दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
बाराबंकी, बिना उचित कारण पति के साथ रहने से इन्कार करने वाली महिला को गुजारा भत्ता देने संबंधी एकपक्षीय आदेश अदालत ने खारिज कर दिया। पत्नी ने पति से अलग होने के करीब 12 वर्ष बाद उस समय गुजारा भत्ता का मुकदमा दायर किया था, जब पति शिक्षामित्र से शिक्षक पद पर समायोजित हो गया था।
कोठी थाने के एक गांव में अपने पांच भाइयों के संयुक्त परिवार में रहने वाले राम प्रताप का विवाह निकट गांव की एक युवती से करीब 20 वर्ष पहले हुआ था। संयुक्त परिवार से बंधे राम प्रताप ने परिवार से अलग रहने की कल्पना भी कभी की थी, लेकिन पत्नी ने कुछ दिन बाद ही अलग रहने की जिद पकड़ ली। विवाह के दो वर्ष बाद बेटा हुआ। पत्नी मायके में रहने लगी। स्नातक तक शिक्षित राम प्रताप का चयन शिक्षामित्र पद पर गांव के विद्यालय में हो गया। 3500 रुपये अल्प मानदेय पाने वाले राम प्रताप कई बार पत्नी को बुलाने ससुराल गए, पर पत्नी अलग रखने की शर्त पर अड़ी रही।
वर्ष 2015 में राम प्रताप का समायोजन जब शिक्षक पद पर हुआ तो उन्होंने फिर साथ रहने के लिए कहा, लेकिन इस बार पत्नी ने राम प्रताप की तनख्वाह की ओर देखा और गुजारा भत्ता का मुकदमा दायर कर दिया। मारपीट कर घर से निकालने के आरोप भी लगाए। रामप्रताप ने अदालत में भी हर बार यही कहा कि पत्नी का घर उसका मायका नहीं ससुराल होता है। पति के सुख-दुख में साथ रहने की कसम हमारे विवाह संस्कार में खाई जाती है। इसलिए गुजारा नहीं देंगे, साथ में गुजर-बसर करेंगे, लेकिन अदालत से राहत नहीं मिली।
एक ओर अदालत से गुजारा भत्ता देने का आदेश हो गया, दूसरी ओर राम प्रताप का शिक्षक पद से समायोजन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रद हो गया। राम प्रताप पर दोहरी मार पड़ी। राम प्रताप ने गुजारा भत्ता आदेश के विरुद्ध पारिवारिक न्यायालय में फिर वाद दायर किया। उन्होंने पूरे दमखम से अपनी बात पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दुर्ग नारायण सिंह के सामने रखी। कहा कि हुजूर! गुजारा भत्ता तो हम नहीं दे पाएंगे। साथ में गुजर बसर करेंगे, लेकिन पत्नी साथ रहने को राजी नहीं हुई। इस पर जज ने राम प्रताप की पत्नी का गुजारा भत्ता संबंधी दावा खारिज कर दिया।
Author: samachar
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