बाबू सिंह कुशवाहा की सियासी रणनीति : सपा सांसद रहते ‘जन अधिकार पार्टी’ का झंडा बुलंद

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संतोष कुमार सोनी की रिपोर्ट

बांदा। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना चुके बाबू सिंह कुशवाहा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए विवादों से लेकर जेल यात्रा तक का सामना करने वाले कुशवाहा ने अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखी है। वर्तमान में समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद होने के बावजूद उन्होंने अपनी पत्नी सुकन्या कुशवाहा की अगुवाई में ‘जन अधिकार पार्टी’ को सक्रिय बनाए रखा है। यही कारण है कि जब वह अपने गृह जनपद बांदा पहुंचे तो उनके काफिले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी।

जन अधिकार पार्टी के मंच से शक्ति प्रदर्शन

गुरुवार को बाबू सिंह कुशवाहा ‘जन अधिकार पार्टी’ की भाईचारा यात्रा के तहत बांदा पहुंचे। झांसी से शुरू हुई यह यात्रा जालौन, महोबा और हमीरपुर होते हुए बांदा पहुंची थी। यात्रा का उद्देश्य संविधान को मजबूत करने का संदेश देना बताया गया, लेकिन इसकी सियासी गूंज कुछ और ही थी।

बांदा में जबरदस्त स्वागत के दौरान समाजवादी पार्टी के झंडे के साथ-साथ ‘जन अधिकार पार्टी’ के झंडे भी लहराए गए। मंच से पार्टी के स्थानीय नेताओं ने अपने विचार रखे, और खास बात यह रही कि बाबू सिंह कुशवाहा ने बतौर सपा सांसद होने के बावजूद ‘जन अधिकार पार्टी’ की नीतियों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया।

पत्रकारों के सवाल और बृजेश कुशवाहा की सफाई

इस मौके पर जब मीडिया ने जन अधिकार पार्टी के बांदा विधानसभा क्षेत्र अध्यक्ष बृजेश कुशवाहा से सवाल किया कि एक सपा सांसद अपनी अलग पार्टी का प्रचार क्यों कर रहे हैं, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि “जन अधिकार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुकन्या कुशवाहा हैं, और बाबू सिंह कुशवाहा सिर्फ अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शामिल हुए हैं। इसमें कोई विवाद नहीं होना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “यह कार्यक्रम पूरी तरह से जन अधिकार पार्टी का है, और बाबू सिंह कुशवाहा सपा सांसद होने के बावजूद इसमें भाग ले सकते हैं। यह तकनीकी रूप से कोई गड़बड़ी नहीं है, क्योंकि पार्टी की कमान अब सुकन्या कुशवाहा के हाथ में है।”

राजनीतिक समीकरण और भविष्य की रणनीति

बाबू सिंह कुशवाहा का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। मायावती सरकार में ताकतवर मंत्री रहने के बाद जब उन पर स्वास्थ्य घोटाले के आरोप लगे, तो उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी। भाजपा ने उन्हें अपनाया, लेकिन फिर किनारा कर लिया। सपा से उनकी पत्नी सुकन्या कुशवाहा को गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया गया, जबकि उनके भाई ने कांग्रेस के टिकट पर झांसी से किस्मत आजमाई, लेकिन दोनों को हार का सामना करना पड़ा।

हालांकि, बाबू सिंह कुशवाहा ने हार नहीं मानी और राजनीतिक सक्रियता बनाए रखी। इसी का नतीजा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सपा के टिकट पर जौनपुर से जीत हासिल कर सांसद बने। अब, अपने गृह जनपद बांदा में इस शक्ति प्रदर्शन के जरिए उन्होंने यह संकेत दिया कि वह सपा के भीतर रहकर भी अपनी अलग पहचान और जनाधार को मजबूत बनाए रखना चाहते हैं।

सपा और जन अधिकार पार्टी के बीच संबंधों पर चर्चा

बांदा के इस आयोजन में ‘अखिलेश यादव जिंदाबाद’ के नारे भी लगे, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि बाबू सिंह कुशवाहा सपा से अपना नाता बनाए रखना चाहते हैं। कार्यक्रम में सपा नेता शेखर शर्मा की मेहमानी भी चर्चा में रही।

इस अवसर पर कई प्रमुख नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहे, जिनमें हनुमान दास राजपूत, विकल्प शर्मा, इरफान, रेनू, दीपक त्रिपाठी, नीरज राजपूत, महेश शुक्ला, संतोष देवी लोधी, किरण कुशवाहा और लखन राज पासी प्रमुख रूप से शामिल थे।

क्या है आगे की रणनीति?

बाबू सिंह कुशवाहा का यह कदम एक नई राजनीतिक रणनीति का संकेत देता है। एक ओर वह सपा सांसद के रूप में अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जन अधिकार पार्टी के जरिए अपनी स्वतंत्र पहचान भी बनाए रखना चाहते हैं।

यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी दिनों में समाजवादी पार्टी इस पर क्या रुख अपनाती है। क्या अखिलेश यादव इस गठजोड़ को सहजता से स्वीकार करेंगे, या फिर सपा के भीतर से ही कोई नई सियासी खींचतान देखने को मिलेगी? फिलहाल, बाबू सिंह कुशवाहा ने बांदा में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर यह साबित कर दिया है कि वह अभी भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण किरदार बने हुए हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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