दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
बांदा । मकर संक्रांति का पर्व यूं तो देश के हर हिस्से में मनाया जाता है लेकिन बुन्देलखण्ड के बांदा में मकर संक्राति के मौके पर केन नदी के किनारे भूरागढ़ दुर्ग में आशिकों का मेला लगता है। इसका कारण है अपने प्यार को पाने की चाहत में अपने प्राणों कि बलि देने वाले नट महाबली को प्रसन्न करना। क्षेत्र के लोगों कि ऐसी मान्यता है कि अगर आप इस दिन अपने प्यार को पाने या बरकरार रखने कि कामना से विधिवत पूजा अर्चना कर प्रार्थना करते है तो आप का प्यार हमेशा आप के साथ रहेगा।
मकर संक्रांति के दिन लगता है मेला
मकर संक्रांति के दिन बांदा शहर के किनारे केन नदी के उस पार बने भूरागढ़ दुर्ग के नीचे हज़ारो लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है और किले की प्राचीर की नींव पर ही एक मंदिर अचानक आस्था के केंद्र में बदल जाता है। ये नट महाबली का मन्दिर है। यह वो मंदिर है जहां आने वालो की हर मन्नत पूरी होने की मान्यता है। इस मंदिर में विराजमान नटबाबा भले इतिहास में दर्ज न हो लेकिन बुन्देलियों के दिलो में नटबाबा के बलिदान की अमिट छाप है। ये जगह आशिको के लिए किसी इबादतगाह से कम नहीं है। मकर संक्रांति के मौके पर शादीशुदा जोड़े यहां आशीर्वाद लेने आते हैं तो सैकड़ो प्रेमी-प्रेमिकाएं अपने मनपसंद साथी के लिए यहां मन्नत मांगते हैं।
प्रेम को पाने के लिए रखा गया शर्त
मान्यता है कि 600 वर्ष पूर्व महोबा जनपद के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार थे। यहां से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गांव के एक नट जाति का 21 वर्षीय युवा बीरन किले में ही नौकर था। किलेदार की बेटी को इसी नट बीरन से प्यार हो गया और उसने अपने पिता से इसी नट से विवाह की जिद की लेकिन किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन नदी के उस पार स्थित बांबेश्वर पर्वत से किले तक सूत (कच्चा धागे की रस्सी) पर चढ़कर नदी पार कर किले तक आ जाएगा तो उससे उसकी शादी करा दी जाएगी। प्रेमी नट ने ये शर्त स्वीकार कर लिया और मकर संक्रांति के दिन प्रेमी नट सूत पर चढ़कर किले तक जाने लगा। प्रेमी नट ने सूत पर चलते हुए नदी पार कर ली लेकिन जैसे ही वह भूरागढ़ दुर्ग के पास पहुंचा किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने किले की दीवार से बंधे सूत को काट दिया और नट बीरन ऊंचाई से चट्टानों पर गिर गया और उसकी मौत हो गई। किले की खिड़की से किलेदार की बेटी ने जब अपने प्रेमी की मौत का मंजर देखा तो वह भी किले से कूद गयी और उसी चट्टान में उसकी भी मौत हो गई। जिसके बाद किले के नीचे ही दोनों प्रेमी युगल की समाधि बना दी गई। जो बाद में मंदिर में बदल गया। आज ये नट महाबली का सिद्ध मंदिर माना जाता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."