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31 January 2025 10:22 pm

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दो कातिल फौजियों के कारनामे, कुंआरी माँ ने अपने जुडवां बच्चों के साथ कैसे एक मुद्दत गुजारी… . आप सिहर जाएंगे

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टिक्कू आपचे की रिपोर्ट

10 फरवरी 2006—यह वह तारीख थी जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। केरल के कोल्लम जिले का एक छोटा सा गांव आंचल उस दिन एक भयावह अपराध का गवाह बना, जिसने प्यार, भरोसे और मासूमियत को बेदर्दी से कुचल दिया।

दोपहर के करीब 11-12 बजे का समय था। एक छोटे से किराए के घर में एक मां और उसके महज 17 दिन के जुड़वां बच्चों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। बच्चों के गले धारदार चाकू से रेत दिए गए थे, और उनकी मां रंजिनी का शव खून से लथपथ पड़ा था। यह कोई सामान्य अपराध नहीं था—यह एक सोची-समझी साजिश थी, जिसके पीछे छिपी थी विश्वासघात की एक दर्दनाक दास्तान।

जब पुलिस ने जांच शुरू की, तो इस वीभत्स अपराध के पीछे दो नाम सामने आए—भारतीय सेना के दो जवान, दिविल कुमार और राजेश। जांच टीम ने तुरंत पंजाब के पठानकोट में स्थित आर्मी कैंप में इनकी तलाश शुरू की, लेकिन वे दोनों पहले ही फरार हो चुके थे। सालों तक यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा, लेकिन अंततः 19 साल बाद, केरल पुलिस ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से इन दोनों गुनहगारों को पकड़ लिया।

यह कहानी सिर्फ एक हत्या की नहीं, बल्कि इंसाफ की उस लंबी लड़ाई की भी है, जिसने तकनीक और कानून के सम्मिलित प्रयासों से दो अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया।

प्यार, धोखा और एक खतरनाक साजिश की शुरुआत

इस कहानी की शुरुआत होती है केरल के कोल्लम जिले के अलायमोन गांव से, जहां रंजिनी और दिविल कुमार नाम के युवक के बीच प्रेम संबंध थे। दिविल भारतीय सेना में था और दोनों का रिश्ता काफी समय से चल रहा था। लेकिन फिर एक मोड़ आया—रंजिनी गर्भवती हो गई। जब उसने यह खबर दिविल को दी, तो उसने अबॉर्शन कराने की सलाह दी। मगर रंजिनी अपने होने वाले बच्चों को दुनिया में लाने के लिए अडिग थी। यही बात दोनों के रिश्ते में दरार की वजह बनी।

इस बीच, दिविल अपनी पोस्टिंग के चलते पंजाब के पठानकोट स्थित आर्मी कैंप चला गया, और रंजिनी अकेली रह गई। जनवरी 2006 के आखिर में, उसने तिरुवनंतपुरम के एक अस्पताल में जुड़वां बेटियों को जन्म दिया।

यहीं पर कहानी में एक नया किरदार शामिल हुआ—एक अजनबी, जिसने अपना नाम अनिल कुमार बताया। वह अस्पताल में रंजिनी की मां सांथम्मा से मिला और भरोसा दिलाया कि जरूरत पड़ने पर वह ब्लड डोनेट करने के लिए तैयार रहेगा। हालांकि, रंजिनी को ब्लड की जरूरत नहीं पड़ी, लेकिन अनिल अस्पताल में उसके आस-पास ही बना रहा और धीरे-धीरे उसकी जिंदगी में दाखिल हो गया।

कुछ ही दिनों में उसने रंजिनी को यह सुझाव दिया कि वह आंचल गांव में एक किराए के मकान में शिफ्ट हो जाए, ताकि समाज की बातों से बच सके। रंजिनी ने उसकी बात मान ली और अपनी मां और नवजात बच्चियों के साथ वहां रहने लगी।

इस दौरान, रंजिनी ने राज्य महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई और दिविल कुमार का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की। उसका कहना था कि वह साबित कर सकती है कि उसकी बेटियां दिविल की ही हैं। महिला आयोग ने उसकी मांग को स्वीकार किया और डीएनए टेस्ट का आदेश दे दिया।

लेकिन इससे पहले कि न्याय की प्रक्रिया आगे बढ़ पाती, 10 फरवरी 2006 को एक खौफनाक घटना ने सब कुछ बदल दिया।

10 फरवरी 2006: जब भरोसा खून से लाल हो गया

उस दिन दिविल अचानक रंजिनी के घर पहुंचा। उसने उसकी मां सांथम्मा से कहा कि बच्चों के जन्म से जुड़े कुछ जरूरी दस्तावेज पंचायत ऑफिस में जमा करने हैं और इसके लिए उन्हें वहां जाना होगा। सांथम्मा उसकी बातों में आ गईं और पंचायत ऑफिस चली गईं।

लेकिन जब वह वापस लौटीं, तो जो दृश्य उन्होंने देखा, वह किसी बुरे सपने से कम नहीं था।

घर के अंदर रंजिनी और उसकी दोनों नवजात बच्चियों की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं। बच्चों के नन्हे गले चाकू से काट दिए गए थे, और उनकी मां की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।

तुरंत पुलिस को खबर दी गई, और जांच शुरू हुई। मौका-ए-वारदात से एक टू-व्हीलर का सुराग मिला, जो किसी “राजेश” के नाम पर रजिस्टर्ड था।

जब जांच आगे बढ़ी, तो एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ—राजेश और कोई नहीं, बल्कि वही अनिल कुमार था, जिसने अस्पताल में रंजिनी से दोस्ती कर ली थी!

दरअसल, यह पूरा खेल दिविल और उसके दोस्त राजेश ने मिलकर रचा था। राजेश को दिविल ने ही रंजिनी के करीब जाने के लिए भेजा था। योजना यह थी कि पहले उसकी भरोसेमंद बनो, फिर सही समय पर उसे खत्म कर दो।

जिस दिन सांथम्मा पंचायत ऑफिस गईं, उसी दिन राजेश ने निर्दयता से रंजिनी और उसकी बच्चियों को मौत के घाट उतार दिया।

19 साल तक फरार, फिर AI से ऐसे पकड़े गए

हत्या के बाद दोनों आरोपी फरार हो गए। पुलिस ने उनकी तलाश में पठानकोट तक छानबीन की, लेकिन तब तक वे दोनों लापता हो चुके थे।

साल 2010 में यह केस सीबीआई को सौंप दिया गया, लेकिन जांच एजेंसी के हाथ भी खाली ही रहे। 19 साल तक यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा, और लगने लगा कि रंजिनी और उसकी बच्चियों को कभी इंसाफ नहीं मिलेगा।

फिर 2025 में, केरल पुलिस ने इस केस को दोबारा खोलने का फैसला किया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद ली।

पुलिस के टेक्निकल इंटेलिजेंस विंग ने AI का इस्तेमाल करके दोनों आरोपियों की पुरानी तस्वीरों को डिजिटल रूप से डेवलप किया और यह अनुमान लगाया कि 19 साल बाद वे कैसे दिख सकते हैं। इन तस्वीरों को सोशल मीडिया प्रोफाइल्स से मिलाया गया।

इसी दौरान, एक AI-जनरेटेड तस्वीर फेसबुक पर अपलोड की गई एक शादी की फोटो से 90% मेल खा गई। जांच करने पर पता चला कि राजेश ने नाम बदलकर पुडुचेरी में “प्रवीण कुमार” के रूप में नई पहचान बना ली थी।

फौरन पुलिस हरकत में आई और 4 जनवरी 2025 को राजेश को गिरफ्तार कर लिया। उसकी निशानदेही पर दिविल कुमार को भी पकड़ लिया गया, जो अब “विष्णु” के नाम से रह रहा था।

दोहरी जिंदगी: दोनों ने शादी भी कर ली थी

गिरफ्तारी के बाद यह सामने आया कि दोनों आरोपियों ने ना सिर्फ नाम बदले, बल्कि पुडुचेरी में नई जिंदगी बसा ली थी।

दिविल ने “विष्णु” बनकर और राजेश ने “प्रवीण कुमार” बनकर इंटीरियर डिजाइन का काम शुरू किया। दोनों ने दो शिक्षिकाओं से शादी कर ली थी और सामान्य जीवन बिता रहे थे, मानो उन्होंने कभी कोई अपराध किया ही नहीं।

लेकिन कानून के लंबे हाथों से वे ज्यादा दिन बच नहीं सके।

अंततः मिला इंसाफ

19 साल के लंबे इंतजार के बाद, रंजिनी और उसकी बच्चियों को आखिरकार इंसाफ मिला। AI की मदद से इस घटना का पूरा खुलासा करने के बाद अपराधी को कानून के हवाले कर दिया गया।

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