चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
जिस तरह खशबू अनेक हैं, उसी तरह अब नाम भी कई हो गए हैं। प्राचीन काल से फिजा को महकने वाला इत्र अब परफ्यूम, फ्रेगरेंस और सेंट आदि नामों से जाना जाता है। मां गंगा के किनारे बसे कन्नौज को इत्र नगरी यूं ही नहीं कहा जाता है। यहां करीब 5000 हजार साल से इत्र बनाने का काम हो रहा है। यह शहर खुशबू के लिए दुनियाभर में मशहूर है और कभी यहां की गलियों में इत्र बहता था और सड़कें चंदन की सुगंध से महकती थीं तो यहां गुजरने वाली हवाएं खुशबू संग लेकर मीलों दूर तक जाती थीं। पारंपरिक तरीके से इत्र बनाने के लिए प्रसिद्ध इस शहर की मिट्टी में भी खुशबू है क्योंकि यहां मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है। यहां बनने वाले इत्र की मांग दुनिया के कई देशों में है।
..बाकी सब तो उड़ गया, मगर आपका परफ्यूम रह गया- नाइस फ्रेगरेंस..। एक ब्रांडेड फ्रेगरेंस के विज्ञापन की ये लाइनें तो शायद सभी ने सुनी होंगी। जी हां, कुछ ऐसी ही न उड़ने वाली महक से आपको रू-ब-रू कराते हैं…, जिस तरह लजीज व्यंजनों का नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है, ठीक वैसे ही बेला, चमेली, गुलाब, केवड़ा, केसर और कस्तूरी… का नाम सुनते ही खुद-ब-खुद मन महक उठता है। फूलों की खुशबू को बोतल में बंद करने की कला तो वर्षों पुरानी है लेकिन इसे बंद कहां और कैसे किया जाता है, यह आपको बताने जा रहे हैं…। वैसे तो खुशबू की कोई कीमत नहीं है लेकिन यहां बनने वाला एक इत्र ऐसा भी है, जो पचास लाख रुपये में बिकता है।
अगर यह कहा जाए कि कन्नौज की मिट्टी में खुशबू है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। यहां की मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है। जब बरसात की बूंदें कन्नौज की मिट्टी पर पड़ती हैं, तो इस मिट्टी से एक खास खुशबू उठती है। उसी खुशबू को बोतलों में कैद कर लिया जाता है। बारिश के पानी से गीली मिट्टी को तांबे के बर्तनों में पकाया जाता है। इस मिट्टी से जो खुशबू उठती है उसे बेस ऑयल के साथ मिलाकर इत्र बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है।
कन्नौज में जहां एक ओर सबसे सस्ता इत्र तैयार किया जाता है, वहीं दुनिया का सबसे महंगा इत्र भी यहीं पर बनाता है। अदरऊद नाम का इत्र सबसे महंगा है, जो असम की विशेष लकड़ी आसमाकीट से बनाया जाता है। इस इत्र के एक ग्राम की कीमत पांच हजार रुपये तक है। कारोबारी बताते हैं कि अदरऊद की बाजार में कीमत 50 लाख रुपये प्रति किलो तक है। वहीं गुलाब से बनने वाला इत्र भी करीब तीन लाख रुपये किलो में बिकता है। केवड़ा, बेला, केसर, कस्तूरी, चमेली, मेंहदी, कदम, गेंदा, शमामा, शमाम-तूल-अंबर, मास्क-अंबर जैसे इत्र भी तैयार किए जाते हैं। यहां बनने वाले इत्र की कीमत 25 रुपए से लेकर लाखों रुपए तक है।
कन्नौज में बनने वाला इत्र देश ही नहीं यूके, यूएस, सऊदी अरब, ओमान, ईराक, ईरान समेत कई देशों में सप्लाई किया जाता है। यहां बना इत्र पूरी तरह से प्राकृतिक होता है। इसमें केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, यही इसकी खासियत है।
इस तरह बनता है इत्र : खेतों से तोड़कर लाए गए फूलों को भटठियों पर लगे बहुत बड़े तांबे के भपका (डेग) में डाला जाता है। एक भपके में करीब एक क्विंटल फूल तक आ जाते हैं। फूल डालने के बाद इन भपकों के मुंह पर ढक्कन रखकर गीली मिट्टी से सील कर दिया जाता है। इसके बाद कई घंटों तक आग में पकाया जाता है। इन भपकों से निकलने वाली भाप को एक दूसरे बर्तन में एकत्र किया जाता है, जिसमें चंदन तेल होता है। इसे बाद में सुगंधित इत्र में तब्दील कर दिया जाता है।
Author: samachar
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