विरेंन्द्र हरखानी की रिपोर्ट
दलितों पर होने वाले उत्पीड़न (Dalit Atrocities in India) के खिलाफ आवाज़ उठाने का जोखिम कम ही लोग उठा पाते हैं. इसकी वजह सामाजिक दबाव और आरोपी, जो ज्यादातर उच्च जातियों से ताल्लुक रखते हैं उनकी दबंगई और पहुंच होती है. लेकिन रजत कलसन, एक ऐसा नाम हैं, जो दलित समाज के लोगों पर होने वाले उत्पीड़न, अत्याचारों की घटनाओं के खिलाफ पुरजोर आवाज़ उठाकर चर्चा में आए हैं. अपनी जान की परवाह न किए बिना कलसन ने दलित उत्पीड़न के कई बड़े मामलों में पीडितों को न्याय दिलवाकर दोषियों को सजा दिलवाई.
रजत कलसन पेश से वकील एवं दलित अधिकार कार्यकर्ता (Lawyer and Dalit Rights Activist Rajat Kalsan) हैं, जो आज हरियाणा में एक जाना पहचाना नाम हैं. केवल हरियाणा में ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत में दलित अत्याचारों के मामले में दलितों की तरफ से पैरवी करने को लेकर उनका नाम कहीं भी सुना व पढ़ा जा सकता है.
रजत कलसन ने हरियाणा के हिसार जिले से अपनी वकालत की प्रैक्टिस सन 2003 में शुरू की. रजत कहते हैं कि जब उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस शुरू की तो उस समय अनुसूचित जाति व जनजाति के साथ अत्याचार के बहुत से मामले होते थे तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार अधिनियम (SC/ST Act) भी अस्तित्व में आ चुका था, लेकिन पुलिस इस अधिनियम के तहत मामलों को दर्ज नहीं करती थी ऐसे में या तो पीड़ित चुपचाप अत्याचार सहकर चुप बैठ जाते थे या फिर अदालतों में आकर अपनी कार्रवाई करते थे.
रजत कलसन के पिता भी एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, जो 1970, 1980 व 1990 के दशक में अनुसूचित जाति समाज को न्याय दिलाने के लिए पुलिस तथा अदालतों में उनकी पैरवी करते रहे.
रजत कहते हैं कि काफी लंबे समय तक अदालतों में धक्के खाने के बावजूद भी लोगों को न्याय नहीं मिल पाता था. उनके खुद के एक प्लॉट पर जाट समाज के एक पुलिस कर्मचारी ने कब्जा कर लिया था. पुलिस ने उनकी ही एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया तथा वे अपने ही मामले में पुलिस विभाग में दलित विरोधी मानसिकता के चलते एफआईआर दर्ज नहीं करा सके. अंततः इस बारे में उन्होंने अदालत के माध्यम से कार्रवाई की, तब कहीं जाकर उनके प्लॉट से उक्त पुलिस कर्मचारी ने कब्जा हटाया.
कलसन ने अपनी वकालत की प्रैक्टिस के शुरुआती दिनों में देखा कि जब उनके साथ एक वकील होते हुए इस तरह का व्यवहार हो सकता है तो आम अनुसूचित जाति समाज के गरीब लोगों के साथ किस तरह व्यवहार होता होगा. तब उन्होंने अनुसूचित जाति व जनजाति समाज के लोगों की मदद करने पर उन्हें न्याय दिलाने का बीड़ा उठाया.
सन 2010 के अप्रैल माह में जिला हिसार के गांव मिर्चपुर गांव में दबंगों की भीड़ ने दलित बस्ती को घेरकर उसमें आग लगा दी तथा 2 लोगों को जिंदा जला दिया. इस मामले इस दौरान हरियाणा में मुख्यमंत्री जाट समुदाय से थे तथा हरियाणा में जाट समुदाय का पूरा बोलबाला था.. ऐसे में कोई भी दलित वकील मिर्चपुर पीड़ितों (Mirchpur Case) का केस लड़ने के लिए तैयार नहीं था, लेकिन अधिवक्ता कलसन मिर्चपुर पीड़ितों की तरफ से वकील बने. वह बताते हैं कि इस कदम के बाद उन्हें तथा उनके पिता को जान से मारने की धमकी आ रही थीं. उनके ऊपर कई जानलेवा हमले हुए. यहां तक कि सरकार ने उनके खिलाफ हत्या के प्रयास तक के झूठे मुकदमे दर्ज किए. उनके पूरे परिवार को इन मामलों में जमानत करानी पड़ी तथा अधिवक्ता रजत कलसन की ही याचिका पर मिर्चपुर मामले को हिसार से दिल्ली ट्रांसफर किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जान के खतरे के चलते सुरक्षा प्रदान की तथा इस ऐतिहासिक मुकदमे में कलसन तथा उनकी टीम पीड़ितों को न्याय दिलाने में कामयाब रही.
मिचपुर केस में दिल्ली की रोहिणी कोर्ट (Rohini Court) की जज कामिनी लॉ ने हरियाणा के इतिहास में पहली बार एससी/एसटी एक्ट (SC/ST Prevention of Atrocities Act) में आरोपियों को सजा सुनाई. इसमें काफी लोग बरी भी हुए, लेकिन इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में अपील की गई तथा कुल 33 लोगों को दिल्ली हाईकोर्ट ने सजा सुनाई व 12 आरोपियों को एससी/एसटी एक्ट व आईपीसी की धारा 302 के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई. यह भारत के इतिहास में एससी/एसटी एक्ट में मिलने वाली सजाओ में सर्वाधिक है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."