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November 22, 2024 4:54 pm

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गरीब मां की बेबसी: दूध पिलाने के नहीं थे पैसे तो कलेजे के टुकड़े को छोड़ा ट्रेन में, साथ छोड़ गई थी दर्द भरा पत्र भी

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सीमा किरण की रिपोर्ट 

ग्वालियर। एक गरीब और बेसहारा मां की ऐसी बेबसी सामने आई है, जिसको सुनकर हर किसी का दिल कांप जाए। इतना ही नहीं, वह बेबसी और गरीबी के चलते अपने कलेजे के टुकड़े को भी लावारिस छोड़ने के लिए मजबूर हुई है। मां ने अपने ढाई साल के कलेजे के टुकड़े को एक ट्रेन में लावारिस छोड़ा है और उसके साथ ही एक पत्र भी लिखकर छोड़ गई है, जिसमें अपनी पूरी मजबूरी का जिक्र किया है। पूरा मामला ग्वालियर-रतलाम एक्सप्रेस का है। रेल पुलिस महिला का पता लगा रही रही है।

पत्र में महिला ने लिखा है- मेरे चार बच्चे हैं, मेरे पति का निधन हो चुका है, कमाई का कोई सहारा नहीं है, मेरा यह बच्चा सिर्फ दूध पीता है, लेकिन मैं अपने बच्चे के लिए दूध नहीं खरीद सकती, मेरी मजबूरी को कोई नहीं समझ रहा, इसलिए इसे छोड़ रही हूं… कृपया इसे सही जगह या अनाथालय में पहुंचा दें मैं हाथ जोड़कर निवेदन कर रही हूं… ये लाइनें उस पत्र की हैं। इसका खुलासा तब हुआ जब ट्रेन में यह पत्र एक टीटीई को मिला है। साथ में एक ढाई साल का बच्चा भी।

चाइल्ड लाइन की टीम को सौंपा बच्चे को

बताया जा रहा है कि ग्वालियर-रतलाम एक्सप्रेस में यात्रियों को एक बच्चा दिखाई दिया। हालांकि, यात्रियों को बच्चे के परिजन नहीं दिखाई दिए. फिर यात्रियों ने ये बात टीटीई को बताई। इसके बाद टीटीई ने ट्रेन की दूसरी बोगियों में जाकर बच्चे के परिजनों की खाजबीन की। लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया। ट्रेन जैसे ही ग्वालियर स्टेशन पर पहुंची, इसकी सूचना टीटीई ने रेल पुलिस को दी। रेल पुलिस ने तत्काल चाइल्ड लाइन की टीम को बुलाया और बच्चा उन्हें सौंप दिया गया। बच्चे के पास मिले पत्र को देखकर आरपीएफ और चाइल्ड लाइन के कर्मचारियों की भी आंखें भर आईं।

सरकार के दावे सिर्फ ढोंग

हैरानी की बात यह है कि हमारे राजनेता और अफसर संवेदनशीलता का ढोंग करते हुए दावा करते हैं कि वह कमजोर और समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के कल्याण के बारे में सोचते हैं, लेकिन शायद यह बातें सिर्फ कागजी हैं। जमीनी स्तर पर इसकी हकीकत कुछ और है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है महिला जिसने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर दिल के टुकड़े को ट्रेन में लावारिस हालत में छोड़ दिया। जबकि हमारे जनप्रतिनिधि अपनी यात्राओं पर आडंबर में ही करोड़ों रुपये खर्च कर देते हैं।

डी-6 कोच में मिला था बच्चा

बता दें कि यह बच्चा डी6 कोच में रतलाम भिंड इंटरसिटी एक्सप्रेस में मिला था। जो ठीक से बोल भी नहीं पाता है और उम्र भी सिर्फ ढाई साल है। फिलहाल बाल कल्याण समिति के सुपुर्द इस बच्चे को दे दिया गया है, जहां उसका मेडिकल परीक्षण कराया गया है। फिलहाल इस बच्चे की अभागी मां का कुछ पता नहीं चला है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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