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November 22, 2024 11:11 am

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इनके रोम रोम में बसते हैं श्री राम, सबसे अलग, सबसे निराले “रामनामी” समाज की विचित्र है कहानी

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हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट

भगवान राम के नाम पर सियासी रोटियां खूब सेंकी जाती हैं। इन सबसे अलग छत्तीसगढ़ में एक रामनामी संप्रदाय है, जिनके रोम-रोम में भगवान राम बसते हैं। तन से लेकर मन तक तक पर भगवान राम हैं। इस समुदाय के लिए राम सिर्फ नाम नहीं बल्कि उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये राम भक्त लोग ‘रामनामी’ कहलाते हैं। राम की भक्ति भी इनके अंदर ऐसी है कि इनके पूरे शरीर पर ‘राम नाम’ का गोदना गुदा हुआ है। शरीर के हर हिस्से पर राम का नाम, बदन पर रामनामी चादर, सिर पर मोरपंख की पगड़ी और घुंघरू इन रामनामी लोगों की पहचान मानी जाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की भक्ति और गुणगान ही इनकी जिंदगी का एकमात्र मकसद है।

अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होने जा रहा है। इसके लिए देश के तमाम साधु संतो और गणमान्य लोगों को निमंत्रण भेजा जा चुका है। राम मंदिर को लेकर देशभर में एक बार फिर सियासत जारी है। 

वहीं इसके इतर पूरे देश में रामनाम की अलख जग चुकी है। अयोध्या से लेकर हर जगह रामनाम के गीतों का प्रचलन भी तेजी से बढ़ा है। लेकिन रामनाम की इसी धूम के बीच देश में एक समाज ऐसा भी है जो सिवाय रामनाम के कुछ नहीं जानता। कुछ नहीं का मतलब कुछ नहीं जानता। 

राम नाम सत्य है

देश में चल रहे रामनाम की खबरों से अनजान इस समाज के लोग अपने शरीर में ही रामनाम का गोदना करवा बैठे हैं। इन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को खुद में ही आत्मसात कर लिया है। 

छत्तीसगढ़ के इस समाज को रामनामी कहा जाता है। जहां कुछ दिनों पहले एक नेता द्वारा भगवान श्रीराम को मासांहारी होने का विवादित बयान दिया गया था, वहीं इस समाज के लोग जीवन पर्यंत शाकाहारी रहते हैं। 

इसके अलावा इनका नैतिक आचरण भी उच्च कोटि का रहता है। एक समय जब इस समाज को अपनी जाति के कारण मन्दिर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया तो उसने खुद के शरीर पर ही राम नाम लिखवा डाला। ऐसे में उनका शरीर ही मंदिर बन गया और उनके रोम-रोम में भगवान श्रीराम की संकल्पना ने साकार रूप ले लिया। 

रामनामी संप्रदाय के पांच प्रमुख प्रतीक हैं। ये हैं भजन खांब या जैतखांब, शरीर पर राम-राम का नाम गोदवाना, सफेद कपड़ा ओढ़ना, जिस पर काले रंग से राम-राम लिखा हो, घुंघरू बजाते हुए भजन करना और मोरपंखों से बना मुकट पहनना है। रामनामी समुदाय यह बताता है कि श्रीराम भक्तों की अपार श्रद्धा किसी भी सीमा से ऊपर है। 

प्रभु राम का विस्तार हजारों पीढ़ियों से भारतीय जनमानस में व्यापक है। इस संप्रदाय की स्थापना छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव चारपारा में हुई थी। एक सतनामी युवक परशुराम ने 1890 के आसपास की थी। छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के लिए राम का नाम उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक ऐसी संस्कृति, जिसमें राम नाम को कण-कण में बसाने की परंपरा है।

कोई भी बन सकता है रामनामी

इस समाज के लोगों का मानना है कि कोई भी व्यक्ति रामनामी बन सकता है। इसके लिए उसे कुछ शर्तों का पालन करना होगा। उसे मादक पादर्थों से दूरी बनाते हुए शुद्घ रूप से शाकाहार का संकल्प लेना होगा। वहीं अपने व्यवहार को सदाचारी बनाना होगा। और जो सबसे मुख्य बात है वह यह है कि शरीर के कोई भी एक स्थान पर राम शब्द का गोदना करवाना होगा। 

श्रीराम के ननिहाल में बस सिर्फ राम नाम

शरीर को ही राममय करने वाले इस समाज का ना तो रामन्दिर से कोई लेना देना है और ना उसके लिए होने वाले विवाद से। दक्षिण कौशल यानी छत्तीसगढ़ में ही भगवान श्रीराम का ननिहाल भी है। ये निस्वार्थ भक्त खामोशी से रामनामी बनकर राम में लीन हो चुके हैं। वहीं यह समाज आज हाशिए पर पहुंच चुका है। आधिकारिक तौर पर उनकी जनसंख्या कितनी है यह स्पष्ट नहीं है। वहीं इन रामभक्तों की सुध लेने वाला भी कोई नहीं। भगवान श्रीराम के साथ ही उनके इन अनन्य भक्तों की ओर भी ध्यान देने की जरूरत है, जिससे हम रामराज्य के और करीब आ सकें। 

कैसे अस्तित्व में आया ये समुदाय

कहा जाता है कि भारत में भक्ति आंदोलन जब चरम पर था, तब सभी धर्म के लोग अपने अराध्य देवी-देवताओं की रजिस्ट्री करवा रहे थे। उस समय दलित समाज के हिस्स में न तो मूर्ति आया और न ही मंदिर। उनसे मंदिर के बाहर खड़ा होने तक का हक छीन लिया गया था। एक सदी पहले रामनामी समाज के लोगों को भी छोटी जाति का बताकर उन्हें मंदिर में नहीं घुसने दिया गया था। साथ ही सामूहिक कुओं से पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद भगवान राम के प्रति इनकी आस्था शुरू हुई थी।

इसी घटना के बाद रामनामी संप्रदाय के लोगों ने मंदिर और मूर्ति दोनों को त्याग दिया। अपने रोम-रोम में राम को बसा लिया और तन को मंदिर बना दिया। अब इस समाज के सभी लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं और इनकी पहचान ही अलग है।

हालांकि, माता शबरी से जुड़े छत्तीसगढ़ के शिवरी नारायण और निकटवर्ती गांवों में, महानदी के किनारे रहने वाले ये रामनामी भगवान राम के सिवा किसी और से उम्मीद भी नहीं करते। 

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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