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मिल्कीपुर उपचुनाव में बीजेपी की जीत: यादव वोटरों की नाराजगी और योगी की रणनीति ने बदला समीकरण

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

अयोध्या। अयोध्या लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता अवधेश प्रसाद की ऐतिहासिक जीत के बाद से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए यह हार एक बड़ी चुनौती बन गई थी। विपक्षी दलों ने इसे भगवा ब्रिगेड की हार के रूप में प्रचारित किया, जिससे बीजेपी नेतृत्व और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह हार प्रतिष्ठा का सवाल बन गई।

अवधेश प्रसाद के सांसद बनने के बाद उनकी मिल्कीपुर विधानसभा सीट खाली हो गई, जिससे यहां उपचुनाव की नौबत आई। यह सीट सपा के लिए पारंपरिक रूप से सुरक्षित मानी जाती थी, लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह बदल गए।

यादव मतदाताओं ने दिखाया सपा से मोहभंग

मिल्कीपुर में यादव मतदाताओं की संख्या 50 से 55 हजार के करीब है। इसी आधार पर समाजवादी पार्टी इसे अपनी मजबूत सीट मानती रही है। लेकिन इस बार यादव मतदाताओं ने अखिलेश यादव को संदेश दे दिया कि वे सपा के स्थायी समर्थक नहीं हैं।

इस बदलाव के पीछे सबसे बड़ा कारण मित्रसेन यादव परिवार की उपेक्षा मानी जा रही है। साठ के दशक से ही फैजाबाद और आसपास के क्षेत्रों में मित्रसेन यादव का जबरदस्त राजनीतिक दबदबा रहा है। वे कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर भी चुनाव जीत चुके थे और बाद में समाजवादी राजनीति के एक बड़े स्तंभ बने। 1989 तक वे मिल्कीपुर के विधायक रहे, लेकिन सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के कारण उन्हें बीकापुर से चुनाव लड़ना पड़ा। वे 1998 और 2000 में फैजाबाद के सांसद भी बने और रामलहर के बावजूद उन्होंने बीजेपी के विनय कटियार को हराया था।

अखिलेश यादव द्वारा अवधेश प्रसाद को प्राथमिकता देने और मित्रसेन परिवार की अनदेखी करने से यादव मतदाताओं में असंतोष फैल गया। मित्रसेन यादव के बाद उनके बेटे अरविंदसेन यादव और आनंदसेन यादव ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली, जबकि उनकी बहू प्रियंका सेन यादव भी जिला पंचायत सदस्य रह चुकी हैं। इस परिवार के प्रभाव को नकारना सपा के लिए भारी पड़ा।

बीजेपी की किलेबंदी और रणनीतिक बढ़त

अयोध्या में मिली हार के बाद बीजेपी ने मिल्कीपुर में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया और अपने कई मंत्रियों को क्षेत्र में प्रचार अभियान में झोंक दिया। इसके अलावा, विकास परियोजनाओं की झड़ी लगा दी गई ताकि जनता को लगे कि अगर बीजेपी उम्मीदवार हार गया तो विकास कार्य भी प्रभावित हो सकते हैं।

फैजाबाद के वरिष्ठ पत्रकार वी.एन. दास के मुताबिक, “मित्रसेन यादव की वजह से यह सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ रही है। बीजेपी यहां पहले सिर्फ दो बार जीत सकी थी।” लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह बदल गए।

राम मंदिर और हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण

अयोध्या में सपा की जीत के बाद बीजेपी समर्थकों और हिंदू मतदाताओं को झटका लगा था। इस उपचुनाव में बीजेपी ने इस भावनात्मक पहलू को भी भुनाया। समाजवादी पार्टी ने “फैजाबाद की तर्ज पर नया नारा दिया – ‘मथुरा ना काशी, मिल्कीपुर में अजीत पासी।'” लेकिन यह नारा उल्टा पड़ गया और हिंदू मतदाता बीजेपी के पक्ष में एकजुट हो गए।

चंद्रभानु पासवान की जीत और सपा की रणनीतिक चूक

बीजेपी प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान की जीत इस बात को दर्शाती है कि पार्टी ने अयोध्या में मिली हार से सबक लिया और अपनी रणनीति को और आक्रामक बनाया। दूसरी ओर, सपा ने यादव वोटों को अपनी ताकत मानकर रणनीतिक भूलें कीं, जिससे पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ।

मिल्कीपुर उपचुनाव ने यह साबित कर दिया कि यूपी की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा स्थायी नहीं रहते। यादव मतदाताओं की नाराजगी, बीजेपी की मजबूत रणनीति और हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण ने सपा को नुकसान पहुंचाया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि समाजवादी पार्टी इस झटके से कैसे उबरती है और अपने परंपरागत वोट बैंक को फिर से कैसे साधती है।

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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