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18 January 2025 11:59 pm

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पति ने सुहागरात में किया बेतुकी मांग, देवर ने भी हदें पार कर दी, फिर बदली ऐसे जिंदगी 

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ललिता गौतम ने ससुराल में करीब 4 साल घरेलू हिंसा झेली। सिर्फ पति ही नहीं ससुराल के अन्‍य लोगों ने भी उन पर जुल्‍म की इंतहा कर दी। नौबत यह तक आ गई कि एक दिन उन्‍हें जिंदा जलाने की कोशिश भी हुई। इस दिन उनके सब्र का बांध टूट गया था। उन्‍होंने ससुराल को छोड़ने का फैसला किया………

कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट 

जिंदगी कब यू-टर्न ले कोई नहीं जानता। ललिता गौतम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्‍होंने 4 साल घरेलू हिंसा का घ‍िनौना रूप देखा है। इस इंतजार में वह सबकुछ झेलती गईं कि एक दिन चीजें ठीक होंगी। लेकिन, शैतानों की फितरत कहां बदलने वाली है। सुहागरात से ही पति ने बेतुकी डिमांड शुरू कर दी थी। फिर एक दिन देवर ने मिट्टी के तेल से उन्‍हें जलाने तक की कोशिश की। आखिरी में ललिता ने फैसला लिया कि अब बहुत हुआ। उन्‍होंने अपनी दो मासूम बेटियों के साथ ससुराल छोड़ दिया। फिर उन्‍होंने अपनी किस्‍मत खुद लिखनी शुरू की। रोजी-रोटी कमाने के लिए वह सड़कों पर ई-रिक्‍शा चलाने लगीं। उत्‍तर प्रदेश में ई-रिक्‍शा का लाइसेंस पाने वाली वह पहली महिलाओं में थीं।

ललिता का जन्‍म लखनऊ के मवैया में हुआ था। 18 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। ससुराल भी लखनऊ की थी। शादी की सुहागरात से ही उन्‍हें एहसास हो गया था कि उनकी जिंदगी आसान नहीं रहने वाली है। शादी की पहली रात पति शराब पीकर उनके पास पहुंचा था। वह चाहता था कि ललिता रातभर उसकी यौन इच्‍छा को पूरा करें। उसने नशे की धुत हालात में खूब बदतमीजी की। बाद के दिनों में पति और ससुराल वालों का अत्‍याचार बढ़ता गया।

बढ़ती गईं लल‍िता की तकलीफें…

ससुराल वाले लल‍िता से आए दिन कुछ न कुछ लाने की डिमांड करने लगे। पति भी रोज मार-पिटाई करता। जब वह ललिता को मारता तो ससुराल के दूसरे सदस्‍य मजे लेते। दिन गुजरते रहे। इस बीच ललिता को दो बेटियां भी हो गईं। इससे ससुराल वालों को और ज्‍यादा तकलीफ थी। वह दिनभर इसके लिए ललिता को ताने देते। ससुराल में उनका दम घुटने लगा था। वह सिर्फ इस इंतजार में सबकुछ सहती गईं कि एक दिन चीजें ठीक होंगी। फिर एक दिन मौका पाकर सास ने सेल्‍फ से ललिता की सारी ज्‍वैलरी साफ कर दी। जब उन्‍होंने चोरी की रिपोर्ट लिखाने की कोशिश की तो देवर ने रोक दिया। देवर बोला कि घर की बात है जेवर मिल जाएंगे। वह जेवरों की तलाश कर ही रही थीं कि देवर ने उन पर मिट्टी का तेल छिड़ककर जलाने की कोशिश की। भगवान का शुक्र है कि इसी बीच उनके मां और भाई आ गए। ललिता तेल से लथपथ थीं। ललिता के घरवाले उन्‍हें ससुराल से लेकर चले गए।

फैसला क‍िया वापस नहीं जाएंगी ससुराल

इस समय तक वह करीब 22 साल की हो चुकी थीं। ललिता ने तय किया कि दोबारा अब वह ससुराल नहीं जाएंगी। लेकिन, उन्‍हें अपना और अपनी दो बच्चियों का पेट पालने के लिए कुछ करना था। ललिता मायके वालों पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं। इस दौरान उनकी मुलाकात ‘हमसफर’ नाम के एनजीओ के कार्यकर्ताओं से हुई। यह एनजीओ घरेलू हिंसा के खिलाफ काम करता था। जब ललिता ने एनजीओ को पूरी कहानी बताई तो उसने उन्‍हें ई-रिक्‍शा की ट्रेनिंग दिलाने का काम किया। कुछ दिन की ट्रेनिंग के बाद उन्‍होंने लाइसेंस के लिए अप्‍लाई किया।

अखिलेश यादव की सरकार में ललिता को लाइसेंस मिला। वह उन सात महिलाओं में थीं जिन्‍हें सबसे पहले ई-रिक्‍शा का लाइसेंस मिला था। जिंदगी में इतनी तकलीफ झेलने के बाद भी ललिता ने अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की। वह इस कोशिश में कामयाब भी हो गईं। वह उन महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जो आज भी घरेलू हिंसा का शिकार बनती हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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