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November 22, 2024 5:18 pm

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किश्तों में कट रही जिंदगी ; क़िस्त के 730 रुपए नहीं चुकाए तब तक किसान को नहीं करने दिया पत्नी का अंतिम संस्कार

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इरफान अली लारी की रिपोर्ट

यूपी का कुशीनगर इलाका। यहां 35 वर्षीय धर्मनाथ यादव अपने परिवार के साथ रहते थे। बहुत गरीब परिवार. धर्मनाथ पहले से ही शादीशुदा था। इसलिए सारी जिम्मेदारियां उन पर थीं। 

घर में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं। ऐसे में परिवार को सहारा देने के लिए वह काम के सिलसिले में दिल्ली पहुंचे।

यहां वह कूड़ा बीनने का काम करता था। घर पर रहकर उनकी पत्नी ने एक कदम उठाया। उन्होंने एक छोटे वित्त बैंक से कुछ ऋण लिया। शुरुआत में सब कुछ ठीक था। लोन की किश्तें समय पर चुकाई जा रही थीं, लेकिन फिर हालात खराब हो गए। आरती ने यह कर्ज खेती से जुड़े काम के लिए लिया था। लोन इसलिए लिया गया था ताकि अकाउंट में कुछ पैसे डाले जा सकें ताकि उससे ज्यादा पैसा कमाया जा सके और लोन चुकाया जा सके, लेकिन हुआ कुछ और ही। 

एक हफ्ते में नहीं दिए 730 रुपये!

मामला बीते 14 दिसंबर का है। उनकी पत्नी आरती (30 वर्ष) का फोन आया। उन्होंने कहा, ‘लोग वसूली के लिए आए हैं. वे दुर्व्यवहार कर रहे हैं। पैसे भेजो।’ इस पर धर्मनाथ ने कहा कि वह एक घंटे में पैसे भेज देगा। 

आरती ने फिर फोन किया। तब तक 2 घंटे बीत चुके थे। उन्होंने कहा, ‘मैंने जहर खा लिया है।’ यह सुनकर धर्मनाथ के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होंने कहा, ‘मैंने पैसों का इंतजाम कर लिया है। आप तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।’ फिर फोन कट गया। इतना कह कर फ़ोन कट गया। 

धर्मनाथ ने आरती को दोबारा फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इसलिए उसने तुरंत अपने मालिक से पैसे लिए और गाँव के लिए निकल पड़ा। वह रेलवे स्टेशन पहुंचा और ट्रेन में बैठ गया तो उस ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के आरती के बारे में बताया और तुरंत जाकर उसे देखने को कहा?

ये स्मॉल फाइनेंस बैंक हो गया गड़बड़झाला!

दरअसल, उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक लिमिटेड ने आरती को खेती से जुड़े काम के नाम पर 3 अगस्त 2022 को करीब 30 हजार रुपये का लोन दिया था। आरती को हर हफ्ते करीब 730 रुपये देने पड़ते थे. उन्होंने 34 किश्तें भी चुकाईं। 20 दिसंबर को उन्हें 730 रुपये देने थे, लेकिन 14 दिसंबर को उन्होंने आत्महत्या कर ली। इसी बीच धर्मनाथ को अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला। वह पूरे रास्ते रोते हुए कुशीनगर पहुंचा। एक दिन बाद जब वह अपने घर पहुंचा तो वहां एक और समस्या थी। उसके घर पर साहूकार खड़े रहते थे। उन्होंने पहली किस्त चुकाई और फिर अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार किया। यह कहानी सिर्फ धर्मनाथ की नहीं है, बल्कि यहां के ज्यादातर लोग इन साहूकारों के चक्कर में फंसे हुए हैं और उनकी जिंदगी ‘किश्तों’ में कट रही है।

धर्मनाथ को बीमा का पैसा भी नहीं मिला

धर्मनाथ पर एक और संकट मंडरा रहा है। यादव को बीमा राशि की उम्मीद है। दरअसल, बीमा के लिए उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र देना होगा, लेकिन विभाग ने अभी तक उन्हें यह जारी नहीं किया है। इसलिए बीमा की रकम फंसी हुई है। वह पिछले दो महीने से काम भी नहीं कर रहा है। उन्होंने अपने बच्चों को उनकी दादी के पास छोड़ दिया है। मुआवज़े के रूप में बैंक से जो पैसा मिला, उसका कुछ हिस्सा अंत्येष्टि और अन्य अनुष्ठानों पर खर्च कर दिया गया। अब पैसे का इंतजार है। 

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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