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रामपुर

“आजम खान को हेट स्पीच मामले में बरी किया गया, कानूनी जानकारों की राय में सदस्यता बहाल नहीं होगी”

कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट  

समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को हेट स्पीच मामले में अडिशनल जिला जज ने बरी कर दिया है। पहले अडिनशल चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने 27 अक्टूबर को 3 साल कैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद वह अयोग्य घोषित हो गए थे और रामपुर सीट को विधानसभा ने रिक्त घोषित कर दिया। वहां उपचुनाव हुआ और बीजेपी के नेता चुन लिए गए। आजम के बरी होने के बाद अब सवाल यह है कि क्या उनकी सदस्यता वापस मिलेगी? कानूनी जानकारों की राय में सदस्यता बहाल नहीं होगी लेकिन अब आजम को अब चुनाव लड़ने पर कोई रोक नहीं होगी।

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दोषी करार होने के साथ ही अयोग्यता

कानूनी जानकार और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विकास सिंह बताते हैं कि 2013 में लिली थॉमस केस में सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था, जो सांसद और विधायक को आपराधिक मामलों में दोषी पाए जाने के बाद भी सदस्यता रद्द होने से बचाता था। कोर्ट ने इस प्रावधान को अल्ट्रावायरस बताया था। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने वाले सांसद और विधायक की अपील दाखिल करने के ग्राउंड पर सदस्यता खत्म नहीं होती थी। इस धारा के निरस्त होने के बाद जो भी जनप्रतिनिधि दो साल या उससे ज्यादा सजा के मामले में दोषी पाए जाएंगे, उनकी सदस्यता निरस्त हो जाएगी। आजम के साथ भी यही हुआ था।

उपचुनाव की प्रक्रिया कानूनी

आजम की सीट को विधानसभा अध्यक्ष ने खाली घोषित किया। चुनाव आयोग ने उस पर उपचुनाव कराया और वहां से कोई और जीत गया। तो जो भी प्रक्रिया हुई है वह कानून के दायरे में हुई है। अगर आजम दोबारा बहाल करने के लिए अपील दायर करते हैं तो वह अलग बात होगी। अब जो स्थिति है उसमें आजम खान के लिए सिर्फ यह राहत है कि उनके इस मामले में दोषसिद्धी के कारण जो चुनाव लड़ने पर रोक थी वह रोक खत्म हो गई।

दोषसिद्धी पर रोक होती तो स्थिति अलग होती

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ज्ञानंत सिंह बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने लिली थॉमस फैसले में कहा था कि ऊपरी अदालत में अपील के आधार पर अयोग्यता की कार्रवाई पर रोक नहीं हो सकती। यह भी कहा था कि संसद संविधान के दायरे में यह नियम तो तय कर सकती है कि अयोग्यता के लिए क्या मानदंड हों लेकिन अयोग्यता को रोकने के लिए नियम तय नहीं कर सकती है। ज्ञानंत सिंह कहते हैं कि आजम खान ने निचली अदालत द्वारा दोष सिद्धी के फैसले के खिलाफ तुरंत अपील दाखिल कर दी होती और ऊपर अदालत दोषसिद्धी पर रोक लगा देती तो स्थिति दूसरी होती। लेकिन मौजूदा मामले में सीट खाली होने के बाद चुनाव हो चुका है। अब आजम दोबारा बहाल नहीं हो सकते।

चुना हुआ प्रतिनिधि सदन में होना जरूरी

सुप्रीम कोर्ट में चुनाव सुधार को लेकर तमाम अर्जी दाखिल करने वाले एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि जनता का प्रतिनिधि सदन में होना चाहिए, सीट खाली नहीं रह सकती है। सीट रिक्त होने के बाद चुनाव आयोग अधिसूचना जारी करता है और फिर चुनाव होता है। आज की तारीख में उस सीट पर चुने हुए प्रतिनिधि हैं। जैसे ही कोई अयोग्य करार दिया जाता है तो उस तारीख में वह सदस्य नहीं रह जाता है। ऐसे में दोबारा उस सीट पर बहाल किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है।

छजलैट मामले में भी मिली है 2 साल की सजा, इसलिए नहीं बहाल होगी सदस्‍यता

आपको बता दें कि 15 साल पुराने मुरादाबाद के छजलैट प्रकरण में भी आजम खान को दो साल की सजा मिली हुई है, इसलिए उनकी विधानसभा सदस्‍यता बहाल होना मुश्किल है। मुरादाबाद के छजलैट में 15 साल पहले 2008 में पुलिस ने आजम खान की कार को चेकिंग के लिए रोक लिया था जिस पर सपा समर्थकों ने जमकर हंगामा किया था। इस केस में मुरादाबाद कोर्ट ने आजम और उनके बेटे अब्‍दुल्‍ला को दो-दो साल कारावास की सजा दी है।

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