रखनी पड़ी?

‘आगे पीछे तो छोड़ ही दीजिए, उसी दिन किश्त न चुकाने पर कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हैं। मेरी नई-नई शादी हुई है, एक कमरे का घर है। एक बार मात्र दो हजार रुपया कम था। मैंने कहा कि सर कल ले लीजिएगा तो कहने लगे कि मैं यहीं रात भर रहूंगा, लेकिन पैसे के बैगर नहीं जा सकता। फिर मैंने किसी से उधार लेकर उसे पैसे दिए।’

बृजेश से डिटेल में बात करने के बाद समझ आया कि ये स्मॉल फाइनेंस बैंक दस-बीस हजार तक के लोन बहुत आसानी से दे देते हैं और फिर साप्ताहिक या 15 दिन पर किश्त वसूलते हैं। इसमें 12% से 15% तक ब्याज लेते हैं।

स्वयं सहायता समूहों के नाम पर महिलाओं को जोड़ने के लिए ये बैंक गांव की किसी सक्रिय महिला को खोजते हैं। ज्यादातर ने मुझे नूरी से बात करने की सलाह दी।

नूरी गांव में कई समूह बनवा चुकी हैं। उन्हें लगता है कि वो गांव की महिलाओं की मदद कर रही हैं। जबकि हकीकत ये है कि नूरी खुद ऐसे समूह के जाल में उलझी हैं, जिसका अंदाजा उन्हें नहीं है। उनकी तेज-तर्रार भाषा का फायदा उठाकर स्वयं सहायता समूह वाले गांव की महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं।

नूरी से पूछा, आपकी लोन दिलवाने में क्या भूमिका है?

उन्होंने कहा- ‘मेरे गांव में इस वक्त 10 समूह काम कर रहे हैं, जिनमें प्रत्येक ग्रुप में 25 से 35 लोग हैं। बैंक वाले आते हैं और मुझसे संपर्क करते हैं। मैं महिलाओं का समूह बनवाती हूं और फिर सबकी किश्त बंधवाती हूं। किसी के यहां शादी पड़ती है तो वो पैसे काम आ जाते हैं। किसी के घर कोई इमरजेंसी आई तब पैसों की जरूरत इस तरह पूरी हो जाती है।

एक महिला को चार-चार कंपनियां लोन कैसे दे सकती हैं? वो भी बिना जांच किए कि वो व्यक्ति लोन भर भी सकता है या नहीं?

इसका तरीका है। जैसे- किसी की मासिक किश्त बंधवा देते हैं, किसी को सप्ताहिक या पंद्रह दिन का। उदाहरण से समझिए आपने 50,000 का लोन लिया है तो 1230 रुपए के आसपास 15 दिन में देना पड़ता है। गांव के हर घर से कोई न कोई बाहर कमा रहा है। वो लोग पैसे भर भी रहे हैं।’

जो भर नहीं पाते, उनके साथ गलत भी तो हो रहा है। मेरे इतना कहने पर नूरी कहती हैं- ‘जो नहीं भर पाते, उनके साथ जबरदस्ती करते हैं ये लोग। चिंता नहीं, मैं रहती हूं तो मान जाते हैं।’

किस किस्म की जबरदस्ती?

‘अरे, कभी किसी का सिलेंडर खोलने का धमकी देते हैं। किसी का बर्तन लेकर चले जाते हैं। जोर जबरदस्ती भी करते हैं। वो क्या एक साहब बैठे हैं।’

नूरी ने हाथ से इशारा किया। थोड़ी दूर पर कमर में बैग लटकाए एक व्यक्ति अपनी बाइक पर बैठकर इंतजार कर रहा था। लोगों ने बताया कि ये वसूली वाले साहब हैं और इनके तीन समूह हैं। इन्हें गांव में लोगों से पैसा लेना है तो बैठकर यहां इंतजार कर रहे हैं।

दरअसल ये बैंक 12%-15% तक पर छोटे लोन देते हैं और साप्ताहिक या 15 दिन पर किश्त वसूलने आते हैं। इनका उद्देश्य अपना मार्केट कैप बेहतर करना है। दरअसल रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस के अनुसार स्मॉल बैंक अगर आगे चलकर फुल टाइम बैंकिंग सेवाओं में आना चाहते हैं तो पांच साल तक इन्हें देश के ग्रामीण इलाकों में सेवाएं देनी होंगी।

इसमें स्वयं सहायता समूहों को उचित दर पर लोन देना, छोटे किसानों को खेती या पशुपालन आदि के लिए लोन देना, ग्रामीण महिलाओं को बैंकिग से जोड़ना आदि काम शामिल हैं। इन बैंकों का काम करने का तरीका बताता है कि ये सिर्फ RBI से वैधता चाहते हैं।

ये स्मॉल फाइनेंस बैंक वसूली के लिए इस हद तक चले जाते हैं कि आरती जैसी महिलाओं को सुसाइड करना पड़ता है। 

वो बताती हैं, ‘मैंने समूह से 40,000 रुपए का लोन लिया था और पंद्रह दिन पर 1180 रुपए की किश्त देती हूं। कल ही पायल गिरवी रखकर किश्त दिया है।’

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."