आत्माराम त्रिपाठी की खास रिपोर्ट
पत्रकार एकता के नाम पर जनपद के एक संगठन द्वारा खनन माफियाओं के यहां रखी जाती है, पत्रकारों की कलम को गिरवी दिखाई जाती है, संख्या बल का धौंस, यह नजारा है बांदा जनपद के कुछ संगठनों की जिनके मुखिया अपने संगठन के पत्रकारों को मानते हैं अपनी जागीर। अधिकारियों को अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से करते हैं गुमराह। जबकी वास्तविकता से यह लोग रहते हैं कोसों दूर।
एक तरफ जहां पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, पत्रकार की कलम से लिखा गया हर एक शब्द सच्चाई की आवाज होती है, जिसे आज तक कोई भी दवा नहीं पाया। हमारे देश में कुछ ऐसे भी महान पत्रकार हैं जिन्होंने सच्चाई की खातिर अपनी जान तक की परवाह नहीं की। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सच्चाई के सिवा और कुछ नहीं लिखा, लेकिन अब पहले के समय की पत्रकारी और आज के समय की पत्रकारी में जमीन आसमान का फर्क आ गया है।
पहले के समय में कुछ चंद पत्रकार हुआ करते थे लेकिन अब जब से सोशल मीडिया का दौर शुरू हुआ है, तब से हर कोई अपने आप को पत्रकार समझने लगा है।
ऐसे लोगों की नतो पत्रकारिता में रूचि है नहीं पत्रकारों की समस्याओं से कोई लेना-देना है। खुले शब्दों में कहें तो इनके पास ना तो एक भी स्तरीय समाचार पत्र है और ना ही किसी स्तरीय वैबसाइट में ही इनकी खबरें लगती हैं।
यह तो अपना उल्लू सीधा करते हैं और स्वमेव घोषित वरिष्ठ पत्रकार का लबादा ओढ़े घूमते हैं। अपनी पत्रकारिता की झूठी साख बचाने के लिए पत्रकार संगठन का संचालन करना इनकी मजबरी है।
प्रदेश का ऐसा ही कोई तहसील होगा जहाँ एक न एक ऐसा व्यक्ति आपको जरूर मिल जाएगा जिसे लिखने पढने से कोई वास्ता नहीं लेकिन वो किसी पत्रकार संगठन से जुडा़ हुआ जरूर होगा। कुछ लोग सवाल यह अवश्य उठा सकते हैं कि ऐसे माहौल में उन पत्रकारों और लेखकों पर इन गली मोहल्ले के अंगूठा टेक पत्रकारों का कोई असर पडेगा? इसका सीधा साधा जवाब ये हो सकता है कि ‘प्रतिभा तो कोयले की कालिखों के बीच में भी चमकती है।’
वास्तव में ऐसे लोग पत्रकार नहीं है बल्कि एक सुगठित गिरोह है जो इतना शातिर दिमाग का मालिक है कि पत्रकार से लेकर राजनेता ,माफियाओं, अधिकारियों तक को अपने झांसे में ले लेता है जिससे पवित्र पत्रकारिकता पीतपत्रकारिता में परिवर्तित हो जाती है जिसके शिकार देश के इस चौथे स्तंभ में कार्य करने वाले सच्चे पत्रकार होते हैं।
शासन प्रशासन को चाहिए कि ऐसे संगठनों पर कड़ी निगरानी रखें जिससे पत्रकारिता के पवित्र मिशन की शाख को बचाया जा सके।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."