आत्माराम त्रिपाठी
आज जहां देश एवं प्रदेश की सरकारें आमजनता को समुचित स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए दृढ़ संकल्प नजर आती है वहीं ज्यादातर स्वास्थ्य संस्थानों में चल रही लापरवाही के चलते यहां पहुंच रहे मरीज कराह रहें हैं। ना तो उन्हें शासन की तरफ से उपलब्ध कराई जा रही दवाएं मिल रही है और ना ही समय पर डाक्टरों की सेवाएं। आखिर वह कौन से कारण हैं जिसमें आमजनता इन सुविधाओं से वंचित हो रही है इन अव्यवस्थाओं के प्रति आखिर कौन जिम्मेदार है?
आज जब इस पर चिंतन करने का बिचार मन में आया तो देखा कि इसके प्रति स्थानीय स्तर का प्रबंधतंत्र ही है जो अपने कर्तव्यों के प्रति मानव संवेदनाओं के प्रति सबसे अधिक उदासीन रहने के चलते सबसे अधिक जिम्मेदार है। जिम्मेदार हैं हर उस जगह के जनप्रतिनिधि जिन्हें जनता ने अपना प्रतिनिधि चुनकर देश प्रदेश की सर्वोच्च पंचायत में पहुंचाया जहां पर नीतियों का निर्धारण तय किया जाता है जहांपर देश एवं प्रदेश की दिशा तय होती है।
किन्तु दुर्भाग्य है इस देश एवं प्रदेश का जहां इन्हें जनता अपना नुमाइंदा बना कर भेजती है वहां यह व्यवस्थायें सुधारने एवं विकास लाने के लिए, किन्तु इनके द्वारा उस कीमती समय को जनहित में लगाने की बजाय यह लोग उसे अपने राजनैतिक स्वार्थ की बलिबेदी पर अशिक्षित लोगों जैसे व्यवहार कर बहिष्कार कर स्वाहा कर देते हैं। नतीजा सब आप सबके सामने है।
जिस संस्थान में नजर डालें वही भ्रष्टाचार के चलते अव्यवस्थाओं का अंबार नजर आता है। उन्हीं में से एक है यह स्वास्थ्य व्यवस्था जो कि सीधे मानव जीवन से जुड़ी है और इस व्यवस्था में हर तरह से आमजन को सरेआम लूटा जा रहा है। कहीं परीक्षण के नाम पर तो कहीं मेडिसिन के नाम पर तो कहीं इलाज के नाम पर। जिसे शायद आज भी कोई देखने सुनने वाला नहीं है। यहां कार्य करने वाले डाक्टर रुपी भगवान जी हां सदियों से इस संस्था ने कार्य करने वाले डाक्टरों को लोगों द्वारा भगवान का दर्जा दिया गया है क्योंकि एक ऊपर बैठा भगवान है जो सृजन करता है तो दूसरा इस धरा पर है जो उसकी रचना को कहीं भी खरोंच आने पर उसे सही कर नवजीवन प्रदान कर मानव सेवा करता है जिन्हें हम डाक्टर, वैद्य, हकीम कहते हैं। किंतु आज यह भगवान भी राजनेताओं की तरह दोहरी जिंदगी जीने लगे हैं। पैसा जनता से वसूले जा रहे, वह भी स्वास्थ्य संस्थानों के टैक्स से घूम कर सैलरी के नाम पर जो इनकी जेब में ही जाता है। उससे भी शायद इन्हें संतुष्टि नहीं मिलती और लोभ के वशीभूत होकर यह लोग सरकारी अस्पतालों में ड्यूटी करने के साथ साथ अपने निजी नर्सिंग होम तथा क्लीनिकों में सबसे अधिक समय देते हैं जिससे स्वाभाविक है कि दोनों जगहों पर भर्ती मरीजों को यह लोग पूरा समय नहीं दे पाएंगे तो भर्ती मरीज की कराह निकलना स्वाभाविक है।
इन अस्पतालों की दुर्दशा पर ऐसा कोई भी दिन नहीं है जहां सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर वहां की लापरवाही, तानाशाही, अव्यवस्थाओं के बारे में आमजन की आवाज न गूंजती हों पर ज्यादातर यह आवाजें उठने के साथ वहीं की वहीं दफ़न हो जाती है और यह व्यवस्था फिर से अपने पुराने ढर्रे पर चल पड़ती है जिसका दंश आज सैकड़ो गरीब परिवारों द्वारा झेलते हुये अपना सबकुछ कुर्बान करने के बाद उसका परिवार भुखमरी की कगार पर खड़ा नजर आता है जोकि अपने आप में शासन प्रशासन द्वारा संचालित तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के संचालित होने की डींगे हांकने वाले जनप्रतिनिधियों द्वारा अपनी पीठ थपथपाने का दावा करता देख इन जैसी प्रशासनिक ब्यवस्थाओं को देखकर एक अजीब सा एहसास होता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."