अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
प्रयागराज। मां और ममता। ये दोनों शब्द एक दूसरे के पर्याय हैं। मगर, प्रयागराज में 6 महीने में कूड़े और रेल की पटरियों के किनारे मिलने वाले बच्चे अलग कहानी कहते हैं। यहां मां से ममता कब और कैसे जुदा हो गई। ये सवाल नवजात बच्चों की आंखों में नजर आता है। क्या समाज में जवाब देना मुश्किल होने का ख्याल उनकी ममता पर भारी पड़ा होगा।
खैर, वजह चाहे जो हो। लेकिन बाल शिशु गृह तक पहुंचे इन बच्चों को अब ममता की ही तलाश है। फिर वो मां के आंचल से न मिल सके तो यहां के कर्मचारियों के प्यार दुलार के बीच वो रह रहे हैं। जो अभी बोलना नहीं सीख सके हैं। उन्हें संभालने के लिए खास कोशिश करनी होती है। जो बच्चे बोलने लायक हो चुके हैं, उनके मासूम सवाल कभी-कभार रुलाने के लिए काफी हो जाते हैं।
कुछ बच्चियों की जिंदगी बचाई नहीं जा सकी
राजकीय बाल गृह शिशु में रह रही बलिया की नन्ही परी ने अस्पताल में पिछले महीने ही दम तोड़ दिया था। 8 माह की बिटिया की तबियत बिगड़ने पर चिल्ड्रेन हॉस्पिटल ले जाया गया था। 8 माह पहले इस बेटी को उसके अपनों ने कूड़े के ढेर में फेंक दिया था। चादर के टुकड़े ओर पेपर से ढकी मिली इस बेटी को CWC के आदेश के बाद राजकीय बाल शिशु गृह प्रयागराज में रखा गया था। इससे पहले भी चित्रकूट से आई एक नवजात बच्ची की मौत हो गई थी।
इन्हें अपनों ने ही छोड़ा
जिला प्रोबेशन अधिकारी पंकज मिश्रा ने बताया कि राजकीय बाल शिशु गृह में पिछले 6 माह के अंदर 6 नवजात अलग-अलग जिलों से आए हुए हैं। ये नवजात उनके अपनों ने कहीं कूड़े के ढेर में फेंक दिया तो कहीं रेलवे लाइन के किनारे रख दिया।
इन नवजात बच्चों की देखरेख के लिए आधा दर्जन से अधिक कर्मचारी पूरी तन्मयता के साथ देखभाल करते हैं। उन्होंने बताया कि 12 माह के करीब दो दर्जन बच्चें राजकीय बाल शिशु गृह में अपनो का इंतजार कर रहे हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."