कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत लागू ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ पर पुनर्विचार शुरू हो गया है। वर्तमान में यह नीति आठवीं कक्षा तक के छात्रों पर लागू है, जिसके अंतर्गत छात्रों को फेल नहीं किया जाता। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में किए गए बदलावों के मद्देनजर योगी आदित्यनाथ सरकार इस नीति पर पुनः मंथन कर रही है।
क्या है नो डिटेंशन पॉलिसी?
आरटीई अधिनियम के तहत, आठवीं कक्षा तक के छात्रों को उनकी कक्षा में रोकने का प्रावधान नहीं है, भले ही उनका प्रदर्शन औसत से नीचे हो। हालांकि, पांचवीं और आठवीं कक्षाओं के छात्रों की परीक्षाएं नियमित रूप से आयोजित होती हैं, लेकिन उन्हें अगली कक्षा में प्रमोशन से नहीं रोका जाता। यह नीति छात्रों को असफलता के डर से बचाने और शिक्षा को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से लागू की गई थी।
केंद्र सरकार का बदलाव
हाल ही में केंद्र सरकार ने ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ में बदलाव करते हुए राज्यों को अपनी शिक्षा नीति बनाने की छूट दी है। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, अब सीबीएसई स्कूल भी उस राज्य की नीति का पालन करेंगे, जहां वे स्थित हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लिए गए निर्णय का प्रभाव प्रदेश के सीबीएसई स्कूलों पर भी पड़ेगा।
नीति में बदलाव की जरूरत क्यों?
विशेषज्ञों का मानना है कि ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ के कारण छात्रों की पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। परीक्षा में खराब प्रदर्शन करने वाले छात्रों को भी अगली कक्षा में प्रमोट करने से शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आई है और प्रतिस्पर्धा की भावना कम हुई है। ऐसे में कमजोर छात्रों को अतिरिक्त समर्थन देने के बजाय उन्हें बिना योग्यता के प्रमोट करना उनकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
अन्य राज्यों में स्थिति
असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों ने ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को पहले ही समाप्त कर दिया है। अब उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का निर्णय शिक्षा क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बेसिक शिक्षा विभाग की भूमिका
उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा इस मुद्दे पर गहन चर्चा और मंथन किया जा रहा है। यदि ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को समाप्त करने का निर्णय लिया जाता है, तो यह सभी सरकारी और निजी स्कूलों में लागू होगा। इसका अर्थ होगा कि अब पांचवीं और आठवीं कक्षा के छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट होने के लिए पास अंक लाना अनिवार्य होगा।
फैसले की प्रतीक्षा
बेसिक शिक्षा विभाग इस पर जल्द ही उच्चस्तरीय बैठकों का आयोजन करेगा। यदि नई नीति लागू होती है, तो यह उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव का प्रतीक होगी। इसके माध्यम से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की संभावना है, बल्कि छात्रों को बेहतर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया जा सकेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले पर पूरे देश की नजर है, क्योंकि यह राज्य शिक्षा सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा सकता है।