सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
समाजवादी पार्टी के एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) रामचरित मानस पर अपने विवाद को लेकर जहां सुर्खियों में हैं, वहीं उनकी पार्टी को इस पर सफाई देनी पड़ रही है। कई दलों में सियासी तेवर दिखा चुके मौर्य विवादित बयानों के ‘स्वामी’ रहे हैं। इनके बयानों की आंच से सपा से पहले बसपा और भाजपा भी झुलस चुकी हैं। यहां तक कि स्वामी जब बसपा छोड़कर भाजपा गए थे, तब भी कई दिनों तक उनके पुराने धार्मिक बयानों पर ही सवाल और सफाई का सिलसिला चला था।
बसपा में रहते हुए 2014 में स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिंदू देवी-देवताओं को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसको लेकर सुलतानपुर में उनके खिलाफ परिवाद भी दर्ज किया गया था। भाजपा में आने के बाद जब वह कैबिनेट मंत्री बने तो तीन तलाक को लेकर उनके बयान से अल्पसंख्यकों में उबाल खड़ा हो गया था। बसपा छोड़ने के बाद स्वामी ने बसपा प्रमुख मायावती को दलित की नहीं ‘दौलत की देवी’ बताया था। वहीं, जब वह भाजपा छोड़ सपा में गए तो उन्होंने भाजपा-आरएसएस को नाग और खुद को नेवला बताते हुए कहा था कि स्वामी रूपी नेवला यूपी से भाजपा को खत्म करके ही दम लेगा।
तीन दशक में चौथी पार्टी में स्वामी
मूलत: प्रतापगढ़ के निवासी स्वामी प्रसाद मौर्य ने 80 के दशक में अपनी राजनीति लोकदल से शुरू की थी। उसके बाद वह जनता दल में पहुंच गए। हालांकि, स्वामी की किस्मत सिक्का तब पलटा जब वह बसपा में पहुंचे। 1996 में वह डलमऊ से विधायक चुने गए। 2003 में जब बसपा सत्ता से बाहर हुई तो मायावती ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया।
2007 में सरकार बनने पर बसपा ने उन्हें मंत्री बनाया और फिर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने। 2012 में बसपा सत्ता से बाहर हुए तो फिर नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी मिली। 2017 में स्वामी प्रसाद ने भाजपा का दामन थाम लिया और चुनाव जीत योगी सरकार में मंत्री हो गए। 2022 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उन्होंने पाला बदलकर सपा का दामन थाम लिया।
लहर में चुनाव हारे तो पार्टियों ने दिया सहारा
पिछड़े वोटों में पैठ की सियासत से पांव जमाने वाले स्वामी लहर में चुनाव गंवा बैठे थे। 2007 में बसपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी विधानसभा सीट हार गए। मायावती ने उन्हें एमएलसी बनाकर सदन पहुंचाया। 2017 में जब भाजपा गठबंधन ने करीब 325 सीटें जीती थीं, तब स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य ऊंचाहार से चुनाव हार गए थे।
2022 के विधानसभा चुनाव के पहले सपा ने स्वामी को काफी तवज्जो दी थी, लेकिन फाजिलनगर सीट से वह भाजपा प्रत्याशी से करीब 46 हजार वोटों से चुनाव हार गए। हालांकि, सपा ने उन्हें एमएलसी बनाकर उच्च सदन में उनकी कुर्सी सुरक्षित कर दी। स्वामी की बेटी संघमित्रा मौर्य 2019 में बदायूं से भाजपा के टिकट पर सपा के धर्मेंद्र यादव को हराकर सांसद बनी थीं और अब भी वह भाजपा में बनी हुई हैं।
Author: samachar
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