
-बल्लभ लखेश्री
(कहानी का सार – “गम के आंसू में गर्व का जश्न” एक गांव की उस साधारण-सी ज़िंदगी की कहानी है, जिसमें एक किसान परिवार का बेटा रणवीर अपने पिता की प्रेरणा से सेना में भर्ती होता है। उसकी पत्नी राधिका और बेटा रणधीर उसकी वापसी का इंतज़ार करते हैं।
लेकिन नियति एक गहरी चोट करती है— रणवीर सीमा पर लड़ते हुए शहीद हो जाता है। गांव शोक में डूब जाता है, पर शहीद की अंतिम यात्रा में राधिका अपने बेटे को एक कंधे पर उठाए और पति की अर्थी को दूसरे कंधे से सहारा देकर चल पड़ती है। यह दृश्य गांववासियों के लिए साहस और गर्व की मिसाल बन जाता है।)
हिमालय की तलहटी में एक छोटा सा गांव रामगढ़ जो प्रकृति की हर सौगात से सरोबार था। यहां की मन लुभावनी प्रकृति की मनोहर झांकी हर किसी को अपनी और आकर्षित करती थी।
इसी गांव में रामू चाचा नाम के एक किसान अपने परिवार के साथ रहतें थे। उनके पास कृषि भूमि ज्यादा नहीं थी, बावजूद भी अपनी मेहनत की जुगाड़ से सब कुछ ठीक-ठाक चला लेते थे।
रामू चाचा के एक पुत्र रणवीर और पुत्री हेमा थी।रामू चाचा और उनकी पत्नी ने बेटे बेटी की पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे संस्कारों का भी पूरा ख्याल रखा था।
रामू चाचा को जब-जब परिवार के साथ समय बिताने कों मिलता तो उसमें आजादी के किस्सों की चर्चा ज्यादा हुआ करती थी। रामू चाचा ने अपने दोनों बच्चों की शादी बड़ी धूमधाम से की। रणवीर अपने पिता की प्रेरणा और आजादी के किस्सों से प्रभावित होकर देश सेवा के जज्बे के साथ भारतीय सेना में भर्ती हों जाता हैं।
रणवीर की पत्नी राधिका एक तरफ पढ़ी-लिखी होनहार महिला थीं, तो दूसरी तरफ एक बहादुर और देशभक्त जीवन साथी मिला जो आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था। जिससे राधिका की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह सदैव अपने पति की काबिलियत के कसीदें घड़ती रहती थी।
इसी के साथ रणवीर पढ़ी-लिखी एवं सर्वगुण संपन्न पत्नी को पाकर के खुश था। राधिका अपने ऊपर सास ससुर की देखभाल करने के साथ-साथ अपने पुत्र रणधीर के अच्छे लालन-पालन के प्रति भी गंभीर थी।
राधिका रोजमर्रा के अपने पारिवारिक दायित्व को पूरा करने के बाद दो-तीन घंटे मोहल्ले के गरीब बच्चों को पढाने का कार्य भी करती थी।फल स्वरुप परिवार एवं आस पड़ोस के लोग राधिका के सम्मान में कोई कोर कसर नहीं रखते थे।
दोपहर के समय राधिका अपने कार्यों से निवृत होकर शादी का एल्बम निकाल करके रणवीर और स्वयं के फोटों देखकर अपने पाँच साल पूर्व की शादी की यादें ताज़ा कर रहीं थीं। तभी बेटा रणधीर बाहर से दौड़ता हुआ अंदर आता है, एवं राधिका को पापा की छुट्टी पर आने के बारे में पूछता है तो राधिका कहती है कि
“दस दिन बाद तेरे पापा आएंगे।”
तो रणधीर बाल सुलभ मनोभावों के साथ कहता है कि
“पापा मेंरे लिए बहुत सारे खिलौने लाएगें मैं खूब खेलूंगा।”
इतना कह कर वह अपने दादा-दादी के पास चला जाता है। राधिका बेटे की बातों से और पत्ति के छुट्टी पर आने की ख़ुशी में हर दिन सुनहरें सपनें संजोनें में मसगुल रहती थीं।
रणवीर के इंतजार में अब तो दस दिन का समय निकलना भारी पड़ रहा था,राधिका रोम रोम में खुशियों का संचार होता था।
लेकिन समय की बेरहम करवट कब पलटी खा कर खुशियों को निगल जाती है पता ही नहीं चलता है।
दोपहर ढलने के ठीक बाद एक सरकारी गाडी घर के सामने खड़ी होती है,आसपास के लोग भी इकट्ठे हो जाते हैं। गाड़ी से उतर कर एक बड़ा अधिकारी शांत भाव से रामू चाचा पास आकर बैठता हैं,उनकी और मुखातिब होकर के बोला कि
“हमें सेना मुख्यालय से सुचना मिली हैं कि रणवीर बड़ी बहादुरी के साथ सीमा की रक्षा करते हुए सैनिक मुठभेड़ में देश के काम आ गया है।”रामू चाचा इस अप्रत्यासित खबर कों सुन कर आवाक रह गए।
कुछ समय के बाद में सरकारी गाड़ी चली गई लेकिन आसपास के लोगों का रामू चाचा के घर जमावड़ा लगना शुरू हो गया। गोधूलि का वक्त आते-आते आज हर गली सूनी और पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया था।
रणवीर के घर के आस-पास दो-तीन वर्दीधारी चहल कदमी करते हुए दिखाई दे रहे थे।
राधिका यह देखकर के हतप्रद थीं कि आज घर के सामने कच्चे चौक में काफी लोग बैठे हैं। लेकिन हर रोज की भांति न चाय-पानी न हुक्के की मनुहार ऊपर से सब के चेहरों की हवाएं उड़ी हुई प्रतीत हो रही है।
राधिका जिस किसी की और मुखातिब होती तो हर कोई उससे नज़रे चुराने की कोशिश करता और कोई भी संतोष जनक जवाब देने की स्थिति में नहीं था।राधिका को लग गया कि उससे कुछ छुपाया जा रहा है राधिका को अचानक अनहोनी का एहसास होने लगा और रणवीर की कहीं हुई बातें राधिका के जहन में दौड़ने लगी है।
रणवीर अक्सर कहा करता था कि
“एक सैनिक के लिए देश के प्रति उसके कर्तव्य ही महत्वपूर्ण होते हैं जिसमें देश की रक्षा, नागरिकों की सुरक्षा, आदेशों की पालना के साथ सैनिक कों कुर्बानी और बलिदान के साथ जान की बाजी लगाने को हरदम तैयार रहना चाहिए।क्योंकि शाहिद का दर्जा एक सैनिक को अमर बना देता है।”
अचानक रणवीर की मां के बुरे हालात देखकर राधिका को सारा माजरा समझ में आ गया।एकाएक निढाल होकर गिर पड़ी। कभी चेतन तो कभी अर्थ चेतन तो कभी बेहोशी सारी रात वेदना का मज़र पूरे परिवार कों अथाह दुख के सागर में डुबोता रहा। एक शाहिद की पत्नी का दुख बहुत ही गहरा और जटिल होता है। उनके पत्ति की जान न्योछावर का दर्द शब्दों में बयां करना मुश्किल है।
अपने जीवन साथी के साथ बिताएं पलों की यादें, उसे खोने का दर्द,साथ हीं भावनात्मक आघात बहुत आहत करता हैं। भावी जीवन की चुनौतियां पहाड़ बन कर ख़डी हों जाती हैं। इस दरमियान गर्व और दर्द का मिश्रण अर्थात सहादत पर गर्व लेकिन जीवनसाथी के खोने का दर्द बहुत दर्दनाक और इस दयनीय दशा ने राधिका को गहरे सदमे में पहुंचा दिया।
अगले दिन अल सुबह भौर की पहली किरण के साथ रामू चाचा के घर के सामने एक सैनिक वाहन रुका उसके पीछे दर्जनों सरकारी गाड़ियों का काफिला था।सैनिक वाहन में रणवीर की पार्थिव देह जो तिरंगे में लिपटी हुई थीं, उसे घर के भीतर ले जाया गया।हर एक रुदन,विलाप और नम आखों से शहीद को पुष्प चक्र के साथ श्रद्धांजलि रहे थे।
इसी दौरान बेटा रणधीर सैनिक वाहन चालक से पूछ बैठा कि “मेरे खिलौने मुझे दे दो पापा ने कहा था कि मैं आऊंगा तब मेरे लिए बहुत सारे खिलौने लेकर के आऊंगा।” बच्चें के अधिकार पूर्ण शब्द और बाल सुलभ मनोभावों से सैनिक वाहन चालक स्तम्भ रह गया था।
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इस दौरान एक फौजी अफसर ने कहा कि हमारी सैनिक टुकड़ी बड़ी बहादुरी के साथ में दुश्मन की सेना के दांत खट्टे कर रही थी। रणवीर यमदूत बनकर के दुश्मन पर टूट पड़ा था।लेकिन सामने से एक गोली रणवीर के सीने से आर पार निकल गई।
अपना समय नजदीक आता देखकर लड़ते-लड़ते रणवीर ने कहा कि
“मेरे घर वालों को कहना कि मेरी मौत पर रुदन एवं विलाप करके कोई कायरता का परिचय न दें। देश के लिए कुर्बान होना किसी जश्न से कम नहीं होता है। मेरी बहादुर पत्नी को कहना कि रणधीर को भी मेरी तरह देश सेवा के लिए सेना में भेजना। ”
जब अंतिम यात्रा के लिए रणवीर का पार्थिव शरीर ले जाया जा रहा था तो राधिका ने एक कंधे पर अपने बेटे को बैठाया और दूसरे कंधे से अपने शहीद पति को कंधा देकर चल पड़ी। लोग राधिका की इस हिम्मत को देखकर दंग रह गए।एक तरफ सात तोफों की गगन भेदी सलामी तो दूसरी तरफ “जब तक सूरज चांद रहेगा रणवीर तेरा नाम रहेगा” की गगन चुम्बी घोष से आकाश गूंज उठा।
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(इस कथा में गम और गर्व की अनोखी संगति है। रणवीर का बलिदान केवल परिवार की निजी क्षति नहीं, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र का गौरव है। राधिका की दृढ़ता और साहस हमें यह सिखाते हैं कि शहादत को केवल आँसुओं से नहीं, बल्कि गर्व और संकल्प से भी याद किया जाना चाहिए। यह कहानी हर उस भारतीय को झकझोरती है, जो सैनिक के बलिदान को केवल मौत नहीं, बल्कि अमरत्व का उत्सव मानता है।- संपादक)
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