आर्य समाज कामां द्वारा हुआ 75वां साप्ताहिक हवन — संस्कृति, संस्कार और सत्य की ज्योति जली

सामूहिक रूप से हवन संस्कार करते हुए, चारों ओर गेंदा फूल की माला और पूजा सामग्री रखी है, पंडित आहुति दे रहे हैं।

आर्य समाज ने किया 75वें साप्ताहिक हवन का आयोजन, दी संस्कृति अपनाने की प्रेरणा

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हिमांशु मोदी की रिपोर्ट

कस्बा कामां में स्थित आर्य समाज के तत्वावधान में इस सप्ताह भी आध्यात्मिक वातावरण में 75वां साप्ताहिक हवन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। यह हवन नगर के पहाड़ी रोड स्थित डालचंद बघेल के निवास स्थान पर आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लेकर वेद मंत्रों की ध्वनि से वातावरण को पवित्र बनाया।

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आर्य समाज के प्रधान डॉ. हजारीलाल आर्य (पार्षद) ने यजमान के रूप में वेद मंत्रों के माध्यम से उपस्थित जनों को हवन में आहुतियाँ दिलाईं और धर्म, संस्कृति तथा परिवारिक मर्यादाओं के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। 

उन्होंने कहा कि आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य है— “सत्य का प्रचार और असत्य का खंडन।” इसलिए हमें अपने जीवन में वेदों की शिक्षाओं को अपनाना चाहिए, क्योंकि वे ही हमारी संस्कृति की जड़ हैं।

🌿 श्रीराम के चरित्र से प्रेरणा लेने की सीख दी

डॉ. हजारीलाल आर्य ने कहा कि यदि हम आर्य समाज के अनुयायी हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को मानते हैं, तो हमें उनके आदर्शों पर भी चलना चाहिए। उन्होंने रामचरितमानस के अयोध्या कांड का उल्लेख करते हुए बताया कि “इस जगत में वही जन्म धन्य है, जो माता-पिता को प्राणों के समान प्रिय रखता है।”

उन्होंने कहा कि श्रीराम के जीवन में माता-पिता की सेवा सर्वोपरि थी, और यही सेवा भाव आर्य समाज के सिद्धांतों का भी मूल है। इसलिए हमें अपने माता-पिता की सच्चे मन से सेवा करनी चाहिए, क्योंकि यदि माता-पिता प्रसन्न हैं तो परमात्मा भी प्रसन्न रहते हैं।

🔥 हवन के माध्यम से फैला भारतीय संस्कृति का संदेश

इस अवसर पर आर्य समाज कामां के सदस्यों ने सर्वसम्मति से यह संकल्प लिया कि समाज में किसी भी मांगलिक कार्य का शुभारंभ हवन से किया जाएगा। 

डॉ. आर्य ने लोगों से आग्रह किया कि विदेशी परंपराओं जैसे “केक काटने” की बजाय हवन जैसे वेदिक संस्कारों को अपनाया जाए। उन्होंने कहा कि हवन केवल पूजा नहीं बल्कि पर्यावरण शुद्धि, मानसिक शांति और सामाजिक एकता का प्रतीक है।

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उन्होंने बताया कि आर्य समाज केवल धार्मिक संगठन नहीं, बल्कि एक “संस्कार आंदोलन” है, जिसका उद्देश्य है— भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करना, नैतिकता को स्थापित करना और युवाओं में देशभक्ति का संचार करना।

🌸 सामाजिक सहभागिता और संस्कृति संरक्षण का उदाहरण

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिकों, महिलाओं और युवाओं ने भाग लिया। उपस्थित जनों में मोहन सिंह बघेल, दयाराम, रमेश, श्याम बघेल, तेज सिंह, लोकेश, हरिओम, कन्हैया, सुंदर, रवि, देवेश सहित कई आर्य समाज सेवक शामिल रहे।

एक घर के अंदर हवन के दौरान पुरोहित और परिवार के सदस्य पूजा करते हुए, सभी ने गेंदा माला पहन रखी है और पूजा सामग्री आस-पास रखी है।
श्रद्धा व पारिवारिक एकता के साथ घर में संपन्न हो रहा पूजा हवन अनुष्ठान

सभी ने एक स्वर में कहा कि आर्य समाज ने कामां कस्बे में नैतिकता और संस्कृति के बीज बोने का काम किया है।

डॉ. आर्य ने बताया कि वेदिक हवन मात्र एक कर्मकांड नहीं, बल्कि जीवन को शुद्ध और संतुलित बनाने का माध्यम है। उन्होंने युवाओं से कहा कि वे मोबाइल और दिखावटी पश्चिमी रीति-रिवाजों से दूर रहकर अपने जीवन में वेदों की ज्ञान धारा को अपनाएं।

🌼 आर्य समाज : भारतीय संस्कृति का जीवंत प्रतीक

वर्ष 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज आज भी अपने आदर्शों पर दृढ़ता से अडिग है। सत्य, अहिंसा, और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाला यह संगठन आज समाज सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

कामां जैसे कस्बों में लगातार 75 सप्ताह से आयोजित हो रहे हवन इस बात का प्रमाण हैं कि आर्य समाज आज भी लोगों के जीवन में आध्यात्मिकता का संचार कर रहा है। यहां के लोग न केवल हवन करते हैं, बल्कि उसके अर्थ और उद्देश्य को समझते हुए जीवन में लागू भी करते हैं।

🌺 भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार की दिशा में आर्य समाज

डॉ. हजारीलाल आर्य ने अंत में कहा कि “आर्य समाज” का संदेश केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि समाज सुधार, शिक्षा, स्त्री सम्मान और पर्यावरण संरक्षण तक विस्तृत है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक परिवार में हवन का चलन बढ़े, तो समाज स्वतः शुद्ध और संगठित बन जाएगा।

कार्यक्रम के अंत में सभी ने एक साथ “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः” का उच्चारण कर विश्व शांति की कामना की।

आर्य समाज कामां का यह 75वां साप्ताहिक हवन कार्यक्रम न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, संस्कार और वेदिक जीवन पद्धति का पुनः स्मरण भी था। समाज के हर वर्ग की भागीदारी ने यह सिद्ध किया कि जब हम अपने धर्म और परंपराओं को सम्मान देते हैं, तभी समाज में सच्ची एकता और शांति स्थापित होती है।

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