सुनीता परिहार की रिपोर्ट
राजस्थान का एक गांव ऐसा भी जहां महिलाएं पुरुषों से खून की होली खेलती है। महिलाएं पुरुषों की पीठ पर कोड़े बरसाती हैं। पुरुषों के लहूलुहान होने के बाद भी महिलाएं नहीं रुकतीं। हम बात कर रहे हैं दौसा जिले के पावटा गांव में खेली जाने वाली डोलची होली की। यह होली अन्य जिलों या राज्यों में खेली जानी वाली होली से काफी अलग व अनूठी है।
दरअसल, हर साल बल्लू शहीद की याद में धुलंडी के बाद भाईदूज पर पावटा गांव का हदीरा चौक रणभूमि में तब्दील हो जाता है। महिलाएं पुरुषों की पीठ पर कोड़े बरसाती हैं। पुरुषों के लहूलुहान होने के बाद भी महिलाएं नहीं रुकतीं। इस बीच पूरा गांव शहीद बल्लू सिंह के जयकारों से गूंजता रहता है।
इस अनोखी होली का मजा लेने के लिए दूर-दूर से लोग पावटा आते हैं। हर साल की तरह इस बार भी 19 मार्च को भाईदूज के दिन बल्लू शहीद की याद में डोलची होली मनाई जाएगी। इसे लेकर ग्राम पंचायत और ग्रामीणों ने लगभग सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं।
पुरुष फेंकते हैं महिलाओं पर पानी
गांव के बुजुर्गों की ओर से डोलची होली के शुभारंभ की घोषणा के साथ ही हदीरा मैदान के दोनों ओर महिला-पुरुषों की टोलियां आमने-सामने हो जाती हैं। पुरुष चमड़े से बनी डोलची में पानी भरकर महिलाओं पर फेंकते हैं। इसके जवाब में महिलाएं पुरुषों की पीठ पर कोड़े बरसाती हैं। करीब तीन घंटे तक चलने वाले इस महासंग्राम का आनंद लेने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों से हजारों लोग पावटा पहुंचते हैं। महासंग्राम खत्म होने के बाद पुरुष आपस में डोलची खेलते हैं।
पंच-पटेल संभालते हैं मोर्चा
डोलची के आयोजन से पूर्व ही हदीरा मैदान के इर्द-गिर्द मकानों पर गांव के पंच-पटेल जुट जाते हैं। गांव के लोगों के साथ पंच-पटेल भी रंग-बिरंगे साफे बांधे व हुक्का हाथ में लिए दोनों टोलियों का हौसला बढ़ाते हैं। पंच-पटेल ही घोषणा करते हैं कि महासंग्राम में कौन जीता। आयोजन के दौरान महिलाएं लोक नृत्य की प्रस्तुति भी देती हैं।
बल्लू शहीद की याद में खेली जाती है डोलची होली
पावटा की डोलची होली गांव के बल्लू शहीद की याद में मनाई जाती है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों पूर्व संघर्ष में दुश्मनों ने बल्लू सिंह का सिर काटकर धड़ से अलग कर दिया। इसके बावजूद बल्लूसिंह ने दुश्मनों से लोहा लिया। तभी से ही यहां के लोग बल्लू शहीद की याद में होली की भाईदूज को हदीरा मैदान में डोलची खेलते हैं।
गांव पर मंडराए थे संकट के बादल
गांववालों का कहना है कि एक बार गांव में किसी कारण से डोलची होली नहीं खेली गई तो अकाल पड़ गया। पानी न मिलने से मवेशी मरने लगे। इसके बाद ग्रामीणों ने बल्लू शहीद के स्थान पर जाकर हर वर्ष डोलची खेलने की कसम खाई। लोगों का मानना है कि इसके बाद ही अकाल का संकट दूर हुआ। गांव में करीब 700 साल से गुर्जर समाज के लोग लगातार इस परंपरा को निभा रहे हैं।
Author: samachar
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