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24 February 2025 4:20 am

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.बगावत का दौर शुरू होता है और अंत में हैप्पी एंडिंग… कुछ ऐसी ही है अखिलेश यादव और डिंपल भाभी की प्रेम कहानी

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

रोमांटिक लव स्टोरी वही होती है, जिसमें प्यार हो। इमोशन हो। बगावत हो। अंत में मिलन हो। कम से कम भारतीय फिल्मों में तो कुछ ऐसा ही दिखाया जाता है। दो युवा दिल मिलते हैं। दोनों के बीच प्रेम होता है। फिर माता-पिता को उनका प्रेम संबंध स्वीकार नहीं होता। बगावत का दौर शुरू होता है और अंत में हैप्पी एंडिंग। कुछ इसी प्रकार की प्रेम कहानी है उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और डिंपल यादव की। अखिलेश और डिंपल की प्रेम कहानी में लव, इमोशनल ड्रामा, बगावत और रूठना-मनाना सब कुछ मिलता है। अब दोनों खुशहाल हैं। एक बेहतर कपल की तरह। डिंपल यादव तो अखिलेश के हर कदम में साथ खड़ी दिखती हैं। हर निर्णय के साथ। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव हुआ तो परिवार को एकजुट रखने के लिए अखिलेश यादव ने डिंपल को एक बार फिर राजनीतिक मैदान में उतारने का फैसला लिया। डिंपल ने उनके फैसले का सम्मान किया। मैनपुरी से चुनावी मैदान में उतरी और रिकॉर्ड जीत दर्ज करने में कामयाब रहीं। अखिलेश यादव और डिंपल यादव की प्रेम कहानी को लेकर लोग आज भी खूब चर्चा करते हैं। आइए, उनकी प्रेम कहानी के बारे में जानते हैं।

ऐसे हुई प्रेम कहानी की शुरुआत

 

मुलायम सिंह यादव के बड़े बेटे और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उत्तराखंड के लेफ्टिनेंट कर्नल एससी रावत की बेटी डिंपल पहली ही नजर में पसंद आ गई। अखिलेश ने राजस्थान के मिलिट्री स्कूल धौलपुर से प्राथमिक शिक्षा हासिल की। मैसूर के एसजे कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन किया। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय से उन्होंने पीजी की डिग्री हासिल की। दरअसल, अखिलेश और डिंपल की पहली मुलाकात दोस्त के जरिए हुई थी। एक दोस्त के घर पर दोनों मिले। उस समय डिंपल की उम्र 17 साल थी और अखिलेश 21 साल के थे। अखिलेश उस समय मैसूर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। यहीं से पहचान प्रेम में बदल गया।

छुप-छुपकर होती थी मुलाकात

 

अखिलेश यादव और डिंपल अपने प्रेम को सार्वजनिक करने से डर रहे थे। पत्रकार सुनीता एरन की किताब ‘अखिलेश यादव: बदलाव की लहर’ किताब में उनकी प्रेम कहानी के बारे में कई अहम जानकारियां दी गई हैं। किताब में लिखा गया है कि अखिलेश और डिंपल घर से दोस्त से मिलने का बहाना बनाकर निकलते थे। छुप-छुपकर मुलाकात होती थी। इसने दोनों के प्रेम को काफी बढ़ाया। अखिलेश की इंजीनियरिंग पूरी हुई। ऑस्ट्रेलिया पीजी करने जाना था। डिंपल ने अखिलेश के फैसले का साथ दिया।

लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप और गुलाबी खत

 

अखिलेश यादव और डिंपल का प्रेम दूरी के बाद भी बरकरार रहा। अखिलेश यादव सिडनी में थे। डिंपल यहां। लेकिन, प्रेम पक्का था। अखिलेश यादव डिंपल को गुलाबी खतों में प्रेम का पैगाम भेजते थे। चार सालों तक यह सिलसिला चला। अखिलेश के इजहार-ए-इश्क के इस तरीके ने डिंपल के दिल में उनकी अलग ही जगह बना दी। अखिलेश ने पढ़ाई पूरी की। वापस लौटे। मन में डिंपल को दुलहनिया बनाने का पक्का इरादा था।

घरवालों को पसंद नहीं था रिश्ता

 

अखिलेश और डिंपल का रिश्ता घरवालों को पसंद ही नहीं था। मुलायम सिंह यादव इस रिश्ते को मानने को तैयार नहीं थे। कुछ यही हाल डिंपल के परिवार था। दोनों के घरवालों ने शादी से इनकार कर दिया। इसके बाद अखिलेश यादव ने अपनी दादी को पहले मनाया। दादी राजी हुईं तो उन्होंने मुलायम पर दबाव बनाया। फिर मुलायम मान गए। कहा यह भी जाता है कि मुलायम को मनाने में तब उनके सबसे करीबी दोस्त अमर सिंह ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी। अखिलेश का परिवार माना तो डिंपल के परिजनों को मनाने में अधिक मुश्किल नहीं आई।

धूमधाम से हुई शादी

 

अखिलेश और डिंपल की जिद के आगे दोनों परिवारों ने रिश्ते को हामी भर दी। परिवारों की रजामंदी से 24 नवंबर 1999 को अखिलेश और डिंपल वैवाहिक बंधन में बंध गए। शादी काफी धूमधाम से हुई। नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद देने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी आए थे। इसके अलावा अखिलेश की शादी में फिल्मी कलाकारों को भी जमघट लगा था। दिलीप कुमार जैसे बड़े अदाकार भी इस मौके पर यहां आए थे।

24 सालों का सुखद सफर

24-

 

शादी के बाद 24 सालों से इस जोड़ी का सुखद सफर रहा है। दोनों के बीच गजब की केमिस्ट्री आज भी दिखती है। अखिलेश के हर फैसले के साथ डिंपल डटकर खड़ी नजर आती हैं। दोनों की तीन संतानें हैं। सबसे बड़ी अदिति यादव हैं। इसके बाद टीना और अर्जुन हैं। ये दोनों जुड़वा हैं। इन दोनों की जोड़ी को राजनीतिक जोड़ियों में सबसे सफल जोड़ी मानी जाती है। किसी भी विवाद से दूर। एक-दूसरे को सम्मान देने वाला।

राजनीतिक मैदान में भी हमसफर

 

डिंपल यादव ने हमेशा अखिलेश के फैसलों का साथ दिया। वर्ष 2009 में डिंपल को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला अखिलेश ने लिया। डिंपल ने उनके फैसले पर हामी भरी। हार गईं। इसके बाद कन्नौज से चुनावी मैदान में उतरी। दो बार सांसद रहीं। वर्ष 2019 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। लेकिन, ससुर मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनकी विरासत को जब संभालने की बारी आई तो अखिलेश ने भरोसा डिंपल पर ही दिखाया। डिंपल ने इस बार उन्हें निराश किया। यूपी के राजनीतिक मैदान में भी दोनों हमसफर दिखते हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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