
आज के समय में पति-पत्नी के रिश्ते सोशल मीडिया के आईने में जितने ग्लैमरस दिखते हैं, उतने ही नाजुक भी साबित हो रहे हैं। हर दिन “नीले ड्रम” जैसे वायरल उदाहरण सामने आते हैं जो रिश्तों की सच्चाई को बेनकाब कर देते हैं। यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अब भी करवा चौथ जैसी परंपराएँ रिश्तों को जोड़ने की ताकत रखती हैं? या ये केवल पुराने ज़माने की औपचारिक रस्में बनकर रह गई हैं? आइए, इस गहन विषय पर तार्किक विश्लेषण करें।
सोशल मीडिया के दौर में रिश्तों का चेहरा
वर्तमान समय में निजी जीवन अब निजी नहीं रहा। फेसबुक, इंस्टाग्राम या यूट्यूब पर हर झगड़ा, हर हंसी और हर आंसू कंटेंट बन चुका है। “नीला ड्रम” वाला उदाहरण इस बात का प्रतीक है कि अब रिश्तों की टूटन भी मनोरंजन का हिस्सा बन चुकी है।
पर क्या यह केवल सोशल मीडिया की समस्या है? नहीं। असलियत यह है कि पति-पत्नी के बीच संवाद, भरोसा और सहानुभूति धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। यह वही दरार है जो कभी एक ‘पोस्ट’ में, तो कभी एक ‘वीडियो’ में फूट पड़ती है।
आंकड़ों की ज़ुबान में रिश्तों की हकीकत
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की Crime in India 2023 रिपोर्ट के अनुसार, “पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता” के मामले देश के कुल अपराधों का एक बड़ा हिस्सा हैं। यानी प्रेम और विवाह की परतों के नीचे असंतोष, हिंसा और दूरी की एक सच्चाई छिपी है।
इसी तरह राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5, 2019–21) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 29% विवाहित महिलाएं किसी न किसी रूप में वैवाहिक हिंसा की शिकार हुई हैं। शहरों में तलाक की दर भी धीरे-धीरे बढ़ रही है, खासकर उन वर्गों में जहाँ महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं।
इसका अर्थ यह नहीं कि विवाह संस्था खत्म हो रही है, बल्कि यह कि अब रिश्तों में “बराबरी” और “संतुलन” की नई परिभाषा जन्म ले रही है।
करवा चौथ: आस्था, परंपरा या दबाव?
करवा चौथ का पर्व सदियों से भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के प्रेम और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। पर आज के दौर में सवाल यह उठता है कि क्या यह व्रत अब भी उसी भाव से निभाया जा रहा है? या यह केवल दिखावे और सोशल मीडिया फोटो सेशन का हिस्सा बन गया है?
शादी.कॉम द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक, 60% लोग करवा चौथ को ‘प्रेम का उत्सव’ मानते हैं, लेकिन 35% लोग इसे “सामाजिक दबाव” के रूप में भी देखते हैं। यानी यह परंपरा तभी सार्थक है जब वह “दोतरफ़ा सम्मान” और “भावनात्मक जुड़ाव” को बढ़ाए, न कि एकतरफा त्याग का प्रतीक बने।
पति-पत्नी के रिश्ते बिगड़ने के प्रमुख कारण
1. संवाद का टूटना
अधिकांश रिश्ते इसलिए नहीं टूटते कि प्यार खत्म हो जाता है, बल्कि इसलिए कि बातचीत खत्म हो जाती है। आज की व्यस्त जिंदगी में पति-पत्नी के पास एक-दूसरे से खुलकर बात करने का समय नहीं है।
2. आर्थिक तनाव
महंगाई, नौकरी का तनाव और आर्थिक असुरक्षा रिश्तों में अदृश्य दीवारें खड़ी कर देते हैं। जहां पहले परिवार मिलकर मुश्किलों का सामना करता था, अब ‘तुम बनाम मैं’ की सोच बढ़ती जा रही है।
3. सोशल मीडिया और तुलना की संस्कृति
हर कोई अपनी शादी को “इंस्टाग्राम परफेक्ट” बनाना चाहता है। दूसरों की जिंदगी देखकर असंतोष बढ़ता है। यह मानसिक तुलना धीरे-धीरे रिश्तों में दूरी का कारण बनती है।
4. मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा
अवसाद, तनाव और मानसिक थकान जैसी समस्याएँ अब सामान्य हैं। लेकिन परिवारों में मानसिक स्वास्थ्य को अब भी ‘कमज़ोरी’ समझा जाता है। यह नज़रअंदाजी भावनात्मक दूरी को और बढ़ाती है।
क्या परंपराएँ रिश्तों को जोड़ सकती हैं?
करवा चौथ जैसी परंपराएँ यदि केवल ‘प्रदर्शन’ बनकर रह जाएँ तो उनका कोई स्थायी असर नहीं होता। लेकिन अगर इन्हें संवाद, साझेदारी और पारस्परिक प्रेम के साथ निभाया जाए, तो ये रिश्तों में नई ऊर्जा भर सकती हैं।
उदाहरण के लिए, कई आधुनिक दंपती अब करवा चौथ को “पार्टनर डे” के रूप में मनाते हैं, जहाँ दोनों एक-दूसरे के लिए उपवास रखते हैं या दिनभर साथ बिताते हैं। यह बदलाव इस त्योहार को “समानता” के प्रतीक में बदल देता है।
व्यावहारिक उपाय: कैसे घटाएँ दूरियाँ
1. रोज़ संवाद का समय तय करें
हर दिन 15 मिनट का “नो-फोन” समय रखें, जिसमें केवल एक-दूसरे से बात करें। यह छोटी आदत बड़े बदलाव लाती है।
2. झगड़े में सम्मान न भूलें
तर्क-वितर्क हर रिश्ते का हिस्सा है, लेकिन गाली या अपमान रिश्ते को तोड़ देते हैं। असहमति को भी सम्मान के साथ जताएँ।
3. काउंसलिंग को सामान्य बनाएं
रिश्तों की थेरेपी को “समस्या का प्रमाण” नहीं, बल्कि “रिश्ते की सर्विसिंग” समझें। जैसे कार की सर्विस होती है, वैसे ही रिश्तों की भी होती है।
4. आर्थिक पारदर्शिता रखें
पैसे से जुड़ी बातें सबसे ज्यादा झगड़े की वजह बनती हैं। खर्च और बचत पर खुला संवाद भरोसे को मजबूत करता है।
5. परंपराओं को पुनर्परिभाषित करें
करवा चौथ या तीज जैसी परंपराओं को “साथ निभाने” के अवसर में बदलें। इन त्योहारों को केवल महिलाओं की जिम्मेदारी न बनाएं।
जीवंत उदाहरण: तीन कहानियाँ जो सिखाती हैं
सीमा और अक्षय की कहानी
सीमा ने हर साल की तरह करवा चौथ रखा, लेकिन इस बार अक्षय ने पूरा दिन उनके साथ बिताया, काम में मदद की और शाम को पहली बार सीमा की बात ध्यान से सुनी। इसी एक रात ने उनके रिश्ते की दिशा बदल दी।
अनामिका और रवि का सोशल मीडिया झगड़ा
एक वायरल वीडियो ने दोनों की इज्जत और भरोसे को तोड़ दिया। लेकिन बाद में उन्होंने कपल थेरेपी ली और तय किया कि निजी जीवन अब कभी सोशल मीडिया पर नहीं आएगा।
शहरी तलाक का बढ़ता चलन
हैदराबाद, मुंबई और दिल्ली में पिछले दशक में तलाक के मामलों में 20% की वृद्धि दर्ज हुई है। इसका कारण संवादहीनता और अत्यधिक अपेक्षाएँ हैं। समय रहते समझ और काउंसलिंग से इन रिश्तों को बचाया जा सकता था।
निष्कर्ष: करवा चौथ से संवाद चौथ तक
रिश्ते किसी पर्व या उपवास से नहीं चलते, वे संवाद, सहानुभूति और समानता से चलते हैं। पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने के लिए “करवा चौथ” नहीं, “संवाद चौथ” की ज़रूरत है — एक ऐसा दिन जब दोनों एक-दूसरे की भावनाएँ सुनें।
नीले ड्रम जैसे उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि दिखावे के प्रेम से ज़्यादा ज़रूरी है सच्चा संवाद। अगर हम परंपरा को “प्रेम का औजार” बनाकर अपनाएँ, तो दूरियाँ घट सकती हैं और रिश्ते फिर से जिंदा हो सकते हैं।
