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23 February 2025 5:42 pm

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एक आवाज आई जो हमें जिंदगी की उम्मीद दे गई……..सुरंग में फंसे मजदूर ने बताई मौत को मात देने की कहानी

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

लखनऊ: अहमद मुश्ताक का शेर है, ‘मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी/ ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो।’ उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल से 17 दिन बाद मौत के सिर पर पांव रखकर बाहर आए 41 मजदूरों से बेहतर इसे कोई नहीं समझ सकता। इनमें यूपी के भी 8 मजदूर थे। यूपी सरकार उन्हें शुक्रवार को लखनऊ ले आई। श्रावस्ती के मोतीपुर कला निवासी अंकित भी सुरंग में फंस गए थे। वह बताते हैं, ‘ टनल बंद होने के करीब 17-18 घंटे बाद एक आवाज सुनाई दी। हम उसकी दिशा तलाशने लगे। पता चला कि पानी के पाइप से आई वह आवाज टनल के बाहर से थी। हमारी रगों में जिंदगी की उम्मीद दौड़ पड़ी। एक-दूसरे को हौसला देते दिन कट गए।’

सिलक्यारा में 12 नवंबर को निर्माणाधीन टनल में मिट्टी धंसने से 41 मजदूर फंस गए थे। इन्हें 28 नवंबर को बाहर निकाला जा सका। एम्स ऋषिकेश में मेडिकल जांच के बाद यूपी के मजदूरों (श्रावस्ती के अंकित, राममिलन, सत्यदेव, संतोष, जयप्रकाश, रामसुंदर, खीरी के मंजीत व मीरजापुर के अखिलेश कुमार) को सरकार शुक्रवार सुबह लखनऊ ले आई। इन्हें राजधानी के सबसे आलीशन सरकारी गेस्ट हाउस नैमिषारण्य में ठहराया गया।
धमाके की आवाज और अनहोनी
मीडिया के कैमरों से जूझ रहे अंकित से नजर मिली तो उसमें नींद और नाराजगी दोनों ही भरी थी। उन्होंने कहा, ‘इतना तो 17 दिन पाइप से बोलना-चिल्लाना नहीं पड़ा, जितना पिछले तीन दिनों से आप लोग बोलवा रहे हैं। जो हम याद नहीं करना चाहते, आप लोग भूलने नहीं दे रहे।’ कुछ सेकंड खामोशी के बाद मैंने बात आगे बढ़ाई,’ हम दोनों ही खोदाई करते हैं, आप टनल खोदते हैं, हम एहसास।’ अंकित मुस्कराए और फ्लैशबैक शुरू हो गया- ‘ मैं वेल्डर हूं। हमारी शिफ्ट सुबह 8 बजे खत्म होनी थी। उस दिन दीपावली थी, इसलिए हम लोग एक-डेढ़ घंटे पहले ही निकलने वाले थे। सुबह करीब पांच बजे तेज धमाका हुआ। हम लोग उधर भागे तो पता चला कि मलबा गिर गया है। कुछ देर में ही आभास हो चुका था कि टनल से निकलने के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं।’
पानी का पाइप बना सहारा

संतोष बताते हैं कि 12-15 घंटे तक बाहर से कोई संपर्क नहीं हो पाया। टनल में दो पाइप पड़े थे, एक पानी अंदर लाने के लिए, एक बाहर निकालने के लिए। 17-18 घंटे बाद हमें पाइप से आवाज सुनाई दी। इसके साथ ही बाहर से हमारा संवाद शुरू हुआ। पाइप के जरिए लइया, सूखे मेवे आने शुरू हुए। टनल ढाई किमी लंबी है, इसलिए, शुरुआत में दो-दिनों तक ऑक्सिजन की कोई दिक्कत नहीं थी, बाद में उस पाइप से कंप्रेशर के जरिए ऑक्सिजन भी पहुंचाई जाने लगी।
samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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