सुहानी परिहार की रिपोर्ट
भोपाल। जिस उम्र में लड़कियां पढ़ने-लिखने, जिंदगी में कुछ कर गुजरने का ख्वाब देखती हैं, उस नाज़ुक उम्र में वो इस दहशत में जी रही हैं कि अगर मां नहीं बन पाईं तो क्या होगा। मां बनना किसी भी शादीशुदा औरत का ख्वाब हो सकता है, पर इनके लिए खौफ है कि अगर मां नहीं बन पाईं तो क्या होगा। मां बन पाएंगी तभी शादी बच पाएगी और घर भी, बांझ कहलाने से पहले घर से बेदखल किए जाने के डर में रह रही ये लड़कियां नीम हकीमों के फेर में जाती हैं, गंडे-तावीज़ बंधवाती हैं और लगाती हैं अस्पताल में बार-बार जांच के लिए फेरे। बस इस उम्मीद में कि एक दिन डॉक्टर कह दें, हां अब तुम मां बनने वाली हो। ये 60 के दशक की किसी फिल्मी कहानी की स्क्रीप्ट नहीं, बल्कि 2023 में सिरोंज, लटेरी, शमशाबाद राजधानी भोपाल से सटे गांवों की आंखों देखी तस्वीर है।
मर्जी से नहीं, मजबूरी है कि मां हर हाल में बनना है
क्या महिलाओं के लिए चलाई जा रही योजनाएं, सामाजिक संगठनों का काम वाकई जमीन पर बदलाव ला पाया है। क्या वाकई कम उम्र में ब्याह पर रोक लग पाई है, क्या छोटी उम्र में लड़कियों के मां बनने के जोखिम को समझ पाया है समाज.. उम्र 16 की हो या 18 की, शादी के 9 महीने बाद से ही उठने लगते हैं सवाल कि मां क्यों नहीं बन पाई अब तक और अगर ये फासला बढ़ता गया तो बात मारपीट से शुरू होकर शादी टूटने तक पहुंच जाती है।
5 बार बच्चा गिर चुका, अब फिर मां बनने तैयार मुस्कान
लटेरी की रहने वाली मुस्कान की शादी 15 की उम्र में हो गई थी। 16 साल की होते ही बच्चा पेट में आ गया, लेकिन ठहरा नहीं, अब कमोबेश यह हर साल की कहानी है। 5 बार मिसकैरिज हो चुका है, मुस्कान कहती हैं कि “दो महीने से ज्यादा बच्चा ठहर ही नहीं पाता, लेकिन मां नहीं बन पाई तो पति छोड़ देगा। मेरी बड़ी बहन को बच्चा नहीं हुआ था तो उसकी शादी टूट गई थी, मुझे बस यही डर है कि हल्की उमर में मेरी शादी हो गई, तब से 5 बार बच्चा भी गिर चुका। डॉक्टर ने मुझे ये भी बताया है कि इतने कम अंतराल में बार-बार गर्भपात होना मेरे शरीर के लिए कितना घातक है। एक मिसकैरिज के बाद करीब एक से डेढ साल का गैप चाहिए, लेकिन मैं तो हर साल गर्भ धारण कर रही हूं, पर मैं क्या करूं.. मां बनना मेरी मजबूरी है, नहीं तो मेरा घर टूट जाएगा।”
बड़ी बहू हूं मां बनना जरुरी है
रीना शादी के 2 साल बाद मां बनी थीं, बच्चा आठ दिन ही जिंदा रह पाया और उसकी मौत हो गई। उस दिन के बाद रीना की जिंदगी सिर्फ इसी सवाल से जूझ रही है कि अगर फिर मां नहीं बनी, तो क्या होगा। सिंरोज के पास पटेरा गांव की रीना बताती हैं “बच्चा जी जाता, लेकिन सरकारी अस्पताल में हुई लापरवाही की सजा भुगती है मैंने। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नहीं थी, नर्स ऑपरेशन का कह रही थी और हम नार्मल डिलेवरी चाहते थे। डिलेवरी के बाद ही बच्चे की हालत बिगड़ गई, इलाज के लिए भोपाल भी लेकर गए लेकिन कुछ नहीं बचा। 2 साल बाद से बस अब यही लगता कि कब फिर से मां बनूंगी, क्योंकि घर की बड़ी बहू हूं और मैं मां नहीं बन पाई तो कैसे चलेगा परिवार। इसके अलावा पति दूसरी शादी ने ना कर ले, ये डर भी है।”
मां बनने झाड़ फूंक करवा रहीं सावित्री सावित्री ने गर्भधारण के शुरुआती 7 महीने केवल इसलिए डॉक्टर को नहीं दिखाया, क्योंकि तांत्रिक ने कहा था कि अगर डॉक्टर के पास गई तो फिर बच्चा गिर जाएगा। सावित्री हालत बिगड़ने के बाद अस्पताल आईं और अब भी वे पूरे आत्मविश्वास से कह रही हैं कि “बाबा ने झांड़-फूंक से कई औरतों की गोद हरी की है, मैं ये गले में उनका तावीज ही डाली हूं। उन्होने कहा था कि अगर डॉक्टर के पास गई तो पूरी पूजा उल्टी हो जाएगी, लेकिन अब जब हालत बिगड़ने लगी तो मजबूरन आना पड़ा। यहां आ तो गई हूं पर मुझे डर है कि कहीं मेरा बच्चा ना गिर जाए।
9 साल बाद भी बच्चा नहीं दे पाई तो छोड़ दिया घर
लटेरी गांव की रहने वाली भारती की शादी को 9 साल हो गए हैं, शादी के एक साल बाद से ही ताने शुरु हो गए थे कि बच्चा नहीं दे पा रही है। भारती साल भर पहले ससुराल छोड़ आई हैं, मारपीट के साथ पति की ज्यादती इतनी बढ़ चुकी थी कि भारती बताते हुए भी वे सहम जाती हैं। भारती कहती हैं कि “वह मेरे साथ जानवरों की तरह का बर्ताव था, इसलिए मुझे ससुराल छोड़ घर वापस आना पड़ा। पीसीओडी की परशानी है मुझे, पति इलाज के लिए एक रुपया तो देता नहीं था, लेकिन ये धमकी जरूर देता था कि अगर बच्चा नहीं दे सकती तो निकल घर से, मैं दूसरी शादी कर लूंगा. मैं घर छोड़ आई अब खुद नर्सिंग की ट्रेनिंग कर रही हूं, फिलहाल मेरी मां स्कूलों में काम करके मेरा इलाज करवा रही हैं। मैं उससे तलाक लूंगी पर दुबारा शादी नहीं करुंगी, मां नहीं बन पा रही तो मर थोड़ी जाऊंगी।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."