परवेज़ अंसारी की रिपोर्ट
साबिर, रहमत, राहुल खान, जाहिद, साजिद, मुस्तफा, सल्लू और जफरू—ये मेवात गिरोह के उन चंद शातिर अपराधियों के नाम हैं, जो पुलिस के लिए सिरदर्द बने हुए थे। ये सभी हरियाणा के मेवात (अब नूंह जिला) के हैं। इस क्षेत्र में कुल 1200 गांव हैं, जिनमें 550 हरियाणा में, 600 राजस्थान और 50 उत्तर प्रदेश में पड़ते हैं। यह इलाका मुस्लिम बहुल है, जहां मुसलमानों की आबादी लगभग 80 प्रतिशत है और हिंदू लगभग 20 प्रतिशत हैं। यह क्षेत्र कन्वर्जन और आपराधिक गतिविधियों का केंद्र है। देश में ऐसा कोई अपराध नहीं है, जो यहां न होता हो। सोने की र्इंट का झांसा देकर ठगी करना इनके लिए आम बात है। यहां के अपराधी साइबर अपराध में इतने माहिर हैं कि देखते-देखते बैंक खाते से पूरी रकम उड़ा देते हैं।
अपराधियों को बचाने के लिए यहां के लोग जान की बाजी लगा देते हैं। मजाल है, पुलिस यहां अपराधी तक पहुंच जाए। मेवात तीन राज्यों में बंटा हुआ है, इस वजह से यहां के अपराधी इसका पूरा फायदा उठाते हैं। यदि हरियाणा में पुलिस का दबाव बढ़ता है तो ये राजस्थान चले जाते हैं, वहां दबाव बढ़ा तो उत्तर प्रदेश आ जाते हैं। इस तरह से यह बचने के रास्ते निकालते रहते हैं। हरियाणा के डीजीपी पी.के. अग्रवाल ने बताया कि अपराधियों पर नकेल कसने के लिए पुलिस यहां लगातार सक्रिय है। सफलता भी मिल रही है और अपराध का ग्राफ भी गिर रहा है। दूसरी ओर, नूंह के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि यहां 23 से ज्यादा गिरोह सक्रिय हैं। इसके अलावा, ऐसे अपराधियों की संख्या अलग है, जो अलग-अलग वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। स्थिति यह है कि पता ही नहीं चल पाता कि यहां आम आदमी कौन है और अपराधी कौन? कौन, कहां, कब वारदात को अंजाम दे दे, यह कहना मुश्किल है। इन शातिर अपराधियों को वारदात को अंजाम देने में कुछ क्षण ही लगते हैं।
आनलाइन ठगी में माहिर
वारदात का एक हथकंडा यदि पुराना पड़ जाए तो ये दूसरा अपना लेते हैं। पहले मेवाती गिरोह सोने की र्इंट और जमीन में दबे खजाने के नाम पर लोगों को ठगते थे। यह तरीका अब पुराना पड़ चुका है, इसलिए ये आॅनलाइन ठगी करने लगे हैं। मेवाती गिरोह के अपराधी भारतीय सेना के अधिकारियों और जवानों के फर्जी वॉट्सएप प्रोफाइल बनाते हैं। फिर ओएलएक्स और मार्केटप्लेस पर बहुत सस्ते दामों में उत्पाद बिक्री का विज्ञापन देते हैं। जब लोग संपर्क करते हैं तो ये सैन्य अधिकारी बन कर उनसे बात करते हैं। उनसे कहते हैं कि तबादले की वजह से अपना सामान सस्ते में बेच रहे हैं। इस तरह लोग उनके झांसे में आ जाते हैं और ये अपराधी सामान पहुंचाने के नाम पर उनसे पैसे ऐंठ लेते हैं। ऐसे गिरोह को टटलूबाज बोला जाता है।
इस गिरोह के लोग आनलाइन ठगी के नए-नए तरीके अपना रहे हैं। ये गूगल पर बैंक या खाने-पीने के सामान की होम डिलीवरी के लिए हेल्पलाइन नंबर डालकर ठगी को अंजाम दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इसी साल फरवरी में फर्जी रमी सर्किल एप से ठगी करने वाले मेवाती गिरोह के एक सदस्य को पकड़ा था, जो बड़ी संख्या में लोगों से लाखों रुपये की ठगी कर चुका था। यहां सेक्सटॉर्शन के जरिये रकम ऐंठने की वारदात आम बात है। पुलिस के मुताबिक, यहां के अपराधी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। कई तो अनपढ़ हैं, फिर भी पढ़े-लिखे लोगों को चकमा दे देते हैं। संगठित गिरोह के सरगना इस तरह के धंधे के लिए कम उम्र के लड़कों को इस्तेमाल करते हैं, ताकि पुलिस उन तक पहुंच न पाए। राजस्थान पुलिस ने ऐसे ही एक गिरोह का पदार्फाश किया था। पुलिस ने दो नाबालिग किशोरों को पकड़ा था। उन्होंने पूछताछ में बताया कि वे रिजवान नाम के बदमाश के लिए काम करते हैं। वह जो बैंक खाता बताता है, ठगी की रकम उसमें जाती है। उन्हें तो बस तीन से पांच हजार रुपये मिलते हैं।
ठगी के नए-नए तरीके
कुछ समय पहले दिल्ली पुलिस ने मेवात के एक ऐसे गिरोह का पदार्फाश किया था, जो एटीएम से फर्जीवाड़ा करता था। आश्चर्यजनक बात यह है कि गिरोह के अपराधी एटीएम से पैसे निकाल लेते थे, लेकिन निकासी का ब्यौरा खाते में दर्ज नहीं होता था। इसके बाद वे पैसे नहीं मिलने की शिकायत भी करते थे। यह अपनी तरह का अनोखा मामला था। दरअसल, गिरोह में दो लोग थे- नूंह के धसेदा गांव का जाबिद हुसैन और उसका जीजा मोहम्मद आबिद। इन्होंने ठगी का बिल्कुल नया तरीका अपनाया। ये किसी का डेबिट कार्ड मांगकर एटीएम से पैसे निकालते थे। एटीएम में डेबिट कार्ड डालने के बाद जैसे ही पैसे निकालने के लिए खड़-खड़ की आवाज होती थी, ये मशीन में ही रुपये को पकड़ लेते थे। रुपये पकड़ने के बाद एटीएम की बिजली काट देते थे और फिर पैसे निकाल लेते थे। अपराधियों की इस तकनीक के कारण एटीएम से पैसे निकासी का ब्यौरा खाते में दर्ज नहीं हो पाता था। पैसे निकालने के बाद अपराधी एटीएम चालू कर देते थे। इनका दूसरा तरीका था- चाबी से एटीएम खोलकर रुपये निकासी करना। इसके लिए ये एटीएम के अंदर से बिजली आपूर्ति ठप कर देते थे। उसके बाद पैसे निकालते थे। इससे भी पैसे की निकासी खाते में दर्ज नहीं होती थी। यदि पैसे निकासी का मैसेज मोबाइल पर आ भी गया तो वे शिकायत करते थे कि पैसा नहीं निकला, लेकिन निकासी का मैसेज मोबाइल पर आ गया।
कानून का भय नहीं, पुलिस से डरते नहीं
मेवात में अपराधियों के छोटे-बड़े कई गिरोह सक्रिय हैं, जो दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, देश के दर्जनभर राज्यों के लिए सिरदर्द बन गए हैं। पहले ये पशु चोरी व गो-तस्करी करते थे और रात के समय चलती गाड़ियों को लूटते थे, फिर उस लूट की गाड़ी से अपराध को अंजाम देते थे। लेकिन अब ऐसा कोई अपराध नहीं बचा है, जिसमें मेवाती गिरोह का नाम नहीं आता हो। ये हत्या, डकैती, बलात्कार, झपटमारी, सेंधमारी, वाहन चोरी, एटीएम से पैसे चोरी सहित हर तरह के अपराध में शामिल हैं। यह गिरोह पुलिस से भी नहीं डरता। पुलिस यदि इन्हें पकड़ने की कोशिश करती है तो ये उस पर हमला करने से भी नहीं हिचकते। इस गिरोह के कई खूंखार अपराधियों पर राज्यों की पुलिस ने एक लाख रुपये तक इनाम घोषित कर रखा है। गुड़गांव में पिछले दिनों पशु तस्करी के आरोप में पकड़े गए बदमाशों ने पुलिस को चकमा देने की पूरी कोशिश की। उन्होंने वाहन से टक्कर मार कर पुलिस को घायल करने की कोशिश की। पुलिस ने जब वाहन के टायर में गोली मारी तो वे रिम पर ही गाड़ी को दौड़ाते रहे। ये अपराधी दिल्ली-एनसीआर के अलावा, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, असम सहित देश के कई राज्यों में अपराध को अंजाम देते हैं। दिल्ली पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि इस गिरोह के अपराध करने का तरीका काफी अलग है। पशु आदि चोरी करने के लिए ये टेंपो में शक्तिशाली इंजन लगाते हैं और इसका डिजाइन इस तरह तैयार कराते हैं कि पीछा कर रही पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार कर क्षतिग्रस्त किया जा सके। यही नहीं, ये अपराधी टेंपो में पत्थर भी भरकर रखते हैं, जिसे जरूरत पड़ने पर पुलिस पर प्रयोग करते हैं। पुलिस जब इनका पीछा करती है तो ये टेंपो से पशु छोड़ देते हैं। ये कई बार घिर जाने पर पुलिस पर गोलीबारी भी करते हैं।
शटर उखाड़ने में लगते हैं 35 सेकंड
किसी भी शोरूम के शटर को उखाड़ने में मेवाती गिरोह को महज 20-25 सेकंड लगते हैं। यही नहीं, सीसीटीवी कैमरों से बचने के लिए ये उन पर स्प्रे कर देते हैं। यह गिरोह अपराध को अंजाम देने से पहले उस जगह की रेकी करता है। इसके बाद अपराधी एसयूवी गाड़ियों में आते हैं और शोरूम पर हाथ साफ कर चलते बनते हैं। दिल्ली में ये एक रात में 3 से 5 वारदातों को अंजाम देते हैं। आलम यह है कि गिरोह के अपराधी एटीएम तक उखाड़ कर ले जाते हैं। ये अपराधी चोरी की गाड़ियों को दूसरे राज्यों में बेच देते हैं और जब पुलिस की सरगर्मी बढ़ जाती है तो कुछ दिन मेवात में छिप जाते हैं। ये चोरी की एक बाइक 5 से 12 हजार रुपये में बेचते हैं। इससे गिरोह के सदस्यों को 2,500 से 3,500 रुपये मिलते हैं। गिरोह में हथियारों से लैस 8-10 लोग होते हैं, जिनके निशाने पर बाइक, आॅटो से लेकर कार और ट्रक तक होते हैं। खास बात यह है कि मेवाती गिरोह बंद पड़ी फैक्टरियों को भी निशाना बनाते हैं। बीते अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह में जयपुर पुलिस ने ऐसे ही एक मेवाती गिरोह का खुलासा किया था। ये बंद फैक्ट्रियों से महंगा तांबा, एल्युमीनियम, बिजली के तार, ट्रांसफॉर्मर आदि चोरी कर पहले किसी गोदाम में जमा करते थे, फिर दिल्ली ले जाकर किसी कबाड़ी को बेच देते थे। वहीं, चोरी के मोबाइल और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामान को वे जम्मू-कश्मीर से कोलकाता और बांग्लादेश तक बेचते हैं।
दिल्ली पुलिस ने पिछले साल मई में ऐसे ही एक गिरोह के सदस्यों को पकड़ा था, जो चोरी के मोबाइल कूरियर से बांग्लादेश, सूडान और थाईलैंड भेजता था। यह गिरोह चोरी के मोबाइल मेवात के ही जियाउद्दीन को बेचता था, जो पहले उन्हें मुंबई भेजता था। इसके बाद मोबाइल को कूरियर से मालदा और अगरतला पहुंचाया जाता था, फिर वहां से विदेश भेज दिया जाता था। इस साल फरवरी में मध्य प्रदेश में इंदौर पुलिस ने ऐसे ही एक मेवाती गिरोह को पकड़ा था, जो चोरी के ट्रकों को काटकर बेचता था। अपराधियों ने पूछताछ में बताया था कि गिरोह के सदस्य 10 गांवों में भरे हुए हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."