दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
23 साल की शाफिया। शादी के बाद सिर्फ कुछ दिन पति के साथ रह पाईं। करीब 7 महीने पहले एक्सीडेंट के बाद उन्हें दिल्ली के एम्स में एडमिट कराया गया। अब शाफिया एक बच्ची की मां हैं। हॉस्पिटल में एडमिट होने से मां बनने तक शाफिया के हिस्से में सिर्फ बेहोशी है। वह आंखें तो खोल पाती हैं, लेकिन बोलती-समझती कुछ नहीं। उनकी डिलीवरी कराने वाले डॉक्टर के 22 साल के करियर में यह ऐसा पहला मामला है।
यूपी के बुलंदशहर की रहने वाली शाफिया की शादी को करीब डेढ़ महीने हुए थे। 31 मार्च को शाफिया पति हैदर के साथ बाइक से जा रही थीं। अचानक उनका दुपट्टा बाइक में फंसा और वो गिर गईं। दोनों ने हेलमेट नहीं लगाया था। शाफिया जमीन पर गिरीं और उनके सिर में गहरी चोट आई। हैदर शाफिया को पास के हॉस्पिटल लेकर गए। वहां से उन्हें एम्स रेफर कर दिया गया।
31 मार्च की रात को शाफिया को बेहोशी की हालत में एम्स लाया गया। न्यूरोसर्जरी प्रोफेसर डॉ. दीपक गुप्ता बताते हैं कि महिला को तुरंत एडमिट कर सर्जरी की गई। प्रेग्नेंसी टेस्ट कराया तो वह 40 दिन की प्रेग्नेंट थी। डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि बच्चा सुरक्षित है। उन्होंने महिला के परिवार से बात की। अब फैसला करना था कि प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना है या नहीं।
पति हैदर ने कहा कि वह बच्चा चाहता है। 12-14 हफ्ते बाद लेवल-2 अल्ट्रा सोनोग्राफी टेस्ट से पता चला कि बेबी स्वस्थ है और उसका शरीर भी डेवलप हो रहा है।
एक्सीडेंट के बाद हैदर की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है। पहले टैक्सी चलाते थे, लेकिन पत्नी को हादसे के बाद होश नहीं रहा। शाफिया की देखभाल के लिए काम छोड़ दिया।
एम्स के ट्रॉमा सेंटर वार्ड में शाफिया को देखने पहुंचा तो उनकी नाक में नली लगी हुई थी। आंखें खुली थीं और वह पंखे को एकटक देख रही थीं। पिछले 7 महीनों से बेड पर रहने से शाफिया का शरीर एकदम सूख गया है। नली से सिर्फ दूध अंदर जाता है और उसी के सहारे वह जिंदा हैं।
हैदर उनके पास गए और उन्हें अपने दोनों हाथों से उठाकर बैड के ऊपर की तरफ खिसकाने लगे। उनकी चादर, कंबल को दुरुस्त करने के बाद हैदर बाहर आए। इसके बाद मैंने हैदर से करीब 2 घंटे बात की।
हैदर मीडिया से बात करते हिचकते हैं। उनके पास इसकी वजह है। एक्सीडेंट हुआ तब एक न्यूज चैनल ने उनकी बातों को कम्युनल एंगल देकर खबर लिख दी। इसलिए अब वे मीडिया पर जल्दी भरोसा नहीं कर पाते। हैदर ने अपने मोबाइल के वॉलपेपर पर अपनी नन्ही बच्ची की फोटो लगा रखी है।
अब हैदर के जज्बात से गुजरिए…
हमारी शादी को डेढ़-दो महीने ही हुए थे, जब ये एक्सीडेंट हुआ। इलाज शुरू हुआ तो उम्मीद नहीं थी कि शाफिया बच भी पाएगी। मैंने बीते 7 महीने का हर लम्हा शाफिया को बचाने में लगाया है। कई लोग कहते हैं कि दूसरी शादी कर लो, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता। अगर शाफिया की जगह मेरी ये हालत होती, तो वह खुशी-खुशी ताउम्र मेरा ख्याल रखती। मुझे ये भरोसा है।
बेबी की जिंदगी और उसकी परवरिश, ये फैसला सबसे मुश्किल था…
डॉ. गुप्ता का कहना है- मेरे करियर में ये केस कई मायनों में अलग रहा। हमारे सामने सवाल था कि क्या हम पेशेंट के पेट में पल रहे स्वस्थ बच्चे को टर्मिनेट करें? वहीं दूसरी तरफ हमारे पास एक बेहोश मां थी, जो बच्चा पैदा होने के बाद उसकी परवरिश नहीं कर सकती थी। उस बच्चे को मां का प्यार और पोषण नहीं मिल पाएगा।
एक तरफ बच्चे की जिंदगी दांव पर थी तो दूसरी तरफ उसकी परवरिश खोने का डर था। पूरी प्रोसेस में यही फैसला सबसे मुश्किल था। आखिरकार महिला के पति हैदर को ही तय करना था कि वह पत्नी की प्रेग्नेंसी को जारी रखना चाहते हैं या टर्मिनेट करना चाहते हैं। हैदर ने फैसला लिया कि वह शाफिया के साथ अपने बच्चे को भी बचाना चाहते हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."