दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
गैसड़ी, बलरामपुर। जरवा के सोहेलवा जंगल के बीचोबीच मां रहिया देवी मंदिर स्थित है जो थारू जनजाति की आराध्य देवी हैं। अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए थारू समाज की पूजा पद्धति विशेष है।
जरवा के सोहेलवा जंगल के बीचोबीच मां रहिया देवी मंदिर स्थित हैं, जो थारू जनजाति की आराध्य देवी हैं। अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए थारू समाज की पूजा पद्धति विशेष है। नवरात्र में मां को प्रसन्न करने के लिए थारू जनजाति के लोग अनोखी पूजा करते हैं। शारदीय व चैत्र नवरात्र में नौ दिन तक यहां तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना के बाद दसवें दिन मां की आराधना करते हैं। चैत्र नवरात्र में थारुओं की पूजा के दौरान रात में मंदिर में दूसरे लोग पूजा नहीं कर सकते हैं।
भक्त मानते हैं कि सदियों पहले इनका नाम बाराही देवी था। कालांतर में ‘ब’ अक्षर का लोप हो गया, केवल रहिया देवी कहा जाने लगा। थारू जनजाति के लोग प्रत्येक नवरात्र की पंचमी व अष्टमी तिथि की रात में पूजा करते हैं जो उनकी परंपरागत विचित्र पूजा होती है। मंदिर पर पूजा करने के लिए टोली में थारू जनजाति के लोग आते हैं। प्रत्येक पूजा टोली के एक अगुआ होते हैं जिन्हें गणधुर कहते हैं। मंदिर व्यवस्थापक कालूराम थारू की मानें तो गणधुर की अगुवाई में ही अपनी आराध्य देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा रात के 10 बजे से शुरू होती है। देवी मां को भोग लगाने के बाद बच्चों-बूढ़ों सभी को चढ़ावे का प्रसाद वितरित किया जाता है।
पूजन के समय बोलने की होती है मनाही
पूजन के समय लोगों के बोलने पर मनाही होती है। पूजा के बाद शैतान भगाने की भी रस्म अदा की जाती है। इसके लिए मंदिर के पास के ही किसी एक पेड़ को शैतान मान कर उस पर पत्थर से वार किया जाता है। इस घने और दुर्गम जंगल में पूरी रात चलने वाली पूजा अद्भुत और अलौकिक है।
Author: samachar
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