आशीष अवस्थी की खास रिपोर्ट
लखनऊ। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के शोधकर्ताओं का नवीनतम अध्ययन दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के मामले के साथ-साथ हमारे दैनिक जीवन के कई अन्य क्षेत्रों और पहलुओं के समक्ष एक दिलचस्प सवाल प्रस्तुत करता है. जलवायु परिवर्तन अगले पांच दशकों में भारत की सौर और पवन ऊर्जा क्षमता को नियत रूप से प्रभावित करेगा.
यह नवीनतम अध्ययन हाल ही में पीयर-रिव्यू जर्नल करंट साइंस में प्रकाशित हुआ है जिसका शीर्षक है, ‘जलवायु मॉडल के जरिए भारत में भविष्य के पवन और सौर क्षमता का विश्लेषण’. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार के स्वायत्त संस्थान आईआईटीएम, पुणे और सेंटर फॉर प्रोटोटाइप क्लाइमेट मॉडलिंग, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी, अबू धाबी, संयुक्त अरब अमीरात के शोधकर्ता टीएस अनंध, दीपा गोपालकृष्णन और पार्थसारथी मुखोपाध्याय इस शोध अध्ययन के लेखक हैं.
मुखोपाध्याय ने कहा, “सौर ऊर्जा क्षमता के प्रक्षेपण का प्रमुख प्रभाव उत्तर मध्य भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में दिखाई देता है. इस क्षेत्र में भविष्य के सभी मौसमों में सौर क्षमता में तेज गिरावट का अनुमान है और ऐसे में इस चुनौती से निपटने की बेहतर तैयारी करने की ज़रूरत महत्वपूर्ण हो जाती है.” उन्होंने यह भी बताया कि भविष्य में मानसून के दौरान अधिक बादल छाए रहने की उम्मीद है.
शोधकर्ताओं ने भारतीय उपमहाद्वीप में भविष्य (अगले 40 वर्षों) के लिए अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के पवन और सौर उर्जा क्षमता अनुमानों का विश्लेषण इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा तैयार किए गए विभिन्न अत्याधुनिक जलवायु मॉडल के जरिए किया. नवीनतम अध्ययन के शोधकर्ताओं ने यह भी बताया अधिकांश जलवायु मॉडल में गंगा के मैदानी इलाकों में पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता में कमी का अनुमान लगाया गया है. मुखोपाध्याय ने कहा, “मानसून के महीनों, जब गंगा के मैदान के ऊपरी इलाकों (दिल्ली और उत्तर प्रदेश) में हवा की गति में वृद्धि दर्ज की गई, को छोड़कर अधिकांश मौसमों में यह कमी देखी गई है.”
ऊर्जा उत्पादन क्षमता में कमी का अनुमान उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के लिए इस कारण ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि यह अभी अपने घोषित अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में काफी पीछे है. यूपी की 2017 की सौर ऊर्जा नीति, जो इस साल समाप्त हो रही है, का लक्ष्य देश की 8% बिजली सौर ऊर्जा से उत्पन्न करने की है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, 2022 तक सौर ऊर्जा से 10,700 मेगावाट बिजली उत्पादन की योजना है, जिसमें से 4300 मेगावाट का उत्पादन रूफटॉप सोलर पॉवर के जरिए किया जाएगा. मगर वास्तविकता यह है कि जून 2022 तक सौर ऊर्जा से कुल बिजली उत्पादन क्षमता 2,244.56 मेगावाट तक ही पहुँच पाई है.
हालाँकि उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन कुछ अन्य राज्यों से बेहतर है. 2 अगस्त, 2022 को राज्य सभा में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा प्रस्तुत ताज़ा आंकड़ों बताते हैं कि अप्रैल 2021 से मई 2022 के बीच चार राज्यों – दिल्ली, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश – द्वारा क्रमशः 268.5 मिलियन यूनिट (एमयू), 195.36 एमयू, 21.94 एमयू और 3,564.4 एमयू सौर ऊर्जा का उत्पादन हुआ. इन चार राज्यों में सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तर प्रदेश और सबसे कम झारखण्ड में हुआ.
वहीं संसद में भी इस अध्ययन की चर्चा हुई और इस अध्ययन के चिंताजनक आकलन से संबंधित सवालों का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री (विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा) आरके सिंह ने कहा कि सरकार पवन और सौर ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता और दक्षता बढ़ाने के लिए कदम उठा रही है.
उन्होंने बताया कि नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय विभिन्न क्षेत्रों में “नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम” के तहत अनुसंधान और विकास को वित्त पोषित कर रहा है, जिनमें सोलर सेल्स की दक्षता बढ़ाना, संसाधन आकलन, सटीक पूर्वानुमान तकनीक, पवन चक्कियों के हब की ऊंचाई बढ़ाना और बड़े रोटर ब्लेड बनाना शामिल है. साथ ही उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए “उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल पर राष्ट्रीय कार्यक्रम” से संबंधित उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन कार्यक्रम को लागू करने की योजना है.
अध्ययन संबंधित प्रश्नों के लिए संपर्क करें: डॉ पार्थसारथी मुखोपाध्याय – mpartha@tropmet.res.in
Author: samachar
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